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भारत-यूरोप संबंधों में चाहिए संवेदनशीलता: विदेश मंत्री जयशंकर

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भारत-यूरोप संबंधों में चाहिए संवेदनशीलता: विदेश मंत्री जयशंकर

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
May 4, 2025
in मुख्य समाचार
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जयशंकर

डेस्क:विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के साथ गहरे संबंध विकसित करने के लिए यूरोप को कुछ संवेदनशीलता दिखाने की सलाह दी है। साथ ही, उन्होंने कहा कि पारस्परिक हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। भारत भागीदारों की तलाश कर रहा है, न कि उपदेशकों की। जयशंकर ने कहा कि भारत ने हमेशा रूसी यथार्थवाद की वकालत की है। भारत और रूस के बीच अहम सामंजस्य है और वे इस मामले में एक-दूसरे के पूरक हैं। विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान रूस को शामिल किए बिना खोजने के पश्चिम के पहले के प्रयासों की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि इसने यथार्थवाद की बुनियादी बातों को चुनौती दी है। उन्होंने आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम में कहा, ‘मैं जैसे रूस के यथार्थवाद का समर्थक हूं, वैसे ही मैं अमेरिका के यथार्थवाद का भी समर्थक हूं।’

एस जयशंकर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि आज के अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की पारस्परिकता को खोजना है, न कि वैचारिक मतभेदों को आगे रखकर मिलकर काम करने की संभावनाओं को कमजोर होने देना।’ विदेश मंत्री ने आर्कटिक में हालिया घटनाक्रम के दुनिया पर पड़ने वाले असर और बदलती वैश्विक व्यवस्था के क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर व्यापक चर्चा करते हुए ये बातें कहीं। जयशंकर ने यूरोप से भारत की अपेक्षाओं संबंधी एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि उसे उपदेश देने के बजाय पारस्परिकता के ढांचे के आधार पर कार्य करना शुरू करना होगा। उन्होंने कहा, ‘जब हम दुनिया को देखते हैं तो हम साझेदारों की तलाश करते हैं। हम उपदेशकों की तलाश नहीं करते, विशेषकर ऐसे उपदेशकों की, जो अपनी बातों का अपने देश में स्वयं पालन नहीं करते, लेकिन अन्य देशों को उपदेश देते हैं।’

विदेश मंत्री ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यूरोप का कुछ हिस्सा अब भी इस समस्या से जूझ रहा है। कुछ हिस्से में बदलाव आया है।’ उन्होंने कहा कि यूरोप को कुछ हद तक वास्तविकता का एहसास हुआ है। उन्होंने कहा, ‘अब हमें यह देखना होगा कि वे इस पर आगे बढ़ पाते हैं या नहीं। लेकिन, हमारे दृष्टिकोण से अगर हमें साझेदारी करनी है तो कुछ आपसी समझ होनी चाहिए, कुछ संवेदनशीलता होनी चाहिए, कुछ पारस्परिक हित होने चाहिए। यह अहसास होना चाहिए कि दुनिया कैसे काम करती है।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि ये सभी कार्य यूरोप के विभिन्न भागों में अलग-अलग स्तरों पर प्रगति पर हैं, इसलिए कुछ देश आगे बढ़े हैं, कुछ थोड़े कम।’

जयशंकर ने भारत-रूस संबंधों पर कहा कि दोनों देशों के बीच संसाधन प्रदाता और संसाधन उपभोक्ता के रूप में अहम सामंजस्य है। वे इस मामले में एक दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा, ‘जहां तक ​​रूस का सवाल है, हमने हमेशा रूसी यथार्थवाद की वकालत करने का दृष्टिकोण अपनाया है।’ रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत ने रूस के साथ संबंध बरकरार रखे और उसने पश्चिमी देशों की बढ़ती बेचैनी के बावजूद रूसी कच्चे तेल की खरीद में वृद्धि की।

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