अठारहवीं लोकसभा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का अभिभाषण न केवल विश्वास जगाने की अच्छी कोशिश है, बल्कि सत्ता पक्ष की राजनीति का भी स्पष्ट संकेत है। राष्ट्रपति ने गुरुवार को संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए पेपर लीक और प्रतियोगी परीक्षाओं में कथित अनियमितताओं का विशेष रूप से उल्लेख किया। परीक्षाओं के साथ निरंतर हो रहे खिलवाड़ की वजह से किशोरों और युवा पीढ़ी में चिंता व्याप्त है। शिकायतों के प्रति सरकार को गंभीर होना चाहिए। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में नीट सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की कथित गड़बड़ी का उल्लेख किया और वादा किया कि उनकी सरकार निष्पक्ष परीक्षाएं आयोजित करेगी। वास्तव में, युवा पीढ़ी और देश यही चाहता है कि परीक्षाओं को चाक-चौबंद बनाया जाए। उनसे खिलवाड़ करने वाले रसूखदारों के दुस्साहस को मुंहतोड़ जवाब मिलना ही चाहिए। राष्ट्रपति ने सही कहा है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस पर विचार करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने संसद के सभी सदस्यों को सलाह दी है कि सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए संसदीय कार्यवाही को बाधित नहीं किया जाए। यह बात छिपी हुई नहीं है कि संसद का समय बडे़ पैमाने पर हंगामे की भेंट चढ़ता है। राष्ट्रपति की इस सदिच्छा का सम्मान सांसदों का कर्तव्य होना चाहिए। विरोध अपनी जगह है, जहां सांसद सहमत नहीं होंगे, वहां उन्हें नाराजगी जताने में हिचकना नहीं चाहिए, पर सदन में अनावश्यक शोर करना, मात्र विरोध के लिए विरोध करना बंद हो जाना चाहिए। देश की सर्वोच्च पंचायत फिजूल की टीका-टिप्पणियों के लिए कतई नहीं है। 18वीं लोकसभा में अगर कम से कम हंगामा और ज्यादा से ज्यादा काम हो, तो देश की तरक्की को बल मिलेगा। हंगामा या समय की बर्बादी सत्ता पक्ष की वजह से हो या विपक्ष की वजह से, नुकसान देश को होता है। राष्ट्रपति ने सांसदों को याद दिलाया है कि सदन के सभी सदस्यों के लिए लोकहित सर्वोपरि होना चाहिए। राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में यह भी संकेत दिया है कि सरकार आगामी बजट के दौरान कई बड़ी घोषणाएं करेगी। पहले से ही यह उम्मीद जताई जा रही है कि आगामी बजट देश की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को प्रभावित करने वाला हो सकता है। इससे देश में आर्थिक सुधार की गति बढ़ेगी। यहां लोग यही उम्मीद करेंगे कि आर्थिक सुधार आम लोगों के अनुरूप हों, कंपनियों की सुनवाई हो, पर लोगों की जरूरतों को देखते हुए सुधार के कदम उठाए जाएं। ऐसे कदम जरूरी हैं, जिनसे रोजगार में वृद्धि हो।
राष्ट्रपति का यह कहना भी प्रशंसनीय है कि निवेश के लिए हमारे राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा होनी चाहिए। निवेश आमंत्रित करने के लिए, बेहतर नीतियों को लागू करने के लिए प्रतिस्पद्र्धा का भाव आना जरूरी है। राज्य जब एक-दूसरे से सीखेंगे और एक-दूसरे से बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगे, तब देश की तरक्की तेज होगी। कुल मिलाकर, अभिभाषण स्वागतयोग्य है, पर हमेशा की तरह इस बार भी अभिभाषण की बातें विपक्ष को पसंद नहीं आई हैं। यहां यह समझना चाहिए कि राष्ट्रपति के अभिभाषण को केंद्र सरकार तैयार करती है और जब इसमें आपातकाल को काला अध्याय के रूप में याद किया गया, तो विपक्ष की नाराजगी उभर आई। आपातकाल को हम भुला नहीं सकते, पर उसे बार-बार याद करके कटु यादों को ताजा करने से ज्यादा बेहतर है कि हम सबक लें और लोकतंत्र की ज्यादा मजबूती के लिए काम करें।