रॉयल पॉम विला: चतुर्विध धर्म संघ के साथ आर्हत वाणी का सरल–सुगम प्रतिपादन करते हुए तीर्थंकर के प्रतिनिधि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अब गांधीधाम से मात्र दो पड़ाव की दूरी पर है। एक ओर जहां अतिरिक्त विहार करते हुए आचार्य प्रवर प्रायः हर क्षेत्र में पधार कर श्रद्धालुओं को कृतार्थ कर रहे है वहीं गुरुदेव की यह वृहद गुजरात यात्रा हर श्रावक समाज के लिए चिरस्मरणीय बन रही है। आज प्रातः आचार्य श्री ने भद्रेश्वर जैन तीर्थ से मंगल प्रस्थान किया और लगभग 13 किलोमीटर विहार कर रॉयल पॉम विला में प्रवास हेतु पधारे। आगामी 05 से 19 मार्च तक आचार्य प्रवर का गांधीधाम में प्रवेश निर्धारित है।
आर्हत वांग्मय फरमाते हुए आचार्य प्रवर ने कहा – इच्छा आकाश के समान अनंत होती है। व्यक्ति को थोड़ा मिल गया तो थोड़ा ओर मिल जाएं तो थोड़ा और मिल जाएं की इच्छा हो जाती है। किसी भी परिवार में व पारिवारिक गृहस्थी में इच्छा विहीन बन जाना बड़ा कठिन है। तीन तरह के लोग होते हैं – अतिच्छ, अल्पेच्छ व अनिच्छ। साधु महावर्ती होते है, गृहस्थ बारहव्रती, अणुव्रती हो सकते है और कुछ अव्रती लोग भी होते हैं। व्यक्ति को अपनी बढ़ती उम्र के साथ व्यक्तिगत स्वामित्व को कम करने का प्रयास करना चाहिए। यदि थोड़े संसाधनों से काम चल सकता है तो अधिक की इच्छा क्यों करनी। यह इच्छाओं व परिग्रह के संयम का बोधपाठ है।
गुरुदेव ने कथा के माध्यम से प्रेरणा देते भी आगे कहा कि विशेष परिस्थितियों के अतिरिक्त विदेश यात्रा आदि का भी त्याग किया जा सकता है। बिना मतलब यात्रा करने का भी संकल्प किया जा सकता है। खाना खाने के बाद आधा घंटा, तीन, चार घंटे कुछ न खाने का त्याग भी बड़ी आसानी के किया जा सकता है। कोई रात्रिभोजन त्याग ना कर सके तो कम से कम रात्रि में 10 बजे के बाद खाना खाने से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। समायिक साधना में मुखपत्ती व चादर ओढ़ कर समायिक साधना करने से साधुत्व का बाहरी रूप तो आता ही है, साथ ही मन को भी एकाग्र करने का प्रयास करना चाहिए। बढ़ती उम्र के साथ जीवन सधनामय बने ऐसा प्रयास रहे। एक उम्र आने के बाद सामाजिक पदों से भी कुछ उदासीनता रख कर जीवन में संयम व साधना को प्राथमिकता देनी चाहिए।