प्रतिभाएं देश और काल की मोहताज नहीं होतीं। प्रतिकूलताओं के दौर या सीमित अवसरों की विवशता में भी ये अपनी लगनशीलता और कर्मठता से किसी बड़े फलक पर चमकने के संकेत दे ही देती हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं रचना प्रीतम हिरण। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में जन्मी रचना हिरण की स्नातक तक की शिक्षा राजस्थान में ही हुई। इस दौरान की सभी प्रमुख परीक्षाओं में रचना हिरण ने मेरिट में स्थान बनाया। आज रचना हिरण मुंबई महानगर में ‘तेरापंथ महिला मंडल’ की अध्यक्ष हैं। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के कुछ प्रमुख अंश-
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क्या अब महिलाओं को नया आकाश मिल गया है?
आज के समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाएं अपना परचम नहीं लहरा रही हैं। वो चाहे एजुकेशनल क्षेत्र हो या प्रोफेशनल, अथवा हाउस मैनेजमेंट, महिला शक्ति ही है जो हर कार्य में अपने को ढाल सकती है । वो एक साथ अनेक कार्य भी कर सकती है। हम अपने आस-पास ही देखें कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं कितना काम कर सकती हैं । पुरुष ऑफिस जाते हैं, तो वह ऑफिस पर ही कंसंट्रेट कर पाते हैं। लेकिन यदि एक महिला ऑफिस जाती है, तो भी वह घर के सारे काम मैनेज करके जाती है। तो हम कह सकते हैं कि महिलाओं की कार्यक्षमता और सहनशीलता अद्वितीय है। जिस तरह से महिलाएं नई-नई टेक्नोलॉजी को एडॉप्ट करती जा रही हैं, नवीन चिंतन से जुड़ती जा रही हैं, उसके अनुसार वे कार्य करेंगी, तो वह दिन दूर नहीं, जब राष्ट्र में महिलाओं की एक खास पहचान होगी।
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एक महत्वाकांक्षी महिला के सन्दर्भ में निजता और पारिवारिकता को किस रूप में देखती हैं?
मैं खुद का उदाहरण देना चाहूंगी कि मुझे मुंबई में रहते हुए 25 साल हो गए हैं । ड्राइंग और पेंटिंग मेरी हॉबी रही है । मुझे अपनी फैमिली से इतना सपोर्ट मिला कि मैं 20 वर्षों से ड्राइंग और पेंटिंग की क्लासेस लेती आ रही हूं। क्योंकि यह मेरा पैशन है, मेरा शौक है । लेकिन यह पूरा हो पा रहा है, तो केवल मेरी फैमिली के सपोर्ट से। दूसरा है पढ़ाई का शौक। पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। मैंने अभी 2022 में केसी कॉलेज से हिंदी से एमए किया है। उसके बाद संस्कृत से कर रही हूं। साथ ही मेरा पीएचडी भी चालू है । तो आप देखिए मैं इतना कर रही हूं तो क्या मैं अपनी फैमिली को इग्नोर करके कर रही हूं? बिल्कुल नहीं । मुझे फैमिली का पूरा सपोर्ट है, तो हमेशा मेरे दिमाग में भी फैमिली प्रायोरिटी पर रहती है। उनकी जरूरतें पूरा करके ही मैं अपने शौक को जी पा रही हूं।
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आपका तात्पर्य सामंजस्य से है। इस पर थोड़ा और प्रकाश डालेंगी?
देखिए, जब कोई महिला फैमिली को बैलेंस करके चलती है, तो फैमिली मेंबर भी उसका सपोर्ट करते हैं। फैमिली का सपोर्ट मिल जाने से एक महिला के कार्यों को काफी विस्तार मिल जाता है। दोनों एक तराजू के दो पलड़े हैं या एक सिक्के के दो पहलू हैं, जो हमेशा साथ बने रहते हैं। बैलेंसिंग लाइफ ही जिंदगी को खुशहाल बना सकती है। इससे हमें भी कोई रंज नहीं होता कि मैं अपने शौक को आगे नहीं बढ़ा पाई। लेकिन यदि मैं फैमिली में बैलेंस ना करूं, अपने ही शौक को प्रायोरिटी दूं, तो घर में कलह की स्थिति आ जाएगी। नारी के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह दोनों को बैलेंस करके चले। वह पहले परिवार को देखें। अगर परिवार हमारा खुश है, तो आगे जो भी हम कार्य करेंगे, उसमें हमें सफलता जरूर मिलेगी। नारी ही वह धुरी है, जो दोनों में बैलेंस करके चल सकती है और अपनी एक पहचान भी बना सकती है।
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क्या कभी राजनीति में आने का भी ख्याल आता है?
राजनीति में भी मेरा इंटरेस्ट है। मैं लायंस क्लब, जीतो और महिला काव्य मंच सहित कई संस्थाओं से जुड़ी हुई हूं। वहां मुझे अलग- अलग अनुभव होते रहे हैं । मेरी सोच ऐसी है कि हमारी तरफ से किसी को एक परसेंट भी लाभ होता है, तो हमें वह कार्य करना चाहिए। अगर कभी मौका मिला तो मैं देश और समाज के लिए अपना योगदान निश्चित रूप से देना चाहूंगी।
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अपने विचारों को शब्द देने के बाबत क्या सोचती हैं?
हिंदी से एमए करने के दौरान मैंने कर्मवाद पर एक बुक लिखी है। कविताएं तो मैं पहले से ही लिखती रही हूं, जिसका पाठ मैंने महिला काव्य मंच से कई बार किया है। अंतर्विद्यालय स्पर्धाओं में भी प्रतिभागिता कर प्रथम स्थान हासिल किया था।
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धर्म को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
तेरापंथ धर्म संघ, जिसने हमें एक पहचान दी है। एक गुरु, एक आचार्य, एक अनुशासन में चलने की प्रेरणा दी है। आचार्य तुलसी ने महिला शक्ति को इतना आगे बढ़ाया कि तेरापंथ धर्म संघ में महिला मंडल ने एक पहचान बना लिया। धर्म के सन्दर्भ में मैं एक बात महत्त्वपूर्ण समझती हूँ और वो है संस्कृत का अध्ययन। यह आचार्य श्री महाश्रमण जी का एक प्रिय विषय है। संस्कृत हमारी देव भाषा है। उसका अध्ययन, उसकी जानकारी होना अति आवश्यक है । क्योंकि अधिकांश पौराणिक ग्रंथ संस्कृत में ही हैं। इस दिशा में अपनी एक कोशिश के तहत मैंने एसएनडीटी कॉलेज के कॉलेब्रेशन में तेरापंथ धर्म संघ की बहनों को संस्कृत सिखाने का लक्ष्य रखा और लगभग 100-125 बहनों ने संस्कृत सीखा।
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अपनी संगठनात्मक जिम्मेदारियों को किस रूप में देखती हैं?
मुझे महिला मंडल के विभिन्न पदों से होते हुए अध्यक्ष के रूप में भी सेवा देने का मौका मिला। मैं अपने को सौभाग्यशाली मानती हूं कि इतने गौरवशाली धर्म संघ में अपनी सेवा दे सकी। मेरे अध्यक्षीय कार्यकाल में जो आगम पर काम हुआ, उसे मैं सबसे अच्छा कार्य मानती हूं। गुरु इंगित आगम का अध्ययन कराया। पिछले 18 महीनों में “11 आगमों की कर आराधना, 11 वें अधिशास्ता की करें हम अभिवंदना” की संकल्पना से गुरुदेव के मुंबई चातुर्मास 2023 को लेकर हमने एक लक्ष्य बनाया कि जब तक गुरुदेव पधारें, तब तक हम 11 आगमों की आराधना करवाएं । जूम के माध्यम से हमने यह कार्य प्रारंभ किया। 18 महीने में हजारों स्वाध्यायी, आगम स्वाध्याय से जुड़े। इसके विवेचनकर्ता भी प्रबुद्ध व्यक्ति थे, जिन्होंने इसका स्वाध्याय कराया। हमने इसे तेरापंथ महिला मंडल के यूट्यूब चैनल पर भी उपलब्ध करा रखा है । जो भी आगम को सुनना चाहे, वह वहां से सुन सकता है। इस प्रकार आगम अध्ययन और बहनों को संस्कृत सिखाने के दो महनीय कार्य मेरे अध्यक्षीय कार्यकाल में हुए हैं, जिसे मैं अपना सौभाग्य मानती हूं।
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चातुर्मासिक स्वागत की प्रस्तुतियां काफी आकर्षक लगीं। इसके पीछे की अवधारणा क्या थी ?
गुरुदेव के आगमन के उपलक्ष्य में मुंबई में छिपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाना। इसके के लिए ‘सुर संगम’ का बड़ा आयोजन किया। मुंबई की लगभग 500 लेडिज में से सिलेक्ट करके 65 लेडिज को अलग-अलग ग्राउंड में चुना और फिर 13 फिनालिस्ट का एक ग्रैंड फिनाले रखा। इसके तहत गुरुदेव के स्वागत में नए-नए गीतों की प्रस्तुतियों का संजोग बना। यह कुछ ऐसे कार्य हैं, जो हमेशा मेरे मानस पटल पर एक सुखद यादों के रूप में अंकित रहेंगे।
आपकी प्रतिभा,कार्यक्षमता दिनबदिन निखरती जा रही है।ये संपूर्ण समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है।आपसे प्रेरित होकर और भी महिलाएं अपना आध्यात्मिक, सामाजिक और भी कई क्षेत्रों मे अपना विकास कर सकती है।
ओम् अर्हम्
It was great to read rachna ji view she is woman of substance
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