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Home आराधना-साधना

धर्मस्थान में ही नहीं कर्मस्थान में भी रहे धर्म : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

13 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री पधारे खेराड़ी गांव

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
May 27, 2025
in आराधना-साधना
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धर्मस्थान में ही नहीं कर्मस्थान में भी रहे धर्म : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
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धर्मस्थान में ही नहीं कर्मस्थान में भी रहे धर्म : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

खेराड़ी, अरवल्ली (गुजरात) : गुजरात के एक नवीन जिले अरवल्ली को अपनी चरणरज से पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग मंगलवार को प्रातःकाल के मंगल बेला में भिलोड़ा से अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए तो अपने आराध्य की कृपावृष्टि से अभिभूत भिलोड़ावासियों ने अपने सुगुरु के चरणों में अपनी प्रणति अर्पित की। उपस्थित जनता को अपने मंगल आशीष से आच्छादित करते हुए ज्योतिचरण अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए।

जन-जन को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी करीब 13 किलोमीटर का विहार कर खेराड़ी गांव के खेराडी प्राथमिकशाला में पधारे। प्राथमिकशाला परिसर में ही आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन में समुपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन सिद्धांत में एक आत्मवाद का दर्शन है। इसमें आत्मा को शाश्वत बताया गया है। आत्मा का कभी विनाश नहीं होता। आत्मा कभी मरती नहीं है। आत्मा को कोई काट नहीं सकता, आत्मा को कोई नष्ट नहीं कर सकता, आत्मा को जलाया और सुखाया भी नहीं जा सकता। इस रूप में आत्मा अमर और शाश्वत है, परन्तु जब तक जीव का मोक्ष नहीं मिल जाए, तब तक आत्मा जन्म और मृत्यु को प्राप्त होती रहती है। पुनर्जन्मवाद का सिद्धांत भी आत्मवाद के सिद्धांत से जुड़ा हुआ है। अनंत समय से आत्मा जन्म-मरण के चक्कर में भ्रमण करती रहती है। प्रश्न हो सकता है कि इस जन्म-मरण का कारण क्या होता है? आत्मा दो कारणों से जन्म-मरण के चक्र में फंसी रहती है। पहला है निमित्त कारण और दूसरा है उपादान कारण। लोभ, मान, माया और लोभ से कलुषित आत्मा आगे-आगे जन्म-मृत्यु करती रहती है। आस्तिकता में जन्म-मृत्यु आदि सब होता भी है, किन्तु नास्तिकवाद इस जन्म के बाद जन्म-मृत्यु को मानते ही नहीं। परलोक आदि की बाद भले संदेहास्पद हो, लेकिन आदमी को परलोक, पुनर्जन्मवाद को मानकर ही चलने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को गलत कार्यों से बचने का प्रयास हो। जहां तक संभव हो आदमी को अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। चोरी, हिंसा, हत्या, ठगी, धोखाधड़ी आदि के कार्यों से बचने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए।

परलोक है तो अच्छे कार्य का अच्छा लाभ मिल जाएगा और परलोक नहीं भी है तो भी आदमी का जीवन अच्छा और शांतिमय रह सकता है। धर्म के पथ पर चलने के लिए कितने-कितने लोग साधु-संन्यासी बन जाते हैं। अगर सभी संन्यासी न बन सकें तो गृहस्थ भी अपने जीवन को सद्भावना, नैतिकता, ईमानदारी व अहिंसा के पालन से अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में नशीले पदार्थों से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की बात को तो नास्तिक को भी अपनाना ही चाहिए। धर्मस्थान और कर्मस्थान में भी धर्म रहे तो जीवन अच्छा हो सकता है।

आचार्यश्री के स्वागत में खेराडी के सरपंच श्री अमृतभाई पटेल ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

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