‘कर्म ही पूजा है’- यदि इस विचार को मूर्त रूप देना हो तो वी-वन होटल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर सूर्यकांत सिंह का विलक्षण व्यक्तित्व और उनका सिफ़र से शिखर तक का सफ़र स्वतः ही ज़ेहन में आता है। अपने बड़े भाई धनराज जी को ईश्वर की भाँति पूजते व् उनके स्वप्न को साकार करने वाले सूर्यकांत सिंह हॉस्पिटैलिटी उद्योग में किसी पहचान के मोहताज नहीं। संघर्ष को अपना आभूषण और अथक परिश्रम को अपनी ताकत मानने वाले सूर्यकांत के बेबाक विचार और ज़िंदगी, झंझाओं से लड़ते हुए निरंतर आगे बढ़ने की एक मिसाल है।
रायपुर, छत्तीसगढ़ में जन्में सूर्यकांत सिंह ने स्नातक के बाद एक सरकारी विद्यालय में बतौर शिक्षक कार्य शुरू किया। लेकिन बड़े भाई धनराज की प्रेरणा और मार्गदर्शन से सूर्यकांत ने हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। हालांकि मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले सूर्यकांत को अपने इस निर्णय के चलते रिश्तेदारों की काफी आलोचना सहनी पड़ी पर यह उनका अपने बड़े भाई के प्रति अटूट विश्वास ही था जिसके फलस्वरूप सूर्यकांत को एक नयी दिशा की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होता जा रहा था।
‘ऑन द डॉट’ (On the Dot) के प्रबंध सम्पादक ऋषभ शुक्ला से एक्सक्ल्यूसिव बातचीत के दौरान अपने सफ़र की स्मृतियों के पिटारे को खोलते हुए सूर्यकांत बताते हैं कि मुझे आज भी याद है कि हॉस्पिटैलिटी उद्योग की मेरी पहली नौकरी में वाणिज्य विषय में स्नातक होने के कारण मुझे कैश काउंटर पर आसीन किया गया। उम्र कम थी…दुनियादारी की समझ भी कम थी.. नयी नौकरी की खुशी का अनुभव कर ही रहा था कि कुछ देर बाद उस होटल के सीनियर शेफ ने मुझे देखते हुए सबके सामने मेरे रूप रंग के बारे में बेहद अभद्र टिप्पणी की। उन्होंने मुझे देखते हुए कहा कि ये किस बड़ी मूंछों वाले दुबले-पतले जंगली इंसान को यहाँ बैठा दिया है…..उनके मुख से ऐसे शब्द निकलते ही मुझे कैश काउंटर से हटाकर स्टोर रूम में जगह दी गयी और 1500 रूपये प्रति माह वेतन निर्धारित किया गया। लगन और जुनून के चलते मैंने अपनी काबिलियत का परिचय देना आरम्भ किया और होटल के कुछ कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली धांधली का पर्दाफ़ाश किया। कुछ समय बाद मुंबई में हो रहे एक इवेंट में मुझे मेरे होटल का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। अति उत्साह से ओत-प्रोत होकर मैंने उस इवेंट को सफल बनाने के लिए अपना खून-पसीना बहाया लेकिन जब वो दिन नज़दीक आया तो मेरे सीनियर शेफ ने बड़ी ही बद्सलूख़ी के साथ मेरी सूरत पर पुनः अभद्र टिप्पणी करते हुए मेरे उत्साह, आत्मविश्वास के लगभग चीथड़े उड़ा कर रखा दिए। उस दिन की घुटन को मैं आज भी भूल नहीं सकता…..
“मैंने खुद को संभालते हुए उस वक़्त यह संकल्प लिया कि अब मुझे हॉस्पिटैलिटी उद्योग में अपनी एक अमिट पहचान बनानी है। अपने मामूली वेतन से धन संचय कर होटल मैनेजमेंट की किताबें पढ़ी, इस इंडस्ट्री की बारीकियां समझी… ज्ञान बढ़ा तो मौके भी मिलने शुरू हुए… मेरे बेहतरीन रिजल्ट ओरिएंटेड कार्यों के फलस्वरूप पदोन्नति होती गयी। वर्ष बीतते गए और अपने कार्य में दक्षता हासिल करता गया। इसके साथ ही अपनी शिक्षा को भी आगे बढ़ाया। एमबीए, होटल मैनेजमेंट की उपाधियाँ अर्जित की। नए होटलस व् रेस्तराँ के लिये कंसलटेंट, इवेंट मैनेजमेंट, ट्रेनिंग जैसे विविध क्षेत्रों में काम किया।”
“दिन बीतते गए….और एक दिन मुझे एक नए होटल में बतौर ग्रुप जनरल मैनेजर ज्वाइन करने हेतु आमंत्रित किया गया। मेरे द्वारा अपना मासिक वेतन 1.5 लाख रूपये बताने पर उस नए होटल के मालिक ने इतना अधिक वेतन माँगने की वजह पूछी…. मैंने उन्हें बताया कि सर, कुछ वर्षों पूर्व आपने मेरी शकल देखकर मेरी कीमत 1500 रुपये लगाई थी… आज आप अपने नए होटल को सुनियोजित तरीके से चलाने हेतु मेरी काबिलियत को मद्देनज़र रखते हुए मुझे इस पद पर नियुक्त करने के इच्छुक हैं …मैंने आज आपको सिर्फ मेरी काबिलियत के आधार अपनी सेवाओं की कीमत बतायी है….मेरे इस जवाब से उस नए होटल के मालिक हतप्रभ थे ……वे वही शेफ थे जिन्होंने मेरे करियर के शुरुआती दिनों में बार-बार मेरी सूरत को मेरी सीरत से अधिक महत्व दिया था।”
“इस घटना के साथ ही मेरे जीवन का नव अध्याय शुरू हुआ। हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में बेहतरीन कार्य के चलते मुझे विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। डीडी न्यूज़, इनक्रेडिबल मैगज़ीन आदि पर मेरे कार्यों को सराहा गया। 2012 से 2015 के बीच हमारे अथक परिश्रम के परिणामस्वरूप हमारी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी का नाम देश भर में प्रख्यात हुआ। इस बीच बड़े भाई धनराज जी की प्रेरणा से ‘होप फॉर किड्स एंड वेलफेयर’ एनजीओ की स्थापना की। वर्ष 2016 में वी-1 होटल्स की नींव रखी गई। देखते ही देखते देहरादून, जयपुर, उदयपुर, बेंगलूरु से लेकर थाईलैंड तक हमारे होटल्स की श्रृंखलायें स्थापित हुईं। लॉकडाउन के दौरान हमने हमारे एनजीओ के माध्यम से प्रवासियों व् निःशक्त लोगों को भोजन, कृत्रिम अंग उपलब्ध कराने के लिए यथासंभव सेवाएं प्रदान की। हमारे एनजीओ के माध्यम से हम हाशिये पर ज़िंदगी व्यतीत कर रहे लोगों के उत्थान के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्रामस का निरंतर आयोजन करते हैं। हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री के साथ-साथ समाज की बेहतरी के लिए हम कटिबद्ध हैं।”
समाज में बदलाव की लहर, एक सशक्त चेंज मेकर के रूप में सूर्यकांत सिंह ने ऐसे तमाम लोगों की ज़िंदगी को सकारात्मकता से भरा है जहां आशा की एक भी किरण नहीं दिख रही थी। वे बताते हैं कि कुछ समय पूर्व मुझे एक महिला ने फ़ोन कर उसके निःशक्त बेटे हेतु इच्छा मृत्यु के लिए गुहार लगाई। मैंने उनको समझाया और उस बच्चे को स्वावलम्बी बनाने का संकल्प लिया। आज उसकी 12 सर्जरी हो चुकी हैं। कुछ इलाज बाकी हैं जिसके बाद वह पूर्णतया स्वस्थ हो जाएगा। आज अपने बेटे को हँसते-खेलते देख उसकी माँ जब फ़ोन पे मुझे यह कहती है कि “सूर्या भाई, आप पर हमें पूरा विश्वास है”…तो हृदय अखंड प्रसन्नता से भर जाता है …. ऐसे तमाम लोगों का विश्वास ही मेरी ताकत है।
इस बात में तनिक भी संदेह नहीं कि आपके बेहतरीन कार्यों के कारण अनेकों लोग आपको अपनी प्रेरणा मानते होंगे लेकिन वो कौन है जिसे आप अपनी प्रेरणास्रोत मानते हैं…. इस प्रश्न के जवाब में सूर्यकांत सिंह कहते हैं, “मेरे बड़े भाई धनराज सिंह जी ही सिर्फ और सिर्फ मेरे प्रेरणास्रोत हैं….. वे ही मेरे भगवान, पिता, भाई, दोस्त सब कुछ हैं… वे आज हमारे बीच नहीं लेकिन मैंने आज भी उनके संस्कारों की विरासत संजो कर रखी है…. उनके हर सपने को पूरा करना मेरा संकल्प है जिसे मैं हर सूरतेहाल में पूरा करूँगा… गुरुकुल की स्थापना, जरुरतमंदों को स्वावलम्बी बनाना….बच्चों को संस्कारों की शिक्षा देना… बड़े भाई के इन सपनों को जल्द ही यथार्थ में तबदील करने के प्रयास जारी हैं।”
पथभ्रष्ट युवाओं के भीतर पल रहे ज़हर को ख़त्म करने हेतु किस मारक की जरुरत है…इस सवाल के जवाब में सूर्यकांत कहते हैं, “मैंने युवाओं को अक्सर कहते सुना है कि देश में बेरोजगारी बहुत है…. काम नहीं है। मैं, इस बात को अस्वीकार करता हूँ क्योंकि मेरा मानना है कि दुनिया में काम की कमी नहीं है बल्कि काम करने वालों की कमी है….. युवाओं को समझना होगा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। मैं, अक्सर ट्रैनिंग देते वक़्त इस बात का ज़िक्र करता हूँ कि जो मालिक अपनी संस्था में नौकर और मालिक दोनों बनकर काम करता है और जो कर्मचारी भी संस्था में नौकर और मालिक बनकर काम करते हैं…उस संस्था की सफलता निश्चित है… अर्थात हमें हर कार्य में दक्षता के लिए प्रयासरत रहना चाहिए न कि कोई काम छोटा या बड़ा है, इसको तौलने में समय बर्बाद करना चाहिए। यही सोच युवाओं को सही पथ पर आगे बढ़ने के लिए काफी है।
हाल ही में हुए दिल दहला देने वाले हत्याकांड जिसमें श्रद्धा नामक युवती को उसके पार्टनर आफताब ने मार डालने के बाद उसके शरीर के 35 टुकड़े कर दिए…… इस जघन्य अपराध पर अपने विचार साझा करते हुए सूर्यकांत कहते हैं, “ऐसी नृशंस हत्याओं के पीछे अमूमन एक वर्ग विशेष के लोगों का ही नाम सामने आता है। ब्लेम गेम के बदले जरुरत है बच्चों को संस्कारों की शिक्षा प्रदान करने की। माता-पिता को अपने बच्चों को उचित-अनुचित में अंतर समझाना होगा। अपने बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान नहीं। जरूरत है बच्चों को प्रेम, स्नेह, संस्कार देने की ताकि वे आत्मनिर्भरता के सही मायनों को समझ सकें।
अपनी ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं व् अनकही दास्तान को साझा करते हुए, बातचीत के अंत में सूर्यकांत कहते हैं, “हम सभी को सकारात्मकता को आत्मसात करना होगा ….कठोर परिश्रम के बल पर आप सब कुछ पा सकते हैं। लगन, जूनून के साथ ‘संतोषं परम् सुखम्’ के सिद्धांत को जीवन में अपनाइये। किसी भी कार्य में, ज़िंदगी के किसी भी पड़ाव में शत प्रतिशत परिश्रम कीजिये। यदि सफलता न मिले तो अपनी कमियों का मूल्यांकन अवश्य कीजिये पर इस बात का संतोष रखिये कि आपके परिश्रम में कोई कमी नहीं थी। खुद पर विश्वास कीजिये। हतोत्साहित न होते हुए ज़िंदगी में आगे बढिये। याद रखिये, तैराक वो नहीं जो समुद्र की लहरों के साथ तैरे…बल्कि असली तैराक वो है जो समुद्र की लहरों को चीरते हुए अपनी मंजिल को पा ले।”
Maannu bha8 good yaar dil jeet Liya yaar joo tuu kar raha haii bhai us maye safal hoo bhai