भुज:जैन आगम में अठारह पाप बताए गए हैं। इनमें दूसरा पाप है-मृषावाद अर्थात् झूठ बोलना। प्रश्न हो सकता है कि आदमी झूठ क्यों बोलता है? बिना किसी लक्ष्य अथवा प्रयोजन के बिना तो सामान्य आदमी कोई कार्य करता ही नहीं है। झूठ बोलने का प्रायः कोई प्रयोजन तो होता ही है। या तो आदमी अपने हित के लिए झूठ बोलता है या दूसरे के बचाव के लिए झूठ बोल सकता है। स्वयं को तात्कालिक लाभ के लिए अथवा किसी दुःख से बचने के लिए आदमी झूठ बोल सकता है। ज्यादा कमाई के उद्देश्य से भी आदमी झूठ बोल सकता है। स्वयं के हित के लिए आदमी झूठ बोल सकता है। भीतर में आए गुस्से के कारण अथवा डर के चलते भी आदमी झूठ बोल सकता है। कई बार हिंसा, हत्या, हंसी में भी आदमी झूठ बोल सकता है। कोर्ट में जाकर कोई झूठी गवाही दे दी कि हां, इसने मर्डर किया है तो हो सकता है कि किसी प्राणी की हत्या हो जाए तो वह भी कितना गलत है। साधुओं के लिए तो सर्व मृषावाद का जिन्दगी भर के लिए तीन करण तीन योग से झूठ बोलने का त्याग हो जाता है।
गृहस्थ आदमी भी अपने जीवन में जितना संभव हो झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। मनोबल, निष्ठाबल हो तो आदमी न तो बिजनेस में झूठ बोल सकता है, न कोई लेनदेन में झूठ बोलता है और न ही सामाजिक कार्यों में झूठ बोलता है, उसका जीवन बड़ा उन्नत हो सकता है। इसी प्रकार बिजनेस में भी टैक्स बचाने के लिए कितने-कितने लोग झूठ बोल लेते हैं। जितना संभव हो सके आदमी को ऐसा प्रयास करना चाहिए। वह झूठ बोलने से बचे। मृषावाद पाप से बचने का प्रयास करना चाहिए और सच्चाई के राह पर चलने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई की राह में बाधा, परेशानी हो सकती है, किन्तु अंतिम विजय सच्चाई की ही होती है। शास्त्रों की वाणी से आदमी प्रेरणा लेकर यह प्रयास करे कि आदमी झूठ बोलने से बचे। झूठ रूपी पाप से बचाव हो जाता है तो आदमी का जीवन भी अच्छा हो सकता है। मानव जीवन में सबके साथ मैत्री का भाव हो। किसी पर झूठा आरोप न लगाएं और अपने जीवन में सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर चलने का प्रयास हो। इस प्रकार आदमी मृषावाद रूपी पाप से बच सकता है और उसकी चेतना का कल्याण हो सकता है।
उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को कच्छी पूज समवसरण में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की। अपने गुरु की अमृतवाणी का साक्षात श्रवण कर भुजवासी अपने सौभाग्य पर इठलाते हुए नजर आ रहे थे।
मंगल प्रवचन के उपरान्त अजरामर लीम्बड़ी संप्रदाय की साध्वी पद्मिनीबाई महासती ने ग्रुप की साध्वियों के साथ मिलकर आचार्यश्री की अभ्यर्थना में गीत का संगान करते हुए अपने भाषण में कहा कि आप साक्षात् भगवान महावीर के स्वरूप ही है। आप समस्त आचार्य संपदा से सम्पन्न हैं। आपके दर्शन कर हम लोगों का जीवन धन्य हो गया। आचार्यश्री ने साध्वियों को मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। तदुपरान्त समणी क्षांतिप्रज्ञाजी, साध्वी मुक्तिश्रीजी व साध्वी रुचिरप्रभाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। अजरामर लीम्बड़ी संप्रदाय की साध्वियों ने मुमुक्षु केविन को आशीर्वाद स्वरूप एक पत्र समर्पित किया, जिसे मुमुक्षु केविन ने गुरुचरणों में अर्पित किया। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।