नई दिल्ली: भारत हमेशा कुछ अलग करने में विश्वास रखता है। जब दुनिया अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘प्रतिस्पर्धी टैरिफ’ (reciprocal tariffs) की घोषणा के बाद उथल-पुथल से गुजर रही है, तब कई देश जैसे चीन और कनाडा ने तुरंत जवाबी शुल्क (tit-for-tat tariffs) लागू कर दिए। चीन ने अमेरिका के 34 प्रतिशत टैरिफ का उसी अनुपात में जवाब दिया, वहीं कनाडा ने ऑटोमोबाइल सेक्टर पर 45 प्रतिशत शुल्क लगाकर अमेरिका की नकल की। कई देशों ने वाशिंगटन से पुनः बातचीत का रास्ता अपनाया ताकि वे ट्रंप के टैरिफ के प्रभाव से बच सकें।
भारत ने इस मसले पर अलग रुख अपनाया। न तो उसने अमेरिका के 26 प्रतिशत टैरिफ पर कोई जवाबी कार्रवाई की, न ही अपने मौजूदा टैरिफ में कोई कमी की। इसके बजाय, भारत ने अपनी व्यापारिक नीति को इस तरह ढालने की योजना बनाई है जिससे अमेरिकी टैरिफ का असर भारतीय निर्यातकों पर न्यूनतम हो। साथ ही, दोनों देश एक “विन-विन” (win-win) व्यापार समझौते की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। ट्रंप की घोषणा से पहले ही भारत ने अमेरिका के साथ एक मेगा व्यापार समझौते की पहल कर अपने लिए एक मजबूत स्थिति बना ली थी।
जयशंकर-रूबियो की फोन पर बातचीत
इस संबंध में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने सोमवार को फोन पर बातचीत की। दोनों नेताओं ने सहमति जताई कि द्विपक्षीय व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देना दोनों देशों के हित में होगा। साथ ही, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति पर भी विस्तृत चर्चा हुई।
बातचीत के बाद डॉ. जयशंकर ने कहा, “विदेश मंत्री मार्को रूबियो से बात कर अच्छा लगा। इंडो-पैसिफिक, भारतीय उपमहाद्वीप, यूरोप, पश्चिम एशिया और कैरेबियन पर विचारों का आदान-प्रदान किया। द्विपक्षीय व्यापार समझौते को शीघ्र पूरा करने की आवश्यकता पर सहमति बनी। संपर्क में बने रहने की प्रतीक्षा है।”
टैरिफ से राहत की संभावना
रायटर्स समाचार एजेंसी के मुताबिक, एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि भारत ने ट्रंप के टैरिफ आदेश में दिए गए उस प्रावधान का अध्ययन किया है जिसमें उन देशों को छूट की संभावना है जो “गैर-प्रतिस्पर्धी व्यापार व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं।”
एक अन्य अधिकारी के अनुसार, भारत इस समय चीन, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे एशियाई देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है, जो अमेरिका के उच्च टैरिफ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। भारत और अमेरिका ने शरद ऋतु 2025 तक एक प्रारंभिक व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने पर सहमति बनाई है, जिससे टैरिफ संबंधी सभी मतभेदों का समाधान संभव हो सकेगा।
भारत की हालिया पहलें
हालांकि, भारत ने यह संकेत भी दिया है कि अब जबकि अमेरिका के टैरिफ भारत पर लागू हो चुके हैं, तो बातचीत समान स्तर पर होगी और अमेरिका की तरफ से दी जाने वाली कुछ शर्तें – विशेष रूप से फार्मा और कृषि सब्सिडी हटाने की – अब लागू नहीं होंगी।
वहीं, भारत ने ट्रंप को प्रभावित करने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं – जैसे हाई-एंड बाइक और बॉर्बन व्हिस्की पर शुल्क कम करना, और डिजिटल सेवाओं पर लगने वाला टैक्स पूरी तरह हटाना, जिससे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, अमेज़न और एक्स जैसी अमेरिकी टेक कंपनियों को राहत मिली है।
भारत-अमेरिका के मजबूत संबंध
भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है जो लगभग हर प्रमुख क्षेत्र को कवर करती है। दोनों देशों के बीच साझा लोकतांत्रिक मूल्य, रणनीतिक हित और लोगों के बीच मजबूत संपर्क इस संबंध को गहराते हैं।
आर्थिक रूप से भी दोनों देश बेहद करीबी भागीदार हैं। भारत और अमेरिका ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को मौजूदा $190 अरब से बढ़ाकर $500 अरब करने का लक्ष्य तय किया है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 में अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा एफडीआई स्रोत था, जिसने $4.99 अरब यानी कुल इक्विटी इनफ्लो का लगभग 9 प्रतिशत योगदान दिया। भारतीय कंपनियां भी अमेरिका में बड़े स्तर पर निवेश कर रही हैं – CII की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 163 भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में $40 अरब से अधिक का निवेश किया है, जिससे 4.25 लाख प्रत्यक्ष नौकरियां बनी हैं।