डेस्क:बंद पड़ी एयरलाइन कंपनी गो फर्स्ट के लिक्विडेशन यानी परिसमापन को लेकर एक बड़ी खबर है। भारतीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने गो फर्स्ट के परिसमापन के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। चेयरपर्सन न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली एनसीएलएटी की तीन सदस्यीय पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की दिल्ली पीठ के 20 जनवरी के आदेश को बरकरार रखा, जिसने एयरलाइन के परिसमापन का आदेश दिया था।
एनसीएलएटी ने बिजी बी एयरवेज की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उसे न्यायाधिकरण के आदेश में कोई खामी नहीं मिली। बता दें कि बिजी बी एयरवेज, भारतीय कामगार सेना मुंबई और कैप्टन अर्जुन धवन ने गो फर्स्ट के परिसमापन के एनसीएलटी के आदेश को चुनौती दी थी।
बिजी बी एयरवेज ने कहा है कि वह गो फर्स्ट को एक सक्रिय कंपनी के रूप में अधिग्रहित करने के लिए तैयार है, क्योंकि उसके पास अभी भी मूल्यवान संपत्तियां हैं और संचालन के लिए नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) से लाइसेंस प्राप्त है। आपको बता दें कि यात्रा पोर्टल ईजमाईट्रिप के सह-संस्थापक निशांत पिट्टी बिजी बी एयरवेज में बहुलांश शेयरधारक हैं।
व्यापार यूनियन निकाय भारतीय कामगार सेना मुंबई ने दलील दी थी कि अगर कंपनी का परिसमापन हो जाता है तो करीब 5,000 कर्मचारियों के पास कुछ नहीं बचेगा। निकाय ने एयरलाइन को तब तक चालू रखने का अनुरोध किया जब तक अमेरिकी इंजन विनिर्माता प्रैट एंड व्हिटनी के साथ सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र में मध्यस्थता पूरी नहीं हो जाती।
एनसीएलटी ने 20 जनवरी को एयरलाइन गो फर्स्ट के परिसमापन का आदेश दिया, जिसने वित्तीय संकट के कारण लगभग दो साल पहले परिचालन बंद कर दिया था। एयरलाइन ने मई, 2023 में स्वैच्छिक दिवाला समाधान प्रक्रिया के लिए आवेदन किया। एनसीएलटी ने कहा था कि विधायी योजना में सीओसी (कर्जदाताओं की समिति) को इसके गठन के बाद और समाधान योजना की पुष्टि से पहले किसी भी समय कॉरपोरेट देनदार के परिसमापन का निर्णय लेने का अधिकार है।
आपको बता दें कि कंपनी या संपत्ति को बंद करना या परिसंपत्तियों को नकदी में बदलना ही लिक्विडेशन है। लिक्विडेशन के जरिए कंपनी का वैधानिक अस्तित्व खत्म हो जाता है। गो फर्स्ट के मामले में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी।