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Home आराधना-साधना

अहिंसा, संयम, तप द्वारा मनुष्य जन्म रूपी पूंजी करें वृद्धिंगत : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

श्री इन्दरवा नवा प्राथमिकशाला में आचार्यश्री का हुआ पावन प्रवास 

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
April 8, 2025
in आराधना-साधना
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अहिंसा, संयम, तप द्वारा मनुष्य जन्म रूपी पूंजी करें वृद्धिंगत : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
अहिंसा, संयम, तप द्वारा मनुष्य जन्म रूपी पूंजी करें वृद्धिंगत : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री
इन्दरवा नवा:गुजरात राज्य की विस्तृत यात्रा कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वर्तमान में पाटन जिले की सीमा में मंगल विहार व पावन प्रवास कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में रहने वाले तेरापंथी परिवार भले ही कम हों, लेकिन श्रद्धालुओं का उत्साह और आचार्यश्री के प्रति श्रद्धा भाव को देखते हुए इस बात का अनुमान लगाना कठिन है। आचार्यश्री भी सभी श्रद्धालुओं पर अपनी आशीषवृष्टि  करते हुए निरंतर गतिमान हैं।
मंगलवार को प्रातः की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने झंडाला से मंगल प्रस्थान किया। झंडाला के लोगों आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। सभी पर मंगल आशीष की वर्षा करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। मार्ग में अनेक स्थानों पर लोगांे ने आचार्यश्री के दर्शन का लाभ प्राप्त किया। जैसे-जैसे सूर्य आसमान में चढ़ता जा रहा था, तीखी धूप लोगों के पसीने छुड़ाने लगी, किन्तु दृढ़संकल्पी आचार्यश्री के चरण गतिमान थे। आचार्यश्री की आध्यात्मिक ऊर्जा से अभिस्नात साथ चलने वाले श्रद्धालु भी आचार्यश्री के श्रीचरणों का अनुगमन कर रहे थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री इन्दरवा नवा में स्थित श्री इन्दरवा नवा प्राथमिकशाला में पधारे। वहां उपस्थित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्राथमिकशाला में आयोजित मंगल प्रवचन में समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मनुष्य जन्म रूपी पूंजी को गंवा देते हैं और नरक अथवा तीर्यंच गति की ओर चले जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सामान्य जीवन जीते हैं और वापस मनुष्य बन जाते हैं, मानों वे मनुष्य जीवन रूपी मूल पूंजी को ही सुरक्षित रख लिया हो। उनके जीवन में न कोई विशेष धर्म, ध्यान, अध्यात्म, साधना, तप आदि की बात होती है और न ही उनके जीवन में कोई विशेष पापाचार की बात ही होती है।
दुनिया में कुछ मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो धर्म, ध्यान, आध्यात्मिक साधना, श्रावक धर्म का पालन करने वाले, तपस्या, सेवा आदि धार्मिक कार्य करने वाले होते हैं जो इन कार्यों से अपनी मनुष्य जीवन रूपी पूंजी को वृद्धिंगत करते हैं और मनुष्य जीवन से ऊपर की गति अथवा मोक्ष तक भी मार्ग प्रशस्त कर लेते हैं। कितने साधु-संन्यासी अपनी साधना, आराधना, तप आदि के द्वारा मोक्ष की गति भी प्राप्त कर सकते हैं।
मानव जीवन रूपी पूंजी को प्राप्त करने के बाद आदमी को इसे बढ़ाने के लिए अहिंसा धर्म की आराधना, संयम की साधना और तपस्या करने का प्रयास करना चाहिए और अपनी गति को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को मनुष्य जीवन में धर्म का लाभ कमाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त इन्दरवा के सरपंच श्री भूपतभाई राठौड़, प्राथमिकशाला के प्रिंसिपल श्री प्रकाशभाई परमार, आर.एम.एस.ए. हाईस्कूल के श्री हर्षदभाई सोलंकी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

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