लुहारी जाटू, भिवानी: भिवानीवासियों को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराने के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को प्रातः की मंगल बेला में अगले गंतव्य की ओर गतिमान होने से पूर्व ही सैंकड़ों की संख्या में भिवानीवासी पूज्य सन्निधि में उपस्थित हो गए। वर्षों बाद अपने आराध्य का एकदिवसीय प्रवास का सौभाग्य प्राप्त कर जन-जन महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रति प्रणत नजर आ रहा था। प्रेक्षा विहार/तेरापंथ भवन में उपस्थित श्रद्धालुओं पर आशीषवृष्टि
की। इस दौरान भिवानी श्रावक समाज ने आचार्यश्री से 60 संकल्पों को स्वीकार किया। सभी को संकल्पयुक्त आशीष से भावित बना शांतिदूत आचार्यश्री अलगे गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए।
मार्ग में सैंकड़ों-सैंकड़ों लोगों को आचार्यश्री के दर्शन और यथानुकूलता आशीष और पावन पथदर्शन का अवसर उपलब्ध हो रहा था। जैसे-जैसे आचार्यश्री के कदम आगे बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे सूर्य की किरणें भी तीक्ष्ण हो रही थीं और लोगों को तपन का अहसास करा रही थीं। चढ़ता पारा भी महातपस्वी के गतिमान चरणों को रोक पाने में अक्षम था। मार्ग में जी लीटर वैली स्कूल के विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। आचार्यश्री उनके निकट पधारे और मंगल आशीर्वाद के साथ नशामुक्ति का संकल्प भी कराया। भिवानी जिला मुख्यालय से लगभग तेरह किलोमीटर का विहार आचार्यश्री लुहारी जाटू स्थित सेठ हरनाम दास राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे।
विद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन में उपस्थित लोगों को आचार्यश्री ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि धर्म ऐसा तत्त्व है जो मानव के व्यवहार को और विशद बना देता है। साधु के लिए धर्म की बड़ी-बड़ी बातें बताई गई हैं तो सामान्य गृहस्थों के लिए भी धर्म की छोटी-छोटी बातें बताई गई हैं। अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से आचार्यश्री तुलसी ने इन्हीं छोटे-छोटे नियमों का प्रचार किया था। जिसे मानव अपने जीवन में धारण कर अपने जीवन को धर्म से भावित बना सकता है।
शास्त्रों में गृहस्थों के लिए पहला धर्म बताया गया-सुपात्र में दान देना। गृहस्थ जो साधु शुद्ध हो उसे दान देने का प्रयास करना चाहिए। वस्त्र, आहार आदि जो भी साधु को अपेक्षित हो और तो गृहस्थ उसे सहज रूप में दान देकर धर्माचरण कर सकता है। गृहस्थ को अपने जीवन में गुरुओं के प्रति भी विनय का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। सभी प्राणियों के प्रति दया और अनुकंपा की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी यह सोचे कि यदि उसे सुख प्रिय है तो सभी प्राणियों को सुख प्रिय होता है, इसलिए अपने सुख के लिए किसी भी प्राणी को कष्ट देने का प्रयास न हो। बिना मतलब अथवा गुस्सा, लोभ, अहंकार के कारण किसी को कष्ट देने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी का व्यवहार न्यायोचित्त हो और अनैतिकता से बचने का प्रयास करे। किसी को भी ठगने का प्रयास नहीं करना चाहिए। किसी को धोखा देना, ठग लेना, झूठा फंसा देने का प्रयास नहीं चाहिए। आचार्यश्री ने रामरचितमानस की चौपाई ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।’ को व्याख्यायित करते हुए कहा कि जहां तक संभव हो आदमी को दूसरों का भला करने का प्रयास करना चाहिए, दूसरों का हित सोचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को यदि धन प्राप्त हो जाए तो घमण्ड नहीं करना चाहिए। पैसा हो तो उसका मद न हो, बल्कि वह सद्कार्यों में उपयोग हो। गृहस्थ के लिए कहा गया कि साधु अथवा सज्जन लोगों की संगति करने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं की कल्याणकारी वाणी का श्रवण करने से लाभ प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार आदमी को ऐसे छोटे-छोटे धर्म के सूत्रों पर ध्यान देकर अपने जीवन को धार्मिकता से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए।