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देश के डिफेंस को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे स्वदेशी सैटेलाइट, समझ लीजिए कैसे

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
May 27, 2025
in देश, मुख्य समाचार
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देश के डिफेंस को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे स्वदेशी सैटेलाइट, समझ लीजिए कैसे

नई दिल्ली : वे अदृश्य नायक थे। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान आसमान में अदृश्य रहकर लेकिन सतर्क आंखों से अपने काम को बखूबी अंजाम दिया। कार्टोग्राफी उपग्रहों (कार्टोसैट), रडार इमेजिंग उपग्रहों (रिसैट्स) और पृथ्वी-अवलोकन उपग्रहों (ईओएस) ने पाकिस्तान की एयर डिफेंस सिस्टम और हवाई ठिकानों पर सटीक हमला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे यह बात सामने आई कि हाई तकनीक वाले युद्ध के युग में अंतरिक्ष में ऐसे और अधिक मूक प्रहरी होने का महत्व है।

निगरानी क्षमता बढ़ाने की जरूरत

भारत के पास इस समय विभिन्न कक्षाओं में करीब 10 सर्विलांस सैटेलाइट हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष वी नारायणन और अंतरिक्ष नियामक भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (आईएनएसपीएसीई) के अध्यक्ष पवन गोयनका ने हाल ही में देश की निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया है।

7-9 मई को नई दिल्ली में आयोजित वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण सम्मेलन 2025 में गोयनका ने कहा कि भारत अगले पांच वर्षों में 52 जासूसी उपग्रहों का एक समूह कक्षा में स्थापित करने की योजना बना रहा है। इनमें से 21 इसरो की तरफ से डेवलप किए जाएंगे और बाकी को 31 प्राइवेट कंपनियां बनाएंगी।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी 18 मई को अपना 101वां उपग्रह, EOS-09 (रिसैट-1B) लॉन्च करने वाली थी। सभी मौसम की परिस्थितियों में हाई-रिजॉल्यूशन वाली तस्वीरों को कैप्चर करने में सक्षम एडवांस सी-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) प्रणाली से लैस पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह, भारत के निगरानी बेड़े में एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त होने का इरादा रखता था। हालांकि, पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) रॉकेट की तीसरे चरण की प्रोपल्शन सिस्टम में गड़बड़ी के कारण मिशन को झटका लगा।

सर्विलांस में देश की बड़ी योजना

नारायणन ने हाल ही में उल्लेख किया कि भारत अब लगभग 55 उपग्रहों का संचालन करता है। इससे देश अपनी सीमाओं और 7,500 किलोमीटर के समुद्र तट को व्यापक रूप से कवर करने के लिए 100-150 और सैटेलाइन जोड़ने की योजना बना रहा है। 11 मई को अगरतला में केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए, हमें अपने उपग्रहों पर भरोसा करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारे समुद्र तटों और संवेदनशील क्षेत्रों की निगरानी उपग्रह और ड्रोन तकनीक के बिना संभव नहीं है।

अब तक इसरो ने करीब 127 भारतीय सैटेलाइट को उनकी कक्षा में स्थापित किया है। इनमें प्राइवेट कंपनियों और शैक्षणिक संस्थानों के सैटेलाइट भी शामिल हैं। इनमें से 22 सरकारी स्वामित्व वाले उपग्रह वर्तमान में पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में काम कर रहे हैं, जबकि 29 अंतर्गर्भाशयी पृथ्वी की कक्षा (GEO) में हैं। लेकिन अंतरिक्ष विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने के लिए हजारों उपग्रहों की आवश्यकता है। चीन ने लगभग 20,000 सैटेलाइट को तैनात करने की योजना बनाई है।

 

भारत को अगले पांच से 10 वर्षों में कम से कम 10,000 उपग्रहों की आवश्यकता होगी। ये उपग्रह न केवल निगरानी की जरूरतों को पूरा करेंगे बल्कि संचार, पृथ्वी अवलोकन, नेविगेशन, मौसम पूर्वानुमान, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि में भी सहायक होंगे।
डॉ. सुब्बा राव पावुलुरी, संस्थापक-अध्यक्ष और एमडी, अनंत टेक्नोलॉजीज

प्राइवेट खिलाड़ी आगे आए

अनंत टेक्नोलॉजीज, का-बैंड (एक रेडियो फ्रीक्वेंसी रेंज जो तेज़ डेटा ट्रांसफ़र और उच्च बैंडविड्थ की अनुमति देती है) में GSO संचार उपग्रह सेवाएं प्रदान करने के लिए IN-SPACe की मंज़ूरी पाने वाली पहली निजी भारतीय कंपनी है। ये कंपनी पहले से ही भारत का पहला निजी GEO उपग्रह विकसित कर रही है। इसका वजन 3,000 किलोग्राम तक है। यह अगले कुछ वर्षों में दो से तीन अन्य उपग्रहों को भी लॉन्च करने की योजना बना रही है। पावुलुरी ने कहा कि भारत को कम्युनिकेशन सैटेलेलाइट की बहुत ज़रूरत है। स्काईरूट एयरोस्पेस के सह-संस्थापक और सीईओ पवन कुमार चंदना ने भी इस बात को दोहराया।

चंदना ने कहा कि यह भारतीय स्टार्टअप के लिए न केवल घरेलू बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बल्कि तेजी से बढ़ते वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भी अपनी क्षमताएं विकसित करने का एक शानदार अवसर प्रस्तुत करता है। स्काईरूट ने नवंबर 2022 में भारत के पहले निजी रॉकेट को सबऑर्बिटल स्पेस में सफलतापूर्वक लॉन्च किया। अब वह इस साल के अंत में अपने पहले ऑर्बिटल लॉन्च वीकल, विक्रम-1 को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है।

लॉन्च बेबी, लॉन्च हो मंत्र

बेंगलुरु स्थित स्पेस टेक्नोलॉजी स्टार्टअप दिगंतरा के सह-संस्थापक और सीटीओ तनवीर अहमद का कहना है कि अगले कुछ वर्षों में भारत का मंत्र ‘लॉन्च, बेबी, लॉन्च’ होना चाहिए। इससे चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों के साथ क्षमता अंतर को कम किया जा सके। दिगंतरा, जिसने इस साल जनवरी में दुनिया का पहला वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता (एसएसए) उपग्रह – एससीओटी (ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग के लिए स्पेस कैमरा) लॉन्च किया था, अब अगले कुछ वर्षों में लगभग 40 और लॉन्च करने की योजना बना रहा है।

अहमद ने ऐसे उद्देश्य को पूरा करने में टेक्नोलॉजी स्वदेशीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमें न केवल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले देशों की तकनीकी क्षमताओं से मेल खाना चाहिए, बल्कि चीन जैसे देशों के पैमाने का भी अनुकरण करना चाहिए। अगर हम अपने पत्ते सही से खेलते हैं, तो हम कुछ वर्षों के भीतर ऐसा करने में सक्षम हो सकते हैं।

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‘उपग्रहों की छतरी’ की जरूरत

नीति आयोग के सदस्य और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व महानिदेशक डॉ. वी के सारस्वत के अनुसार, भारत को अपनी भौगोलिक सीमाओं के लगभग 1,500-3,000 किमी के दायरे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने के लिए निचली पृथ्वी की कक्षा (एलईओ) में ‘उपग्रहों की एक छतरी’ की तत्काल आवश्यकता है।

सारस्वत, जो तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी (2006-2014) के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में भी काम कर चुके हैं। वे कहते हैं कि हमें प्रारंभिक चेतावनी क्षमताओं वाले सैटेलाइट्स की आवश्यकता है जो रॉकेट या मिसाइल के उड़ान भरने के क्षण में ही उसके धुएं का पता लगाने में सक्षम होंगे।

 

नेवी, आर्मी और एयरफोर्स के बाद अंतरिक्ष रक्षा का चौथा क्षेत्र बन जाएगा। साइबरस्पेस के साथ-साथ ये चारों निकट भविष्य में सबसे महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं।
अविनाश चंदर, पूर्व महानिदेशक, डीआरडीओ

 

डीआरडीओ के एक अन्य पूर्व महानिदेशक अविनाश चंदर का मानना है कि नेवी, आर्मी और वायुसेना के बाद अंतरिक्ष रक्षा का चौथा क्षेत्र बन जाएगा। उन्होंने कहा कि साइबरस्पेस के साथ-साथ ये चारों सबसे महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। भारतीय अंतरिक्ष संघ (आईएसए) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल ए के भट ने कहा कि हमारे पास वर्तमान में 9 से 11 उपग्रह हैं। इन उपग्रहों ने हमारी खुफिया, निगरानी और टोही (आईएसआर) क्षमताओं में सुधार किया है। लेकिन, दूरस्थ आईएसआर के लिए – जिसका मतलब है 24×7 निगरानी – हमें और भी बहुत कुछ चाहिए।

डिफेंस के अलावा इन क्षेत्रों में अहम

सिर्फ सैन्य अनुप्रयोगों से इतर, भारतीय अंतरिक्ष तकनीक स्टार्टअप की बढ़ती संख्या पहले से ही खनन, नेविगेशन, भू-स्थानिक मानचित्रण और कृषि जैसे क्षेत्रों की सहायता के लिए उपग्रह परियोजनाओं पर काम कर रही है। उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) के डेटा से पता चलता है कि, 2023 तक, भारत में 189 अंतरिक्ष तकनीक स्टार्टअप थे।

प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने पहले ही उपग्रह निर्माण और संचालन आदि जैसे क्षेत्रों में FDI सीमा को 100% तक कर दिया है। इसने क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए IN-SPACe की तरफ से मैनेज हो रहे 1,000 करोड़ रुपये के उद्यम पूंजी (VC) फंड की भी घोषणा की है।

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बेंगलुरु स्थित गैलेक्सआई स्पेस भी इस साल अक्टूबर में दुनिया का पहला मल्टी-सेंसर इमेजिंग सैटेलाइट लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है। गैलेक्सआई के सह-संस्थापक प्रणित मेहता ने कहा कि सिंथेटिक अपर्चर रडार और मल्टी-स्पेक्ट्रल इमेजर से लैस मल्टी-सेंसर इमेजिंग सैटेलाइट धरती पर किसी भी स्थान के लिए मौसम की जानकारी देने में सक्षम होंगे, चाहे बादल, धुआं या बारिश ही क्यों न हो। यह रक्षा, खनन और कृषि जैसे क्षेत्रों के लिए कई तरह के लाभ प्रदान करता है।

मेहता ने कहा कि हम अगले कुछ वर्षों में लगभग छह सैटेलाइट लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं और अगर मांग बढ़ी तो हम इसे बढ़ाकर 10 से थोड़ा अधिक कर सकते हैं। हैदराबाद स्थित ध्रुव स्पेस भी इस साल के अंत में अपना पहला कॉमर्शियल सैटेलाइट, पी-30 लॉन्च करने की तैयारी में है। LEO में रखा जाने वाला यह 2050 किलोग्राम वर्ग का अर्थ-ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट, अन्य पेलोड के साथ एक ऑस्ट्रेलियाई क्लाइंट के लिए हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजर ले जाएगा।

लंबा रास्ता और चुनौतियां

आईएसपीए के संस्थापक निदेशक विंग कमांडर सत्यम कुशवाहा कहते हैं कि भारत को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, और चुनौतियां बनी हुई हैं। उनके अनुसार यह फेरारी की तुलना मारुति 800 से करने जैसा है। चीन की तरफ से ‘X’ संख्या में उपग्रह प्रक्षेपित करने का मतलब यह नहीं है कि हमें भी ऐसा ही करना चाहिए। हमें यह देखने की जरूरत है कि हमारी सुरक्षा चुनौतियां क्या हैं और उनके लिए क्या समाधान हो सकते हैं। हमें तर्कसंगत होने की जरूरत है।

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