सरदारशहर, चूरु:वर्ष 2013 में अपने उत्तराधिकार प्रदाता, अध्यात्मिक गुरु, महासाधक, तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता के समाधि स्थल ‘अध्यात्म का शांतिपीठ’ से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर पूरी दुनिया को शांति का संदेश देने और अपने गुरु की आज्ञा को सफलीभूत बनाने, गुरुओं की वाणी को देश-विदेश में फैलाने, मानवता के कल्याण के लिए गतिमान हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी लगभग नौ वर्षीय यात्रा के दौरान देश-विदेश में अहिंसा यात्रा के संदेशों के द्वारा जन-जन के उद्वेलित मन को आध्यात्मिक संपोषण प्रदान करते हुए न केवल शांति की नवज्योति जलाई, अपितु तेरापंथ धर्मसंघ के स्वर्णिम इतिहास में स्वर्णिम अमिट आलेखों से पटे अध्यायों को जोड़ते हुए 25 अप्रैल 2022 को पुनः अपने परंपर पट्टधर की समाधि स्थल ‘अध्यात्म का शांतिपीठ’ पधारे तो उस दृश्य को अपने नयनों से निहारने को मानों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। हजारों नेत्र गुरु की गुरुता ही नहीं, गुरु की अपने सुगुरु की प्रति भक्ति को देख निहाल हो उठे। श्रद्धा भावों से ओत-प्रोत श्रद्धालुओं की अभिव्यक्ति का मात्र एक ही साधन था ‘जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण’ का जयघोष।
जी हां! सोमवार ऐसा ही दिव्य नजारा देखने को मिला राजस्थान के चूरू जिले के सरदारशहर कस्बे के मेगा हाइवे पर बने तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की समाधि ‘अध्यात्म का शांतिपीठ’ पर। नौ वर्षों तक गुरु आज्ञानुसार देश-विदेश में तेरापंथ की धर्मध्वजा को फहराने निकले तेरापंथ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी हरपालसर से ‘अध्यात्म का शांतिपीठ’ की ओर गतिमान हुए। वर्षों बाद अपने उत्तराधिकार प्रदाता, अपने सुगुरु के स्थल वर्तमान आचार्य के मंगल पदार्पण को लेकर न केवल सरदारशहर की जनता बल्कि देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले हजारों श्रद्धालु पहुंच गए थे। आचार्यश्री कुछ किलोमीटर की दूरी तय कर सरदारशहर के एसबीडी कॉलेज में पधारे जहां मालू ऑडिटोरियम का उद्घाटन संबंधित लोगों द्वारा आचार्यश्री की सन्निधि में किया गया। आचार्यश्री ने वहां उपस्थित विद्यार्थियों व संबंधित लोगों को मंगल प्रेरणा प्रदान की। तदुपरान्त आचार्यश्री श्री भंवरलाल दुगड़ आयुर्वेद विश्वभारती में भी पधारे। संबंधित लोगों व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया तो आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद संग पावन पाथेय भी प्रदान किया।
तेरापंथ अनुशास्ता ने अपने सुगुरु के समाधि स्थल पर किया ध्यान
तत्पश्चात आचार्यश्री गतिमान हुए अपने सुगुरु के समाधि स्थल की ओर और उनके साथ चल पड़ा श्रद्धालुओं का विशाल कारवां, जो इस अद्वितीय दृश्य का गवाह बनने को आतुर था। राजस्थान की गर्मी के बावजूद भी आध्यात्मिक गुरु के आशीष के छावं मानों श्रद्धालु आज गर्मी को चुनौती दे रहे थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री सरदारशहर के बाहरी भाग में स्थित ‘अध्यात्म का शांतिपीठ’ पर पधारे तो रेतीली धरती जयघोष से गुंजायमान हो उठी। परिसर में पधारते ही आचार्यश्री सबसे पहले परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की समाधिस्थल पर पधारे जहां चतुर्विध धर्मसंघ इस अवसर को साक्षात निहारने को पहले से ही उपस्थित था। समाधि स्थल पर लगे आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की तस्वीर को कुछ क्षण निहारने के बाद आचार्यश्री समाधि स्थल के पास ही नीचे विराजमान होकर ध्यानस्थ हो गए, मानों अपने गुरु के साक्षात्कार कर उनके प्रति अपनी श्रद्धाप्रणति अर्पित कर रहे थे। ध्यान के उपरान्त आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों, समणियों सहित श्रद्धालुओं की अभिवंदना को स्वीकार करते हुए कहा कि वर्षों बाद गुरुदेव के समाधि स्थल पर आना हुआ है। यदि मुझे गुरुदेव किसी भी रूप में निहार रहे हों तो हमें उनसे प्रेरणा मिलती रहे।
सदात्मा बनने का करें प्रयास: शांतिदूत आचार्य महाश्रमण
समाधिस्थल पर श्रद्धा स्मरण कर आचार्यश्री प्रवास स्थल पधारे और कुछ ही समय बाद प्रवचन पंडाल में पधारे। आचार्यश्री ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में मित्र बनाए जाते हैं तो शुत्र भी बन जाते हैं। अध्यात्म की दृष्टि से सबसे बड़ी शत्रु दुरात्मा बनी आत्मा होती है। शास्त्र में चार प्रकार की आत्माओं का वर्णन किया गया है। इनमें पहला है परमात्मा-अनंत सिद्ध, मोक्ष में विराजमान आत्माएं परमात्मा होती हैं। दूसरे प्रकार महात्मा है। मन, वचन और कार्य में सरलता, ऋजुता रखने वाले, मन, वचन और कार्य से किसी को दुःख नहीं देने वाले महात्मा होते हैं। जिनके मुख का दर्शन करने से भी पुण्य की प्राप्ति हो सकती है। तीसरे प्रकार की आत्मा है-सदात्मा। छल, कपट, चोरी, झूठ, बेइमानी, हिंसा आदि से विमुख आत्मा सदात्मा होती है। चौथे प्रकार की आत्मा दुरात्मा होती है। वह हिंसा, चोरी, छल, झूठ, कपट, लोभ, ईर्ष्या, लालच आदि बुरे कार्यों व विचारों से लिप्त होती है। आदमी को इससे बचते हुए सदात्मा बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी का जीवन कदाचार, भ्रष्टाचार, व्यभिचार से मुक्त और सदाचार से युक्त रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए।
आचार्य महाप्रज्ञजी के संदेशों व विचारों को जीवन में उतारने का हो प्रयास
आचार्यश्री ने अपने आगमन के संदर्भ में कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की दीक्षा परम पूज्य कालूगणी के उपपात में सरदारशहर में हुई थी। लगभग 90 वर्ष की अवस्था में वे वर्ष 2010 में अपने चतुर्मासकाल के लिए सरदारशहर पधारे थे, किन्तु आकस्मिक रूप में उनका महाप्रयाण हो गया। जाना एक दुनिया का नियम है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा यह समाधि स्थल का स्थान आता है। हालांकि शांति तो स्वयं के भीतर होती है, थोड़ा निमित्त स्थान का भी हो सकता है। आज परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के समाधि स्थल पर आए हैं। उनके संदेश, उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास हो। गुरुदेव ने अहिंसा यात्रा की। हम जैसे शिष्यों को उनके चरणों में रहने और सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। इस अवसर पर आचार्यश्री ने बर्हिविहार से समागत साध्वियों को भी मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
इस दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, महासभा के उपाध्यक्ष श्री नरेन्द्र नखत, आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति-सरदारशहर के अध्यक्ष श्री बाबूलाल बोथरा, वरिष्ठ श्रावक श्री सुमति गोठी, तेरापंथ सभा-सरदारशहर के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ चण्डालिया व पूर्व विधायक श्री अशोक पींचा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-सरदारशहर ने स्वागत गीत का संगान किया।