देश की राजनीति में विपक्ष का मजबूत होना लोकतंत्र की नींव है। लेकिन जब विपक्ष, सत्ता का विरोध करते-करते राष्ट्रहित के खिलाफ खड़ा दिखाई दे, जब आतंकियों और जनप्रतिनिधियों में अंतर मिटाने की कोशिश हो—तब सवाल सिर्फ राजनीतिक नहीं रह जाते, तब सवाल उठते हैं नीयत पर।
कांग्रेस के संचार विभाग के महासचिव जयराम रमेश ने हाल ही में जो कहा, वह न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि शर्मनाक भी। उन्होंने आतंकवादियों और सांसदों को एक ही पलड़े में रख दिया—“आतंकी भी इधर-उधर घूम रहे हैं, सांसद भी घूम रहे हैं।” यह कथन क्या है? गलती? ग़फ़लत? या एक सोची-समझी रणनीति कि कैसे हर राष्ट्रीय अभियान को विवादित बनाकर देश की सुरक्षा भावना को खोखला किया जाए?
यह संयोग नहीं—सिलसिला है
उड़ी हमले के बाद जब भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया—कांग्रेस ने उसे ‘नाटक’ कहा। पुलवामा के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक हुई—कांग्रेस ने सबूत मांगे। अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब पूरा देश एकजुट है, कांग्रेस फिर वहीं खड़ी है—सवाल पूछती हुई, लेकिन सिर्फ सरकार से नहीं, सेना की नीयत और कार्रवाई पर भी।
उदित राज कहते हैं—शशि थरूर प्रधानमंत्री की ‘फर्जी सर्जिकल स्ट्राइक’ का महिमामंडन कर रहे हैं। सवाल है—क्या कांग्रेस को यह एहसास है कि वह सत्ता का विरोध करते-करते भारत की सेना को झूठा ठहरा रही है? क्या यह वही पार्टी है जिसने 1971 में पाकिस्तान को तोड़ दिया था? क्या अब वही पार्टी देश को तोड़ने वाली भाषा बोल रही है?
देश का विरोध, या मोदी का?
सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस सरकार का विरोध कर रही है। सवाल यह है कि वह किस हद तक जा रही है। यदि सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को ‘फर्जी’ कह दिया जाए, तो कल को क्या युद्ध भी ‘फर्जी’ कहलाएगा? क्या अगर प्रधानमंत्री को राजनीतिक लाभ मिल रहा हो, तो सेना की कार्रवाई को भी झुठला दिया जाएगा?
क्या कांग्रेस अब भी “इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा” के जाल में फंसी है? क्या आज भी अगर पार्टी चुनाव हारती है, तो लोकतंत्र हार जाता है? क्या लोकतंत्र केवल तब तक सही है, जब तक कांग्रेस जीत रही हो?
ये हाइफ़नेट नहीं, हाई-ट्रेशन है
जय राम रमेश ने कहा—सांसद भी घूम रहे हैं, आतंकी भी घूम रहे हैं। और इसे ‘हाइफ़नेट’ कहा गया—एक ही रेखा से दोनों को जोड़ने की कोशिश। लेकिन यह कोई भाषायी चतुराई नहीं, यह राजनीतिक देशद्रोह की भाषा है। यह हाई-ट्रेशन है, हाइफ़नेट नहीं। क्या कांग्रेस नहीं समझती कि उसने अपने ही जनप्रतिनिधियों और देश की संसद को किस पायदान पर ला खड़ा किया है?
सलाह नहीं, चेतावनी
कांग्रेस अगर समझती है कि इस तरह वह भाजपा को घेर पाएगी, तो वह भूल में है। सरकार को हराने के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान को हराना एक खतरनाक प्रयोग है। और यह प्रयोग न कांग्रेस के लिए लाभकारी होगा, न भारत के लिए।
हम कांग्रेस को एक सलाह देना चाहते थे, लेकिन अब वक़्त चेतावनी का है:
सत्ता में लौटने के लिए भारत से मत टकराइए। भारत से टकराने वाले कभी लौटकर नहीं आते।