गांधीधाम: भारत के पश्चिम भाग में अवस्थित गुजरात प्रदेश में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल रश्मियों के साथ जनता में आध्यात्मिक चेतना का आलोक बांट रहे हैं। महामानव की ऐसी कृपा को प्राप्त कर गुजरात की धरा मानों अतिशय आह्लादित हो रही है।
गुजरात को आध्यात्मिक आलोक से आलोकित करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुपावन चरणों से कच्छ जिले का एक और शहर गांधीधाम भी पावन बना। गांधीधामवासियों ने मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी का भावभीना अभिनंदन किया। इसके पूर्व युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गांधीधाम के बाहरी भाग में स्थित आदिपुर से गतिमान हुए। आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ आज मूल गांधीधाम के भीतरी भाग में पधार रहे थे। अपने आराध्य के मंगल आगमन से न केवल तेरापंथी परिवार, अन्य जैन समाज के साथ-साथ के साथ-साथ सभी अन्य समाजों के लोग भी आचार्यश्री के स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए हुए थे। विहार के दौरान आचार्यश्री गांधीधाम में स्थित पूर्वी कच्छ के एस.पी. कार्यालय में भी पधारे, जहां अधिकारी सहित उपस्थित पुलिसकर्मियों ने आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। मार्ग में स्थान-स्थान पर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी विभिन्न मोहक झाकियों के साथ अपने आराध्य का अभिवादन कर रहे थे। जन-जन को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग छह किलोमीटर का विहार कर गांधीधाम में स्थित अमर पंचवटी में पधारे। इस पंचवटी से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। अब इस अमर पंचवटी में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का पन्द्रह दिवसीय मंगल प्रवास होना निर्धारित है।
अमर पंचवटी में बने भव्य ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन का व्यवहार कुशल और आध्यात्मिकता से युक्त होना चाहिए। कहा गया है कि विद्या विनय से शोभित होती है और विद्या विनय प्रदान करती है। अहंकार एक ऐसा तत्त्व है जो मानव के व्यवहार को दूषित करने वाला बन सकता है। अहंकार और विनय में मानों शत्रुता है। अहंकार विनय को नष्ट करने वाला तत्त्व होता है।
शास्त्रकार ने कहा कि किसी को उपाय के द्वारा विनय की प्रेरणा दी जाए और जिसको प्रेरणा दी जाती है, वह उसे विनय के साथ ग्रहण कर लेता है तो उसके जीवन का कल्याण हो सकता है। दुनिया में अहंकार, घमण्डी वाले व्यक्ति कई बार दुःखी जीवन जीते हैं और जो सुविनित, प्रज्ञावान, सरल स्वभावी होते हैं, उन्हें सुखी की प्राप्ति सदैव ही हो जाती है। घमण्ड बहुत बुरी बात होती है। किसी को अच्छा ज्ञान हो गया तो वह अपने ज्ञान का घमण्ड कर लेता है। आदमी के पास ज्ञान हो गया तो भी उसे उसका घमण्ड नहीं करना चाहिए। कहा गया है कि ज्ञान होने पर आदमी को मौन धारण कर लेने का प्रयास करना चाहिए। शक्ति होने पर भी दूसरों को क्षमा करने का प्रयास करना चाहिए। दान करके भी आदमी को श्लाघा प्राप्त करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। धन, रुपया, सुन्दरता आदि का भी घमण्ड हो सकता है।
जहां तक संभव हो सके, आदमी को सत्ता का उपयोग धार्मिक कार्यों में करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को इन सभी के अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी सरल और विनीत बनने का प्रयास करना चाहिए। गांधीधाम का प्रवास आध्यात्मिक-धार्मिक संकल्पों से युक्त बनें, मंगलकामना।
मंगल प्रवचन के उपरान्त गांधीधामवासियों को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उद्बोधित किया। कार्यक्रम में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री अशोक सिंघवी तथा बृहद् जैन समाज की ओर से श्री चंपालाल परिख ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ युवक परिषद ने भी स्वागत गीत का संगान किया।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित गुजरात सरकार के पूर्व मंत्री श्री वासनभाई अहीर ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।