नई दिल्ली:दिल्ली हाई कोर्ट ने शादी के आधार पर रेप के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि शिकायत दर्ज करने और वापस लेने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाना चाहिए, क्योंकि फर्जी मामलों से वास्तविक पीड़ितों के साथ गंभीर अन्याय होता है।
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस गिरीश कठपालिया ने 29 अप्रैल को पारित एक फैसले में कहा कि यदि वर्तमान मामले में शिकायत झूठी निकली तो वर्तमान चरण (पुलिस द्वारा दायर आरोपपत्र) में इसे रद्द करना आपराधिक न्याय तंत्र की प्रक्रिया के दुरुपयोग को बढ़ावा देगा।
जज ने यह भी कहा कि यदि शिकायत वास्तव में सत्य है तो पीड़िता को उसके विवाह में धकेलकर आरोपी को छूट देने के बजाए, राज्य को उसे भोजन, आश्रय और कपड़े प्रदान करके एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना होगा। मामला एक महिला के आरोपों से संबंधित है, जिसने कहा कि याचिकाकर्ता ने उसके पड़ोसी आरोपी के साथ मिलकर उसका रेप किया, उसके साथ दुराचार किया और आपत्तिजनक तस्वीरों के आधार पर उसे ब्लैकमेल किया। महिला ने दावा किया कि मामले में दूसरे याचिकाकर्ता, उस व्यक्ति के साले ने भी उसका यौन शोषण किया।
आरोपियों ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि मुख्य याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता से शादी कर ली है।
कोर्ट ने कहा, “मैं इस बात से संतुष्ट नहीं हूं कि आरोपित व्यक्ति एफआईआर या उसके बाद की कार्यवाही को कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग मान सकता है या इसे रद्द करने से पीड़िता को न्याय मिलेगा। इसमें कहा गया है कि यदि महिला सुनवाई के अपने बयान से पलट भी जाती है तो अभियोजन पक्ष द्वारा उसकी गवाही का परीक्षण किया जाएगा। उसे झूठी शिकायत दर्ज कराने के लिए परिणाम भुगतने होंगे।
कोर्ट ने कहा कि यदि महिला द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर और उसके बाद कार्यवाही सत्य नहीं है, तो भी उसे खारिज करना आपराधिक न्याय तंत्र की प्रक्रिया के दुरुपयोग को प्रोत्साहित करने के समान होगा। समाज में धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति विकसित हो रही है कि दंड से बचकर झूठी शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं और उसके बाद वे वापस ले ली जाती हैं। इस पर रोक लगाने की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा कि हर झूठी शिकायत अनावश्यक बोझ बढ़ाती है। साथ ही यह भी धारणा बनाती है कि वास्तविक शिकायतें भी झूठी हैं, जिससे रेप की वास्तविक पीड़ितों के साथ घोर अन्याय होता है। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला कोई साधारण मामला नहीं है, जिसमें प्रेम संबंध बिगड़ गया हो या जिसमें पीड़िता को शादी का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया गया हो।
कोर्ट ने कहा कि आरोपों की सुनवाई के दौरान जांच किए बिना सच्चाई सामने नहीं आ सकती। रिकॉर्ड में यह बात सामने आई है कि आरोपपत्र दाखिल होने से करीब 10 दिन पहले ही दोनों पक्षों ने शादी कर ली थी। कोर्ट इस बात पर विचार कर रही थी कि क्या पीड़िता को पीड़ित करने वाले के वैवाहिक बंधन में धकेलना उचित है।