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Home आराधना-साधना

धर्म-संरक्षण बनाम स्वार्थ: मुरारी बापू पर स्वामी चिदम्बरानंद का उद्घोष

धर्म की मर्यादाओं को भंग करने वाले चाहे जितने प्रसिद्ध हों — क्षमा के अधिकारी नहीं हो सकते।

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
June 15, 2025
in आराधना-साधना
Reading Time: 1 min read
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स्वामी चिदम्बरानंद

डेस्क:काशी की पवित्र नगरी में इन दिनों केवल गंगा नहीं उफान पर है, बल्कि धर्म-संस्कृति के अनुशासन को लेकर भी गहन मंथन चल रहा है। सनातन धर्म की प्रतिष्ठा, परंपराओं की पवित्रता और शास्त्रीय मर्यादाओं की रक्षा के लिए प्रख्यात संत स्वामी चिदम्बरानंद सरस्वती जी ने अत्यंत स्पष्ट और प्रखर शब्दों में विख्यात रामकथाकार मुरारी बापू के आचरण पर गंभीर आपत्ति जताई है।

धर्म रक्षक बन कर धर्म ही आहत

स्वामी चिदम्बरानंद का यह वक्तव्य कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि लंबे समय से एकत्र हो रही पीड़ा का विस्फोट है। उन्होंने कहा —

“सनातन धर्म को जितनी हानि तथाकथित धर्माचार्यों ने पहुंचाई है, उतनी शायद विधर्मियों ने भी नहीं दी। जो स्वयं को धर्मगुरु कहते हैं, वही जब शास्त्र विरुद्ध आचरण करते हैं तो समस्त धर्मसमाज को संकट में डाल देते हैं।”

मुरारी बापू के पूर्व में रामकथा के मंच से “अली मौला” और “अल्लाहू” का गायन करवाने को लेकर भी उन्होंने समाज की जागरूकता को स्मरण किया। उस समय हुए व्यापक विरोध के कारण मुरारी बापू ने क्षमायाचना भी की थी। परंतु स्वामीजी ने दुख प्रकट किया कि उनकी प्रवृत्ति में कोई स्थायी सुधार नहीं हुआ।

सूतक और शास्त्रीय मर्यादा का उल्लंघन

वर्तमान विवाद की जड़ में मुरारी बापू की धर्मपत्नी का 11 जून को हुआ निधन और इसके तीन दिन पश्चात ही उनका काशी में कथा प्रारंभ करना है।
स्वामी चिदम्बरानंद ने तीव्र स्वर में कहा —

“गृहस्थ आश्रम में मृत्यु के पश्चात सूतक का विधान है। उत्तर क्रिया पूर्ण होने तक न तो देवालय में प्रवेश होता है, न व्यासपीठ पर बैठना शास्त्रसम्मत है। परंतु मुरारी बापू ने धर्मपत्नी के निधन के तुरन्त पश्चात काशी विश्वनाथ में दर्शन कर कथा प्रारंभ कर दी।”

उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा —

“काशी विश्वनाथ जैसे दिव्य स्थल पर सूतक में प्रवेश कर आपने देव विग्रह को अपवित्र किया। आपके पास शास्त्र को न मानने का अधिकार नहीं है। जो शास्त्रों को नहीं मानेगा, उसे देवमंदिरों में प्रवेश का भी अधिकार नहीं होना चाहिए।”

गृहस्थ होकर भी संन्यास का मुखौटा क्यों?

स्वामीजी ने मुरारी बापू के संन्यास का दावा करने को ढकोसला बताया। उन्होंने पूछा —

“जब आपने कभी संन्यास नहीं लिया, तो गृहस्थ धर्म के नियमों का पालन क्यों नहीं कर रहे? कभी संन्यासियों का हवाला देना और कभी गृहस्थाचार को तिलांजलि देना — यह भ्रम फैलाने का कुटिल षड्यंत्र है।”

उन्होंने वैष्णव परंपरा का हवाला देते हुए भी मुरारी बापू को चेताया —

“यदि आप वैष्णव परंपरा से दीक्षित हैं, तो उस परंपरा में भी मृत्यु उपरांत सूतक और शुद्धि का विधान स्पष्ट है। या तो आप स्पष्ट कहें कि किसी परंपरा से संबंध नहीं है, अथवा सनातन की मर्यादा का पालन करें।”

साधु-संतों की कायरता पर तीखा प्रहार

स्वामी चिदम्बरानंद सरस्वती ने केवल मुरारी बापू ही नहीं, बल्कि उन तथाकथित साधु-संतों को भी कठघरे में खड़ा किया जो व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण इस प्रकार के कृत्यों को प्रश्रय दे रहे हैं।
उन्होंने कहा —

“यदि हमारे ही बड़े-बड़े महात्मा समय रहते ऐसे विकृत आचरण का विरोध करते, तो मुरारी बापू जैसे लोग यह दुस्साहस कर ही नहीं सकते थे। परन्तु दुर्भाग्य है कि कुछ लोग निजी लाभ के लिए धर्म का सौदा कर रहे हैं।”

समस्त सनातन समाज से आह्वान

स्वामी चिदम्बरानंद ने अपने संदेश के अंत में समस्त सनातन समाज से आह्वान करते हुए कहा —

“अब समय आ गया है कि हम इस प्रकार के शास्त्रविरोधी आचरण का प्रखर प्रतिकार करें। काशी के निवासी विशेष रूप से आगे बढ़ें और ऐसे कुकृत्यों के विरुद्ध प्रतिरोध का स्वर मुखर करें। यदि समय रहते इन्हें नहीं रोका गया, तो आगे विधर्मियों से संघर्ष करने की शक्ति भी क्षीण हो जाएगी।”

उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े सनातन युवाओं से भी धर्मरक्षा हेतु संगठित और मुखर होने का अनुरोध किया।

एक बड़ी चेतावनी : “या तो धर्म मर्यादा या आत्ममुग्धता!”

स्वामी चिदम्बरानंद सरस्वती का यह संदेश केवल मुरारी बापू तक सीमित नहीं है। यह उन सभी के लिए चेतावनी है जो धर्म के मंच को निजी स्वार्थ, लोकप्रियता या राजनीतिक सौदेबाजी का साधन बना चुके हैं। सनातन धर्म की मूल चेतना यही है —
“धर्मो रक्षति रक्षितः।”

Comments 2

  1. Anantbodh Chaitanya says:
    3 days ago

    परम पूज्य महामडलेश्वर स्वामी श्री चिदम्बरानंद सरस्वती जी ने अत्यंत मार्मिक और शास्त्रसम्मत बात कही है। मैं उनके हर एक शब्द से पूर्णतः सहमत हूँ। धर्म की मर्यादा और शुचिता की रक्षा आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह वक्तव्य केवल मुरारी बापू के लिए नहीं, बल्कि हम सभी के लिए एक चेतावनी और आत्मचिंतन का अवसर है।
    ॐ नमो नारायणाय

    Reply
  2. Ranjna Mishra says:
    3 days ago

    Bhut sahi kha apne काफी समय से विवादास्पद कथायें कर रहे पब्लिक भी आरंभ से sunti रहती कोई विरोध नहीं karta आपके विचारो का समर्थन करती hu

    Reply

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