Gold Loan News: गोल्ड लोन देने वाली कंपनियां नियमों को ताक पर रख कर ग्राहकों के साथ गड़बड़ी कर रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने ऋण देने के काम में जुड़ी पर्यवेक्षित संस्थाएं (एसई) के कार्यों की समीक्षा की, जिसमें तमाम सारी खामियां पाई गई हैं। सबसे अहम ग्राहक की उपस्थिति में सोने का मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है और डिफॉल्ट होने पर गहनों की नीलामी में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।
आरबीआई ने दी निगरानी बढ़ाने की हिदायत
आरबीआई ने पाया है कि गोल्ड लोन जारी करने से पहले पर्याप्त जांच पड़ताल भी नहीं की जा रही है, जो सीधे तौर पर नियमों का उल्लंघन है। ऐसे में सभी एसई को अपनी नीतियों, प्रक्रियाओं और सोने के ऋणों (Gold Loan) की समीक्षा के साथ आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाने की सलाह दी गई है। साथ ही गोल्ड लोन पोर्टफोलियो की निगरानी बढ़ाने की हिदायत दी गई है। खासकर जब कुछ एसई में पोर्टफोलियो में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
केंद्रीय बैंक का कहना है कि कंपनियों द्वारा गोल्ड लोन देने से जुड़ी प्रक्रिया के लिए आउटसोर्स के तौर पर तीसरे पक्ष की सेवाएं ली जा रही है। ऐसे में सेवा प्रदाताओं पर पर्याप्त नियंत्रण सुनिश्चित होना जरूरी है।
इन नियमों का उल्लंघन
कुछ यूनिट्स में गोल्ड लोन में कैश वितरण की उच्च दर देखी गई। कंपनियां केवाईसी से जुड़े नियमों का ठीक से पालन नहीं कीं। टॉप-अप लोन अप्रूव करते समय फ्रेश वैल्युएशन नहीं किया गया। लोन अकाउंट को कर्ज की मंजूरी मिलने के कुछ दिन बाद ही बंद कर दिया गया।
ऐसी कंपनियों की पड़ताल की जाएगी
इन सभी अहम बिंदुओं पर आरबीआई की तरफ से नियुक्त वरिष्ठ पर्यवेक्षी प्रबंधक (एसएसएम) गोल्ड लेन बांटने वाली संस्थाओं एवं कंपनियों की जांच पड़ताल करेंगे। उसके बाद तीन महीने में इस पर की गई कार्रवाई की जानकारी भी देंगे। दिशानिर्देशों का पालना करने में विफल रहने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जारी आदेश को तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है। बैंक ने यह भी पाया है कि कुछ स्तर पर नियमों का सीधे तौर पर उल्लंघन किया जा रहा है।
आरबीआई ने जांच में ये 6 प्रमुख खामियां पाईं
1.लोन जारी करने के मुख्य स्रोत और मूल्यांकन में तीसरे पक्ष की भूमिका में कमियां पाई गई।
2.ग्राहक की अनुपस्थिति में सोने का मूल्यांकन किया जा रहा।
3.लोन जारी करने से पहले जांच-पड़ताल नहीं हो रही।
4.ग्राहक के डिफॉल्ट होने की स्थिति में सोने के आभूषणों और गहनों की नीलामी में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही।
5.ऋण की लोन-टू-वैल्यू की निगरानी में कमी पाई गई, जो बेहद गंभीर मामला है।
6.लोन देने वाली कंपनियां व तीसरा पक्ष द्वारा रिस्क भार का गलत अनुप्रयोग किया जा रहा है।