डेस्क:मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने चुनौतियों से जूझ रही बसपा प्रमुख से माफी मांगकर जहां वापसी करने के संकेत दिए हैं। वहीं पार्टी में नई ऊर्जा की आस जगाई है। उन्होंने यह साफ किया है कि वह रिश्तों-नातों से ऊपर उठकर पार्टी की सेवा करेंगे और बुआ का ही कहना मानेंगे। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या आकाश आनंद बसपा के अच्छे दिनों की वापसी करा पाएंगे? और भतीजे को लेकर मायावती ने एक बार फिर अपनी रणनीति क्यों बदली है? राजनीतिक जानकार आकाश के इस कदम को बसपा के घटते रहे जनाधार के बीच नई ऊर्जा के रूप में देख रहे हैं। आकाश की वापसी पार्टी के लिए कितनी लाभकारी होगा यह वक्त बताएगा, लेकिन चंद्रशेखर आजाद की चुनौती के बीच आकाश एक तेज-तर्रार युवा चेहरे के रूप में पार्टी में जोश भरें तो हैरत नहीं।
बसपा में मौजूदा समय मायावती के अलावा पार्टी में दूसरा कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है। सतीश चंद्र मिश्र हैं, तो जरूर लेकिन वह दलितों के बीच सर्वमान्य नहीं हैं। आकाश के बाहर जाने से पार्टी को नुकसान ही था। मायावती ने अकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर पार्टी से दलित युवाओं को बांधे रखने की कोशिश की थी। बसपा के लिए मौजूदा समय चंद्रशेखर आजाद सबसे बड़ी चुनौती हैं। दलित युवाओं में उनकी खासी पैठ है। खासकर पश्चिमी यूपी में जाटव बिरादरी के युवाओं में। आकाश भी जाटव बिरादरी के युवा नेता हैं। राजनीतिक जानकार करते हैं कि मायावती भी यह समझती हैं कि आकाश के न रहने से पार्टी को नुकसान होगा। जाटव बिरादरी के वोट को बांधे रखने के लिए आकाश ही सहारा हैं। उनके साथ रहने से ही पार्टी का भला है।
मायावती ने 16 को बुलाई बैठक
बसपा सुप्रीमो मायावती ने 16 अप्रैल को प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक बुलाई है। इसमें प्रदेश पदाधिकारियों के साथ जोनल प्रभारी, जिलाध्यक्ष और बामसेफ के लोगों को बुलाया गया है। माना जा रहा है कि मायावती आकाश को लेकर कुछ संकेत पार्टी के लोगों को इस मौके पर दे सकती हैं।
पार्टी में आकाश आनंद के आने से यह होगा फायदा
पार्टी सूत्रों का कहना है कि आकाश आनंद के आने से फायदा होगा। मायावती के बाद वह दूसरा सबसे बड़ा चेहरा होंगे। जाटव के साथ अन्य दलित बिरादरी के लोगों को बांधे रखने में मदद करेंगे। मैदान में उतर कर चंद्रशेखर आजाद के साथ ही भाजपा, सपा कांग्रेस को चुनौती देकर बसपा का पक्ष मजबूत कर सकेंगे। आकाश के पार्टी में आने से ससुर अशोक सिद्धार्थ के साथ जाकर दूसरी पार्टी बनाने की संभावना भी क्षीण होगी। आने वाले विधानसभा में वह मैदान में उतर कर मेहनत करेंगे तो स्वाभाविक है कि पार्टी को ही फायदा मिलेगा।