पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई को एक पत्र भेजकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत का प्रस्ताव दिया। हालांकि, अयातुल्लाह खामेनेई ने इस पत्र का सीधे तौर पर जिक्र किए बिना कहा कि कुछ वैश्विक शक्तियाँ बातचीत पर इसलिए जोर देती हैं ताकि वे अपने फैसले थोप सकें, न कि समस्याओं का समाधान निकालने के लिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईरान बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब अमेरिका ईरान पर अपनी “अधिकतम दबाव” (Maximum Pressure) नीति को तेज कर रहा है। वॉशिंगटन ने हाल ही में इराक को ईरान से बिजली खरीदने की छूट समाप्त कर दी, जिससे ईरान की अर्थव्यवस्था पर और असर पड़ सकता है। ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) से पीछे हटकर ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे। हालांकि, ईरान ने खुद को अलग-थलग पड़ने से बचाया है और रूस तथा चीन के साथ सहयोग बढ़ाया है। ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में ईरान की सदस्यता इस बात का संकेत देती है कि वह वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने में सफल रहा है।
क्षेत्रीय घटनाक्रम और सैन्य रणनीति
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ईरान की क्षेत्रीय स्थिति कमजोर हुई है, लेकिन हालात इतने स्पष्ट नहीं हैं। इजरायल का दावा है कि हिज़्बुल्लाह और हमास को हार का सामना करना पड़ा है, लेकिन ग़ज़ा में हमास अभी भी सक्रिय है और इजरायली सैन्य अभियानों के बावजूद उसका वजूद बना हुआ है। लेबनान में हिज़्बुल्लाह ने इजरायल पर मिसाइल हमले किए, जिससे पता चलता है कि उसकी सैन्य शक्ति अभी भी बरकरार है। हिज़्बुल्लाह के वरिष्ठ नेताओं के अंतिम संस्कार में भारी भीड़ उमड़ी, जो समूह के लिए जारी जनसमर्थन को दर्शाता है।
सीरिया में स्थिति जटिल बनी हुई है, जहां कई क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय ताकतें अलग-अलग हितों को लेकर संघर्ष कर रही हैं। इस अस्थिरता के बावजूद, ईरान की दमिश्क में पकड़ बनी हुई है और इसका प्रभाव खत्म होने के संकेत नहीं मिल रहे हैं।
अमेरिका की नीति और ईरान की प्रतिक्रिया
हालांकि अमेरिका यह दावा करता है कि वह ईरान में शासन परिवर्तन नहीं चाहता, लेकिन उसके प्रतिबंध, कूटनीतिक अलगाव और विपक्षी गुटों को समर्थन देने जैसी नीतियाँ इस ओर इशारा करती हैं कि वॉशिंगटन तेहरान पर आंतरिक दबाव बनाने की रणनीति अपना रहा है। कुछ ईरानी अधिकारियों का मानना है कि अमेरिका की नीति आम नागरिकों के लिए आर्थिक मुश्किलें खड़ी कर उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काने की है। लेकिन ईरान ने अब तक इस तरह की नीतियों का सामना किया है और हाल ही में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मृत्यु के बाद मसूद पेज़ेश्कियन का निर्वाचित होना यह दर्शाता है कि ईरानी राजनीतिक प्रणाली स्थिर बनी हुई है।
ईरान ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी तरह के दबाव, प्रतिबंध और बलपूर्वक कूटनीति के तहत परमाणु मुद्दे पर बातचीत नहीं करेगा। हालांकि, वह अभी भी यूरोपीय देशों, रूस और चीन के साथ वार्ता जारी रखे हुए है, लेकिन अमेरिका के साथ सीधी बातचीत से इंकार किया है। यदि ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया जाता है, तो इसका व्यापक क्षेत्रीय असर हो सकता है। तेहरान ने चेतावनी दी है कि उसकी प्रतिक्रिया अप्रत्याशित होगी और खाड़ी क्षेत्र से तेल निर्यात तथा अमेरिकी सैन्य ठिकाने इसके निशाने पर आ सकते हैं।
अयातुल्लाह खामेनेई ने पश्चिमी देशों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए हाल ही में यूक्रेन और अफगानिस्तान का उदाहरण दिया। उनका कहना है कि अमेरिका और यूरोप जिन देशों को समर्थन देने का वादा करते हैं, वे अक्सर उन्हें अधर में छोड़ देते हैं। इस संदर्भ में ईरान की अमेरिका के साथ सीधे वार्ता से दूरी बनाए रखने की नीति समझ में आती है।
आगे का रास्ता अनिश्चित बना हुआ है, लेकिन ईरान और अमेरिका के बीच कूटनीति और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का यह खेल फिलहाल जारी रहेगा।