भुज: ग्यारह वर्षों बाद भुज की धरा पर पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भुज में नवीन इतिहास का सृजन कर भुजवासियों पर विशेष अनुग्रह वृष्टि की है। इस अनुग्रहवृष्टि में अभिस्नात भुजवासी स्वयं के सौभाग्य पर फूले नहीं समा रहे हैं। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता ने भुज की धरा पर गुजरात का पहला मर्यादा महोत्सव ही नहीं किया, अपितु वह कार्यक्रम में भुज में स्थित उस स्मृतिवन के परिसर किया तो भूकंप में काल-कवलित हुए लोगों की स्मृति में बने हुए स्थान में किया। इसके साथ ही आचार्यश्री ने भुज की धरा तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के दीक्षा दिवस पर जैन भगवती दीक्षा समारोह का भी आयोजन किया और एक दीक्षार्थी को मुनि दीक्षा प्रदान कर भुजवासियों एक और विशेष अनुग्रह प्रदान कर दिया। इसके साथ ही आचार्यश्री भुज में कुल सत्रह दिनों का मंगल प्रवास भी कर रहे हैं।
शनिवार को कच्छी-पूज समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि संस्कृत में कहा गया है कि वे माता-पिता शत्रु के समान होते हैं, जो अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं हैं और अच्छे संस्कार नहीं देते हैं। आचार्यश्री ने एक दृष्टांत के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं- कुछ मनुष्य मूल पूंजी को गंवाने वाले होते हैं। अर्थात् वो अपने मानव जीवन को पाप कर्मों में लगाते हैं और अपने मनुष्य जन्म रूपी मूल पूंजी को गंवा देते हैं। कुछ लोग मनुष्य जीवन रूपी पूंजी को खोकर अगले जन्म में नरक गति अथवा तिर्यंच गति में पैदा होते हैं। कुछ लोग ऐसे लोग भी होते हैं जो न तो ज्यादा पाप कर्म करते हैं और न ही कोई विशेष पुण्य का काम करते हैं। वे अगले जन्म में वापस मनुष्य बनते हैं। मूल पूंजी को केवल संभाल कर रख लेते हैं। कुछ लोग खूब धर्म-ध्यान, साधना करने वाले होते हैं। वे अपना आयुष्य पूरा कर देवगति को भी प्राप्त कर लेते हैं। बारह देवलोकों में किसी भी देवगति को प्राप्त करते हैं।
प्राप्त मनुष्य जीवन का प्रचुर लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। चौरासी लाख जीव योनियों में आगे कब मानव जीवन प्राप्त होगा, यह कहना कठिन है तो कम से कम आदमी को वैसा कर्म करना चाहिए कि ताकि धर्म के द्वारा मूल पूंजी को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के मन में धार्मिक सेवा की भावना हो, साधुओं की सार-संभाल करने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, धर्म-ध्यान करने का प्रयास करना चाहिए। किसी की धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा करने का भी प्रयास होना चाहिए। जीवन धर्म से युक्त होता है तो आदमी अपने मानव जीवन रूपी पूंजी को और अधिक वृद्धिंगत कर सकता है।
मनुष्य जीवन में धर्म, ध्यान की कमाई करने का प्रयास करना चाहिए। मानव जीवन अभी प्राप्त है तो उसका लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। जिसके जीवन में साधुपन आ गया तो भला उसका कहना ही क्या। गृहस्थ जीवन में भी ईमानदारी, अहिंसा व संयम, सादगी का जीवन रहे। जितना हो सके त्याग, प्रत्याख्यान आदि हो। साधु-संतों की सेवा, प्रवचन श्रवण आदि का योग हो तो देव गति में पैदा हो सकते हैं। श्रावक की गति तो बारहवें देवलोक तक मानी गई है। इसलिए श्रावक गृहस्थ भी अपने ढंग से धर्म की साधना आराधना करने का प्रयास करते रहें।
आचार्यश्री ने कहा कि माघ शुक्ला द्वादशी को हमारे अनेक साध्वियों के दीक्षा के पचास वर्ष पूर्ण होने वाले हैं। साध्वी संगीतश्रीजी, साध्वी संवेगश्रीजी व साध्वी स्वर्णरेखाजी है। तीनों श्रीडूंगरगढ़ से और तीनों के नाम में ‘स’ है। गुरुदेव तुलसी द्वारा श्रीडूंगरगढ़ मर्यादा महोत्सव के दौरान दीक्षा हुई थी। आचार्यश्री ने तीनों साध्वियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
आचार्यश्री ने ‘बेटी तेरापंथ की’ के कार्यक्रम के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि बेटियां धार्मिक बनें। अपने खुद के जीवन में अच्छी धार्मिकता और परिवार को अच्छे संस्कार देने का प्रयास हो। खानपान में शुद्धि हो और बच्चों में अच्छे संस्कार दें। परिवार में शांति, सद्भाव रहे और धर्म की कमाई के प्रति भी अच्छी चेतना बनी रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त तेरापंथी सभा-भुज के अध्यक्ष श्री वाडीभाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-भुज तथा ‘बेटी तेरापंथ की’ सदस्याओं ने पृथक्-पृथक् गीत को प्रस्तुति दी। आचार्यश्री के मंगलपाठ के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी की मंगल सन्निधि में ‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें साध्वीप्रमुखाजी ने भी बेटियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।