भाजपा ने हरियाणा में मोहन लाल बड़ौली को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जो सोनीपत की राई सीट से विधायक भी हैं। अब तक प्रदेश संगठन में महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे बड़ौली को यह कमान मिलने के पीछे मनोहर लाल खट्टर का उन पर भरोसा होना भी बताया जा रहा है। इसके अलावा उन्हें राज्य में संगठन की कमान देना एक रणनीति का भी हिस्सा है। हरियाणा की राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा ने फिर गैर-जाट वोटों को एकजुट रखने वाला फैसला लिया है। मोहन लाल बड़ौली सोनीपत जिले के ही रहने वाले हैं और ब्राह्मण जाति से आते हैं।
इस तरह अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपनी पुरानी रणनीति को ही फिर से आगे बढ़ाया है। हरियाणा में एक तरफ जाट वोट 25 फीसदी बताए जाते हैं तो वहीं भाजपा ने गैर-जाट की राजनीति को आगे बढ़ाया है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस की जाटों में अच्छी पकड़ रही है। पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा के पास बिरादरी का समर्थन रहा है। इसके अलावा आईएनएलडी और जननायक जनता पार्टी जैसे दल भी जाट राजनीति के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं। किसान आंदोलन, पहलवानों के प्रदर्शन ने भी जाटों को भाजपा के खिलाफ एकजुट किया है।
ऐसे में भाजपा को लगता है कि भूपिंदर हु़ड्डा फैक्टर और नाराजगी की काट किसी जाट नेता को मौका देकर नहीं हो सकती। ऐसी स्थिति में गैर-जाट वाले फैक्टर को ही मजबूत किया जाए। इसी रणनीति के तहत उसने 9 सालों तक पंजाबी चेहरे मनोहर लाल खट्टर को सीएम बनाकर रखा। अब मनोहर लाल खट्टर केंद्र सरकार में ताकतवर मंत्री हैं। इस तरह पंजाबी समुदाय के लोगों को भाजपा ने संदेश दिया है कि उनका प्रतिनिधित्व बना रहेगा। वहीं ओबीसी नेता नायब सिंह सैनी को उसने अब मुख्यमंत्री बना रखा है।
बड़ौली, खट्टर और सैनी से भाजपा ने क्या साधा
राज्य में गैर-जाट ओबीसी वर्ग की आबादी करीब 20 फीसदी है। इसके अलावा ब्राह्मण समुदाय की संख्या 12 फीसदी है। इस तरह नायब सिंह सैनी और मोहन लाल बड़ौली के माध्यम से भाजपा ने 32 फीसदी गैर-जाट वोट को साधा है। अब पंजाबी समुदाय भी करीब 20 फीसदी है। इस तरह भाजपा ने 50 फीसदी से ज्यादा लोगों पर अपनी दावेदारी पेश की है। भाजपा को इस समीकरण के अलावा गुरुग्राम, फरीदाबाद, अंबाला, करनाल और कुरुक्षेत्र जैसे शहरी क्षेत्रों से भी जीत की उम्मीद है, जिनमें करीब 45 सीटें आती हैं।