तेनीवाड़ा, बनासकांठा:जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में काणोदर से गतिमान हुए। इन दिनों भारत के विभिन्न हिस्सो में आए आंधी-तूफान व चक्रवात के असर गुजरात के हिस्से में भी दिखाई दे रहा था। रात्रि में हुई तीव्र वर्षा और आज के विहार के दौरान भी हुई हल्की बरसात के कारण मार्ग में यत्र-तत्र जलजमाव की स्थिति भी बनी हुई थी। आसमान में छाए बादलों और बरसात ने लोगों को गर्मी से मानों राहत प्रदान करने वाली रही। मार्ग में अनेक श्रद्धालुओं को दर्शन के साथ मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 13 कि.मी. का विहार तेनीवाड़ा में स्थित मातुश्री मोंघीबेन रामजी भाई उपलाणा विद्यालय में पधारे। वहां उपस्थित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्यों का जीवन एक वृक्ष के पके हुए पत्ते समान है। एक दिन वह पत्ता गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य जीवन भी एक दिन समाप्त हो जाता है। यह जीवन की अनित्यता है। इस अनित्यता को बताकार संदेश दिया गया कि मानव को समय मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। मोह, माया में ज्यादा रचे-पचे मानव के लिए चिंतन का विषय है कि यह जीवन शाश्वत नहीं है। दुनिया में आने वाला कोई भी अमर नहीं होता। यह जीवन अस्थाई है। धन-दौलत, पैसा, मकान, दुकान आदि साथ नहीं जाता। मानव के साथ उसके किए हुए कर्मफल ही जाते हैं, धर्म और अध्यात्म ही साथ जा सकता है। इसलिए आदमी को अपने मानव जीवन का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
कभी कोई दुर्घटना में चला जाए, कोई बीमार हो जाए, कब किसी मृत्यु हो जाए, यह कोई नहीं जानता। इसलिए दुर्लभ मानव जीवन में धर्म के रास्ते पर चलने का प्रयास होना चाहिए। जीवन में ज्यादा से ज्यादा ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। चोरी, धोखाधड़ी से बचने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी को अपने जीवन में रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में अहिंसा की भावना भी पुष्ट रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को ज्यादा गुस्से से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा अपने जीवन में जितनी अच्छी धार्मिक आराधना, साधना में समय लगाने का प्रयास करे तो आत्मा का कल्याण संभव हो सकता है। धर्म करने से अनित्य जीवन भी सफल और सार्थक सिद्ध हो सकता है। जिसका संयोग होता है, उसका वियोग भी होता है। इसलिए बहुत ज्यादा मोह से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।
जीवन में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्तिता रहनी चाहिए। जितना संभव हो सके धार्मिक-आध्यात्मिक साधना करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार दुर्लभ मानव जीवन को सफल-सुफल बनाया जा सकता है और संसार सागर से तरने का भी प्रयास किया जा सकता है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त विद्यालय के प्रिंसिपल श्री परवीन पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।