झूलन गोस्वामी जिनकी गेंदबाज़ी ने दशकों तक विरोधी बल्लेबाज़ों को निशब्द करा। वैसे मैं अभी में भी निशब्द हो रहा हूँ कि कौन सा शब्द लिख दूँ या वाक्य जिससे इनकी क़ाबिलियत – उपलब्धियों का न्यायोचित कर सकूं। सच में समझ नहीं आ रहा क्या – कहाँ से – कैसे शुरू करूँ………20 साल 10 हज़ार से ज्यादा गेंदों को कैसे शब्दों में समेटूँ?
झूलन गोस्वामी का जन्म साल 1982 में बंगाल के नादिया जिले के चकदा में हुआ था। अब डेब्यू के 20 साल और 260 दिन के बाद झूलन अब इंग्लैंड के ही खिलाफ लॉर्ड्स में अपने करियर का आखिरी मैच खेलने उतरी हैं। इस लंबे सफर में 39 साल की झूलन ने अनगिनत रिकॉर्ड्स बनाए हैं, जिनमें से कुछ रिकॉर्ड्स का टूटना काफी मुश्किल है।
ईडन गार्डन्स, 29 दिसंबर 1997 के दिन मैदान में काफी उत्साह था। महिला क्रिकेट विश्व कप के फ़ाइनल में न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया का मुकाबला चल रहा था। ऑस्ट्रेलिया की बेलिंडा क्लार्क चारों तरफ़ चौके छक्के लगा रही थीं। उसी फ़ाइनल मैच में 15 साल की एक भारतीय लड़की भी थी, जो बंगाल के एक गाँव से आई थी और बॉल गर्ल की ड्यूटी पर थी। विश्व कप की चकाचौंध और महिला क्रिकेट के धुरंधरों को देख उस युवा लड़की की आँखों में भी एक नया सपना संजो गया- एक दिन वर्ल्ड कप में खेलने का सपना। यही वो पल था जिसने हमेशा के लिए झूलन गोस्वामी को बदल दिया था। अब जब 20 साल लंबे करियर के बाद वो रियाटर हो गयी हैं तो उनकी गिनती दुनिया की सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में होती है। लॉर्ड्स मैदान पर अपना आख़िरी अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के बाद उनके नाम पर 255 विकेट हो गए हैं।
वैसे स्पष्ट कर दूँ , झूलन गोस्वामी से कभी पेर्सनली नहीं मिला हूँ। हाँ, भीड़ में से एक जरूर रहा हूँ। इसलिए जो भी लिख रहा हूँ वो उनके इंटरव्यू व पब्लिश्ड आर्टिकल्स के आधार पर ही लिखने का प्रयास है। चलिए, आर्टिकल पर आता हूँ…. अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए झूलन ने एक बार बताया था, “बंगाल के एक छोटे से गाँव चकदा में मैं पली बढ़ी। आंगन में घर के सब लड़के क्रिकेट खेलते थे। मैं उनकी बॉल गर्ल होती थी जिसका काम था आंगन के बाहर गई गेंद को उठाकर लाना और भाइयों को देना। दोपहर में जब सब सो जाते थे तो वो अकेले प्रैक्टिस करती थी। दस साल की आयु में उनकी दिलचस्पी बढ़ गई थी। वो खेलना चाहती थी पर गाँव में लड़कों को मनाना आसान नहीं था कि वो झूलन को भी अपने साथ खेलने दें।
“लड़के कहा करते थे कि मैं धीमी गेंद डालती है”, यह सुनकर वह निराश नहीं हुईं ना ही उन्होंने किसी पर दोषारोपण करने में समय बर्बाद किया। उन्होंने परिश्रम करा और आज वह वीमेंस क्रिकेट में इंटरनेशनल लेवल पर सबसे ज्यादा विकेट लेनी वाली गेंदबाज हैं। झूलन ने 284 इंटरनेशनल मुकाबलों में 355 विकेट चटकाए। झूलन गोस्वामी ने वनडे वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा 43 विकेट चटकाए साथ ही वनडे इंटरनेशनल में झूलन सबसे ज्यादा ओवर फेंकने (2270.2) वाली महिला प्लेयर हैं, उन्होंने अपने वनडे करियर में करीब 10 हज़ार बॉल फेंकी हैं।
झूलन सुबह-सुबह बहुत जल्दी उठकर ट्रेन लेकर गाँव से कोलकाता आती थीं और ट्रेनिंग के बाद फिर से ट्रेन लेकर गाँव में स्कूल जाती थीं। परिश्रम इसे कहते हैं। स्वप्न साधू कोचिंग सेंटर चलाते थे। दुबली और लंबी सी झूलन को देखकर वहाँ के कोच ने कहा था अपनी गेंदबाजी पर ध्यान दो।
सवप्न साधू ने चंद सालों पहले बताया था, “गाँव वाले और झूलन के घर वाले झूलन के क्रिकेट खेलने से ख़ुश नहीं थे। धीरे-धीरे झूलन का एकेडमी आना बंद हो गया। उसकी काबिलियत को देखते हुए मैं झूलन के गाँव गया और सबको मनाया कि वो झूलन को खेलने दें। बाकी तो आपके सामने हैं।”
एक गुरु का अपने शिष्य पर विश्वास देख – सुन – लिखकर उत्साहित हो जाता हूँ। यूट्यूब पर देखा एक वीडियो के बारे में भी बताता चलूँ – महिला क्रिकेट टीम के कोच डब्ल्यू वी रमन के साथ एक ख़ास यूट्यूब चैट में झूलन ने अपने किस्से बताए हैं, “महिला क्रिकेट एसोसिएशन के पास बहुत कम पैसा था। लड़कियाँ क्रिकेट मैच खेलने के लिए ट्रेन में सफ़र करती थीं। कभी-कभी तो रिज़र्वेशन भी नहीं होता था और साथ में बड़े-बड़े किट बैग होते थे। जिन मैदानों पर हम खेलते थे वो भी अच्छे नहीं होते थे। अगर हवाई यात्रा के लिए टिकट मिल जाता था तो एक्सट्रा बैगेज या सामान के लिए ख़ुद ही पैसा देना पड़ता था। बैग का वज़न कम करने के लिए हम लोग अपने कपड़े निकाल देते थे और बस फ़ील्ड में पहनने वाले कपड़े रखते थे। पहनने के लिए अच्छे जूते भी नहीं होते थे और हम जुगाड़ से काम चलाते थे….. दिल्ली में तारक सिन्हा तब बहुत से क्रिकेटरों की मदद किया करते थे। जैसे उस वक्त आशीष नेहरा से जूते लेकर किसी और को दे दिए और किसी और के जूते मुझे दे दिए ताकि हम मैच खेल सकें।”…….यह था खेल के प्रति समर्पण तब से लेकर अब तक हालात काफ़ी बदले हैं और इस परिप्रेक्ष्य में झूलन जैसी महिला क्रिकेट खिलाड़ियों के योगदान की अलग अहमियत है। वरिष्ठ क्रिकेट पत्रकार अयाज़ मेमन कहते हैं कि जिस तरह की सफलता झूलन को मिली है वो तब ही संभव है अगर कोई बिना ध्यान भटकाए, सिर्फ़ गेम पर फ़ोकस करके खेलता रहे और लगातार खेलता रहे। मुझे पूर्ण विश्वास है युवा गेंदबाज झूलन से प्रेरणा लेकर भारतीय क्रिकेट को और बुलंदियों पर पहुंचाने में कामयाब होंगे।