बुधवार को नेम, निष्ठा का महापर्व चैती छठ पर व्रतियों ने शाम में खरना अनुष्ठान किया। व्रतियों ने सूर्यास्त से पूर्व स्नान के बाद अराध्य देवी-देवताओं का आह्वान किया। इसके बाद लाल गेहूं से तैयार आटे से व्रतियों ने रोटी तैयार की। मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से तैयार ताव पर व्रती गुड़ और चावल से खीर बनाया।
पूजा-अर्चना और हवन के बाद व्रतियों ने खरना का अनुष्ठान पूरा किया। इस दौरान घर वालों ने किसी तरह का शोर नहीं होने का विशेष ख्याल रखा। मान्यता है कि खरना के दौरान किसी तरह का शोर होने पर व्रती खरना प्रसाद ग्रहण नहीं करते हैं।
खरना के समापन पर श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया गया। व्रती महिलाओं ने घर पर पहुंची सुहागिनों को सिंदूर दिया। इसके बाद सभी ने खरना स्थल पर शीश नवाया और व्रती से आशीष मांगी। श्रद्धालुओं ने व्रती का चरण स्पर्श कर परिवार के लिए मंगल कामना की।
चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर गुरुवार को शाम में व्रती अस्ताचलगामी सूर्यदेव को प्रथम अर्घ्य अर्पित करेंगे। अर्घ्य अर्पित करने से पूर्व व्रती जल में खड़े होकर आदिदेव भुवन भास्कर को नमन कर एवं परिवार, समाज की सुख-शांति के लिए मंगल कामना करेंगे। इस मौके पर बड़ी संख्या में तालाबों पर उपस्थित श्रद्धालु दूध, पुष्प एवं जल से अर्घ्य देंगे। अर्घ्य अर्पित करने के बाद व्रती एवं साथ आए श्रद्धालु छठि मैया के पारम्परिक गीत गाते हुए अपने-अपने घरों को लौट जाएंगे। शुक्रवार को सुबह व्रती उगते सूर्य देव को द्वितीय अर्ध्य अर्पित करेंगे। अर्ध्य अर्पण एवं पूजा-अर्चना के बाद चार दिनी महापर्व छठ का समापन होगा।