इस्लामाबाद: पाकिस्तान में शनिवार को दिन भर चले सियासी ड्रामे के बीच आधी रात के बाद नेशनल असेंबली में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार हार गई। अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 174 वोट पड़े। इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) मतदान से दूर रही। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता एक तरफ से साफ हो गया है। संयुक्त विपक्ष ने उन्हें पहले ही अपना नेता चुन लिया था।
पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके शहबाज शरीफ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई हैं। इस्लामाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इमरान खान के देश छोड़ने पर रोक लगाने की मांग की गई है। नेशनल असेंबली के बाहर इमरान खान के समर्थकों द्वारा प्रदर्शन करने की भी खबर है। मतदान से पहले नेशनल असेंबली के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के सदस्य अयाज सादिक को प्रभारी स्पीकर बनाया गया, जिन्होंने मतदान के लिए सदन की कार्यवाही संचालित की।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इमरान ने प्रधानमंत्री आवास भी छोड़ दिया है। इससे पहले, तेजी से बदले घटनाक्रम में चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल के आदेश पर देर रात सुप्रीम कोर्ट भी खोल दिया गया था। लाहौर स्थित हाई कोर्ट भी खोल दिया गया था। सभी हवाई अड्डों पर सतर्कता बढ़ा दी गई है। इस्लामाबाद में भी सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी गई है।
नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बीच इमरान खान ने रात नौ बजे कैबिनेट की बैठक की। उन्होंने दिन में नेशनल असेंबली स्पीकर असद कैसर से मुलाकात की। सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने भी पीएम से मुलाकात की है। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जबकि मीडिया में खबर आई थी कि इमरान खान ने जनरल बाजवा को बर्खास्त कर दिया है। हालांकि, वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत में इमरान ने इसे खारिज किया और कहा कि सेना के मामलों में इमरान ने कहा कि सेना के मामलों में वे दखल नहीं देते।
संयुक्त विपक्ष ने इमरान खान पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराने की जगह डिप्टी स्पीकर ने उसे देश के खिलाफ साजिश बताते हुए खारिज कर दिया था। उसके बाद प्रधानमंत्री इमरान की सिफारिश पर राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया और विपक्ष ने भी याचिका दायर की। गुरुवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से शनिवार को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराने को कहा था।
शनिवार सुबह साढ़े दस बजे सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो सत्तारूढ़ दल की तरफ से मतदान टालने के लिए कई हथकंडे अपनाए गए। सरकार के कई मंत्रियों ने इमरान खान को हटाने की विदेशी साजिश के मसले पर भाषणबाजी शुरू कर दी। विपक्ष ने स्पीकर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अविश्वास प्रस्ताव पर जल्द से जल्द मतदान कराने को कहा तो उन्होंने इससे साफ इन्कार कर दिया।
स्पीकर कैसर ने कहा कि इमरान खान से उनके 30 साल पुराने संबंध हैं और अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं करा सकते हैं। बार-बार स्थगित हुई सदन की कार्यवाही इससे पहले, नेशनल असेंबली की कार्यवाही सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच नोकझोंक के चलते कई बार स्थगित करनी पड़ी। दोपहर बाद इफ्तार के लिए कार्यवाही रात आठ बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। इफ्तार के बाद दोबारा कार्यवाही शुरू हुई तो उसके बाद भी सत्तापक्ष की तरफ से पुराना रवैया अपनाया गया। लोकतंत्र के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष की लड़ाई में सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने सैन्य शासन का डर भी दिखाया।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल असेंबली पहुंचने से पहले इमरान खान ने कहा कि वह हार नहीं मानेंगे। उन्होंने आशंका जताई है कि अदालत की अवमानना को लेकर उन्हें जेल में भी डाला जा सकता है। मीडिया में यह भी खबर आई थी कि इमरान ने तीन शर्ते रखी हैं। पहली, उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाए। दूसरी, उनके खिलाफ राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) के तहत केस नहीं चले और तीसरी, शहबाज शरीफ के अलावा कोई दूसरा प्रधानमंत्री बने।
वहीं, नेशनल असेंबली की कार्यवाही के बीच इमरान खान ने रात में कैबिनेट की बैठक भी बुलाई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के लिए शनिवार सुबह नेशनल असेंबली की कार्यवाही शुरू हुई थी। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच नोकझोंक में कार्यवाई कई बार स्थगित करनी पड़ी। इसके बाद इफ्तार के लिए कार्यवाही को भारतीय समय के अनुसार रात आठ बजे तक स्थगित कर दी गई।
डान अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने डिप्टी स्पीकर के तीन अप्रैल के फैसले को रद करने के शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ अलग से एक पुनर्विचार याचिका दायर की है। ‘नया पाकिस्तान’ बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे इमरान वर्ष 2018 में ‘नया पाकिस्तान’ बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए खान आर्थिक कुप्रबंधन के दावों से घिर गए हैं क्योंकि उनकी सरकार विदेशी मुद्रा भंडार भरने और दोहरे अंकों की मुद्रास्फीति को कम करने के मामले में लड़खड़ा रही है।
पिछले साल पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रमुख की नियुक्ति का समर्थन करने से इन्कार के चलते उन्होंने स्पष्ट रूप से सेना का समर्थन भी खो दिया था। खान लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को आइएसआइ प्रमुख के रूप में रखना चाहते थे लेकिन सेना आलाकमान ने पेशावर में कोर कमांडर के रूप में उनकी नियुक्ति करके उनका तबादला कर दिया। अंत में वह सहमत हो गए थे, लेकिन इससे सेना के साथ उनके संबंधों में खटास आ गई थी।
पाकिस्तान में 75 साल के इतिहास में आधे से अधिक समय सेना ने ही शासन किया है और अब तक सुरक्षा एवं विदेश नीति के मामलों में भी उसी का बोलबाला रहा है। दिलचस्प बात यह है कि किसी भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है।