नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना अपनी युद्ध क्षमता को बढ़ाने के लिए 114 नए मध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमानों की खरीद की योजना बना रही है। वायुसेना अगले चार से पांच वर्षों के भीतर वैश्विक टेंडर जारी कर इन विमानों को अपने बेड़े में शामिल करना चाहती है। इस निविदा में बोइंग, लॉकहीड मार्टिन, दासौ और साब जैसी प्रमुख वैश्विक एयरोस्पेस कंपनियां भाग ले सकती हैं।
राफेल, ग्रिपेन और एफ-15 जैसे विमान दौड़ में शामिल
इस प्रतिस्पर्धा में राफेल, ग्रिपेन, यूरोफाइटर टाइफून, मिग-31, एफ-16 और एफ-15 जैसे लड़ाकू विमान शामिल हो सकते हैं। इनमें से अधिकांश विमान पहले भी भारतीय वायुसेना की 126 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान खरीद प्रक्रिया में भाग ले चुके हैं और इनका मूल्यांकन हो चुका है। हालांकि, इस बार अमेरिकी कंपनी बोइंग का एफ-15 स्ट्राइक ईगल लड़ाकू विमान पहली बार इस दौड़ में शामिल होगा।
वायुसेना की स्क्वाड्रन क्षमता बढ़ाने की योजना
रक्षा सूत्रों के अनुसार, 114 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों की खरीद वायुसेना को अगले 10 वर्षों तक अपनी स्क्वाड्रन क्षमता बनाए रखने में मदद करेगी। इसके अलावा, वायुसेना में स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (LCA) मार्क 1A और मार्क-2 को भी शामिल किया जाएगा। वायुसेना की योजना वर्ष 2047 तक अपनी स्क्वाड्रन क्षमता को बढ़ाकर 60 लड़ाकू विमान स्क्वाड्रन तक ले जाने की है।
रक्षा मंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट
रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में गठित एक उच्च स्तरीय समिति ने हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में वायुसेना की लड़ाकू क्षमताओं को मजबूत करने के लिए 114 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों की जरूरत को रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, वायुसेना वर्ष 2037 तक अपने 10 लड़ाकू स्क्वाड्रनों को सेवानिवृत्त करेगी।
पुराने विमानों की जगह लेंगे नए लड़ाकू विमान
रक्षा सूत्रों के मुताबिक, अगले 10-12 वर्षों में वायुसेना अपने पुराने लड़ाकू विमानों जैसे जगुआर, मिराज-2000 और मिग-29 को चरणबद्ध तरीके से हटा देगी। मिग श्रृंखला के विमानों को हटाने और नए स्वदेशी लड़ाकू विमानों को शामिल करने में हो रही देरी के कारण वायुसेना की स्क्वाड्रन क्षमता में गिरावट दर्ज की गई है। फिलहाल, वायुसेना केवल 36 राफेल विमानों को अपने बेड़े में शामिल कर पाई है, जो 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमान माने जाते हैं।
दो मोर्चों पर युद्ध की तैयारी
वायुसेना का मानना है कि अगले 5 से 10 वर्षों में नए लड़ाकू विमानों को शामिल करने से भारत की दो मोर्चों पर युद्ध लड़ने की क्षमता में वृद्धि होगी। इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत भारतीय वायुसेना भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी सामरिक और युद्धक शक्ति को मजबूत कर रही है।