भारत ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि वह केवल संकल्प नहीं करता, उसे सटीकता और साहस के साथ साकार भी करता है। पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले के बाद जिस प्रकार ऑपरेशन सिंदूर के अंतर्गत पाकिस्तान स्थित आतंकी अड्डों पर निर्णायक प्रहार किया गया, वह केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता और संप्रभुता की स्पष्ट उद्घोषणा थी।
इस कार्रवाई में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के नौ प्रमुख अड्डों को निशाना बनाया गया—वह भी ऐसे क्षेत्रों में जो पाकिस्तान के संरक्षित सैन्य ढांचों के निकट माने जाते हैं। यह तथ्य कि इन ठिकानों पर हमला इतनी गहराई और एकसमान समन्वय के साथ किया गया कि पाकिस्तान को प्रतिकार का अवसर तक न मिल सका, भारतीय सेना की युद्ध-नीति और सूचना संकलन क्षमता का उदाहरण है।
मृत आतंकियों की संख्या की गणना या उनके अड्डों की छवियों को सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि संदेश अपने आप में पर्याप्त स्पष्ट था: भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करता, वह आक्रामक रणनीतिक संतुलन के युग में प्रवेश कर चुका है।
यह कार्रवाई इसलिए भी अपरिहार्य थी, क्योंकि पाकिस्तान की जिहादी सोच बार-बार यह भ्रम पाले रहती है कि भारत केवल कूटनीतिक वक्तव्यों तक सीमित रहेगा। ऑपरेशन सिंदूर ने इस भ्रम को निर्ममता से तोड़ दिया है। इस अभियान की अगुवाई कर रहीं कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने न केवल सैन्य पराक्रम का प्रदर्शन किया, बल्कि इस संदेश को भी और अधिक प्रखरता से स्थापित किया कि भारत की संप्रभुता की रक्षा अब केवल पुरुष सैनिकों का उत्तरदायित्व नहीं।
इस अभियान की प्रकृति, इसकी गहराई और इसके समय निर्धारण ने पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व को गहरी असहजता में डाल दिया है। यदि पाकिस्तान अब भी आत्ममंथन नहीं करता और जिहादी तत्वों को संरक्षण देना बंद नहीं करता, तो यह उसका आत्मघाती मार्ग ही सिद्ध होगा।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी अब यह समझ लेना होगा कि आतंक के विरुद्ध संयम का उपदेश केवल पीड़ित देश को नहीं, बल्कि संरक्षक देश को दिया जाना चाहिए। यदि वैश्विक शक्तियां दक्षिण एशिया में स्थायित्व चाहती हैं, तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि पाकिस्तान की जिहादी मशीनरी, उसके सैन्य प्रतिष्ठान के संरक्षण में, क्षेत्रीय शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है।
भारत ने वह कर दिखाया है, जिसे करने का साहस अब तक विश्व बिरादरी से भी नहीं हो सका था—एक परमाणु संपन्न राष्ट्र को यह बता देना कि आतंक का प्रतिकार केवल शब्दों से नहीं, शस्त्रों से भी होता है।
आज आवश्यकता है राष्ट्रीय एकजुटता की। सेना का मनोबल उच्चतम स्तर पर है, और नागरिकों का विश्वास अटूट। ऐसे समय में हम सभी का कर्तव्य है कि साहस, संयम और सेवा के साथ राष्ट्रहित में अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करें।
जय हिंद।