होम मिनिस्टर अमित शाह के संसद में दिए भाषण के दौरान भीमराव आंबेडकर से संबंधित टिप्पणी को लेकर हंगामा हो रहा है। कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी और उद्धव ठाकरे समेत कई दल उन पर आंबेडकर के अपमान का आरोप लगा रहे हैं। वहीं खुद अमित शाह ने अपने ऊपर लग रहे आरोपों का सामना किया और मीडिया से बातचीत में तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने का आरोप लगाया है। अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस हमेशा ही आंबेडकर के खिलाफ थी और आरक्षण के भी विरोध में रही। लेकिन वह मेरे भाषण के एक हिस्से को गलत ढंग से पेश कर रही है। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर कांग्रेस के आंबेडकर विरोध की 4 घटनाएं गिनाईं। दरअसल कांग्रेस और भीमराव आंबेडकर के बीच का रिश्ता उतार-चढ़ाव भरा ही था। आंबेडकर के जीवन के आखिरी दिनों में तो कांग्रेस उनके खिलाफ ही थी।
उन्होंने हिंदू कोड बिल समेत कई मसलों पर कांग्रेस और नेहरू के साथ मतभेद बढ़ने के बाद 27 सितंबर 1951 को कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। वह देश के पहले कानून मंत्री थे। इसके बाद आंबेडकर अपनी ही पार्टी शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवार के तौर पर 1952 के पहले आम चुनाव में मुंबई उत्तर मध्य सीट से उतरे थे। संविधान निर्माण में अहम भूमिका और मजदूरों, पिछड़ों के मुद्दों को उठाने वाले नेता की छवि रखने वाले भीमराव आंबेडकर की इस चुनाव में दुखद हार हुई थी। आज भी उनकी इस हार को याद किया जाता है और कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जाता है। यह भी एक तथ्य रहा ही है कि खुद तत्कालीन पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यहां आंबेडकर के खिलाफ चुनाव प्रचार किया था।
कौन थे काजरोलकर, जो लड़े थे आंबेडकर के खिलाफ चुनाव
एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि आंबेडकर को जिस नेता नारायण सादोबा काजरोलकर के हाथों हार झेलनी पड़ी थी, वह कभी उनके ही निजी सहायक थे। उन्हें कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया था और नेहरू खुद प्रचार में उतरे थे। आंबेडकर को इस इलेक्शन में 15000 वोटों से हार झेलनी पड़ी थी। इस हार से भीमराव आंबेडकर काफी दुखी हुए थे और उन्होंने चुनाव पर सवाल भी उठाए थे। कांग्रेस ने पहले आम चुनाव में 489 लोकसभा सीटों में से 364 पर जीत हासिल की थी। इसके अलावा देश भर की 3280 विधानसभा सीटों में से 2247 पर कांग्रेस ही जीती थी। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार भीमराव आंबेडकर ने हार को लेकर कहा था, ‘आखिर कैसे बॉम्बे के लोगों का इतना जोरदार समर्थन चुनाव नतीजे में नहीं दिखा। यह तो जांच का विषय है, जिस पर चुनाव आयोग को विचार करना चाहिए।’
फिर उपचुनाव में उतरे थे आंबेडकर, लेकिन दोबारा मिली थी हार
अहम बात यह है कि भीमराव आंबेडकर ने 1954 में एक बार फिर भंडारा सीट से चुनाव लड़ा था। यह आम चुनाव नहीं था बल्कि उपचुनाव था। यहां भी उन्हें 8500 वोट से कांग्रेस कैंडिडेट के खिलाफ हारना पड़ा था। इस इलेक्शन में भीमराव आंबेडकर ने नेहरू के नेतृत्व की तीखी आलोचना की थी और खासतौर पर विदेश नीति को लेकर निशाना साधा था। आंबेडकर के इन दोनों चुनाव में हारने के लिए कांग्रेस पर निशाना साधा जाता रहा है। कहा जाता है कि यह नेहरू की ही रणनीति थी कि आंबेडकर के खिलाफ काजरोलकर को उतार दिया जाए, जो कभी उनके ही निजी सहायक थे। ऐसा ही आरोप भंडारा सीट पर हार को लेकर भी लगता रहा है।