हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत समेत कई देशों पर लगाए गए जवाबी शुल्क को लेकर विशेषज्ञों की राय सामने आई है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत पर इस कदम का नकारात्मक असर अपेक्षाकृत कम होगा। इसके विपरीत, यह भारत के लिए वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करने का अवसर भी बन सकता है।
भारत को मिला तुलनात्मक लाभ
अमेरिका ने भारत पर 26 प्रतिशत का जवाबी शुल्क लगाया है, जो बांग्लादेश (37%), श्रीलंका (44%) और वियतनाम (46%) जैसे प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में कम है। इससे भारत को कीमतों के लिहाज से वैश्विक बाजार में अपना दायरा बढ़ाने का अवसर मिलेगा। आरआईएस (विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली) के महानिदेशक प्रो. सचिन चतुर्वेदी का मानना है कि अमेरिका के इस कदम का वास्तविक असर धीरे-धीरे स्पष्ट होगा, लेकिन फिलहाल भारत इससे बुरी तरह प्रभावित नहीं दिखता।
महंगाई और नौकरियों पर सीमित असर
चतुर्वेदी के अनुसार, अमेरिका को भारत का निर्यात करीब 75.9 अरब डॉलर का है, जिसमें फार्मास्युटिकल (8 अरब डॉलर), कपड़ा (9.3 अरब डॉलर) और इलेक्ट्रॉनिक्स (10 अरब डॉलर) प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में मांग बनी रहने की संभावना है। औषधि क्षेत्र को तो छूट की श्रेणी में भी रखा गया है। ऐसे में भारत में महंगाई या रोजगार पर गंभीर असर की आशंका नहीं है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अवसर
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत इस नई व्यापारिक परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालने में सक्षम है। जवाबी शुल्क की दर कम होने के कारण भारत वैश्विक व्यापार में और मजबूत हो सकता है। भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) में अमेरिकी भागीदारी और हाल ही में हुए भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) से भी भविष्य में सकारात्मक प्रभाव की उम्मीद है।
अर्थव्यवस्था पर मिश्रित असर की संभावना
मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एन आर भानुमूर्ति का कहना है कि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि अमेरिका के इस कदम का अंतिम असर क्या होगा। कुछ क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं, जबकि कुछ लाभ की स्थिति में भी आ सकते हैं। घरेलू महंगाई पर इसका मिला-जुला असर पड़ेगा, खासकर जब वैश्विक तेल की कीमतों में गिरावट आई है।
कौन से क्षेत्र प्रभावित होंगे?
भानुमूर्ति के अनुसार, अमेरिका के जवाबी शुल्क से वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और इस्पात क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। वहीं, औषधि और पेट्रोलियम जैसे उत्पादों को छूट मिली हुई है। इसके अलावा, रुपये-डॉलर की विनिमय दर भी असर डाल सकती है।
हालांकि अमेरिकी शुल्क से वैश्विक व्यापार में कुछ अस्थिरता जरूर आई है, लेकिन भारत पर इसका सीमित असर दिखाई दे रहा है। भारत के पास इस चुनौती को अवसर में बदलने की पूरी क्षमता है। प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में कम शुल्क दर, रणनीतिक व्यापार समझौते और मजबूत मांग वाले क्षेत्रों की मौजूदगी इसे संभव बनाती है। आने वाले समय में भारत इन परिवर्तनों से लाभ उठाते हुए अपने वैश्विक व्यापार को और सुदृढ़ बना सकता है।