डेस्क:सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि एएमयू फिलहाल अल्पसंख्यक संस्थान है। अपने कार्यदिवस के आखिरी दिन सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया है। हालांकि यह अब भी विवादित है कि यह अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों वाली बेंच पर छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। ऐसे में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुरानी आरक्षण व्यवस्था ही लागू रहेगी। अब तीन जजों की बेंच नए सिरे से सुनवाई करेगी। तमाम कसौटियों पर कसे जाने के बाद अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर अंतिम फैसला सुनाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया 1967 का अजीज बाशा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के अजीज बाशा फैसले को 4:3 के बहुमत के साथ रद्द कर दिया है। दरअसल 1965 में ही एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद शुरू हो गया था। उस समय की केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर स्वायत्तता को खत्म कर दिया था। इसके बाद अजीज बाशा ने 1967 में सुप्रीम कोर्ट में सरकार का चुनौती दी। पांज जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। हालांकि इसमें एएमयू पार्टी नहीं थी।
1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने माना की एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसके बाद विरोध शुरू हो गया। 1981 में इंदिरा गांधी सरकार ने ही एमएमयू एक्ट में संशोधन किया और कहा कि यह संस्थान मुसलमानों द्वारा स्थापित है। ऐसे में एक तरह से यूनीवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान मान लिया गया था।
2006 में एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज में एमडी, एमएस की 50 फीसदी सीटों को मुस्लिमों के लिए आरक्षित करने के बाद मामला हाई कोर्ट पहुंच गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता। इसके बाद एएमयू सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।