राजकोट:सौराष्ट्र क्षेत्र का प्रमुख शहर राजकोट। राजकोट जो कभी सौराष्ट्र क्षेत्र की राजधानी के रूप में भी ख्यापित रही है। राजकोट के मध्य से आजी नदी प्रवाहित होती है। यहां पर कई फैक्ट्रियां भी संचालित होती हैं। एक ऐसी नगरी में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ त्रिदिवसीय प्रवास के साथ ही तेरापंथ धर्मसंघ का त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव भी प्रदान किया है। ऐसे में यह नगरी आध्यात्मिक दृष्टि से भी उन्नत बन रही है। वर्धमान महोत्सव का दूसरा दिन तेरापंथ धर्मसंघ की ख्याति को और अधिक प्रवर्धमान बनाने वाला रहा। आज के कार्यक्रम में स्वामीनारायण संप्रदाय के स्वामीश्री त्यागवल्लभजी, गोण्डल संप्रदाय के संत गुजरात रत्न सुशांतमुनिजी व धीरजमुनिजी जैसे आध्यात्मिक क्षेत्र के गणमान्य पहुंचे तो वहीं गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी, कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल श्री वजुभाई वाला सहित अन्य अनेक राजनैतिक व व्यावसायिक क्षेत्रों के गणमान्यों ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री व कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल ने युगप्रधान आचार्यश्री की अभिवंदना में अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया।
राजकोट के आत्मीय युनिवर्सिटी में प्रवास के दूसरे दिन वर्धमान समवसरण में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मंच पर विराजमान हुए व मंगल महामंत्रोच्चार से वर्धमान महोत्सव के दूसरे दिन के कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वीवृंद ने इस अवसर पर गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। गोण्डल संप्रदाय के ‘गुजरात रत्न’ मुनि सुशांतजी व मुनि धीरजजी भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए और आचार्यश्री के निकट मंच पर आसीन हुए।
तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि एक श्लोक में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षांति और मुक्ति में वर्धमान होने की बात बताई गई। यह श्लोक वर्धमान महोत्सव का आधारभूत श्लोक बन सकता है। वर्धमानता के लिए ज्ञान भी एक क्षेत्र है। यों तो हर ज्ञान अपने आप में पवित्र तत्त्व है, परन्तु कौन-से विषय का ज्ञान किसके लिए उपयोगी बन सकता है, यह विवेच्य होती है। जो अध्यात्मशास्त्र की बातों को आचरण में लाता है, वह आनंद का अनुभव करता है और जो भौतिकता वाले शास्त्रों की बातों को आसक्ति के साथ प्रयोग में लाता है, वह मनुष्य क्लेश और दुःख को प्राप्त हो सकता है। अध्यात्म के ज्ञान का आनंद कोई भाग्यवान व्यक्ति ही प्राप्त कर सकता है। इस वर्धमान महोत्सव के अवसर पर हमारे विशिष्ट चारित्रात्माओं का वक्तव्य और गीत संगान आदि भी होता है, मानों एक छोटा महोत्सव का-सा उपक्रम हो जाता है। इस उपक्रम से वर्धमानता की प्रेरणा लें, इसकी असली निष्पत्ति यही हो सकती है। ज्ञान की वर्धमानता में मन और समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। भाषा के जगत में जिसे व्याकरण का ज्ञान नहीं है, वह अंधे के समान होता है। शब्दकोष का ज्ञान नहीं होने पर वह आदमी बहरे के समान होता है। साहित्य जगत में जो आदमी गतिशील नहीं होता, वह पंगु होता है और जिसमें तार्किक बुद्धि नहीं होती, वह मूक होता है। ज्ञान के विकास में प्रतिभा का बहुत बड़ा योगदान होता है। ज्ञान के बाद दर्शन और फिर चारित्र की अच्छी आराधना हो तो सम्पूर्ण वर्धमानता की बात हो सकती है।
आचार्यश्री ने तेरापंथ की स्थापना, तेरापंथ की आचार्य परंपरा, तेरापंथ की आराधना व साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी का परिचय भी कराया।
आज के कार्यक्रम में उपस्थित कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल श्री वजुभाई वाला ने कहा कि आज बहुत सुन्दर प्रसंग है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सुअवसर मिला है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी ने कहा कि अपने बड़े प्रसन्नता की बात है कि अपने राजकोट के आगमन में पूजनीय संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का इतने साधु-साध्वियों के साथ शुभागमन हुआ है। मैं आपश्री का हार्दिक स्वागत करता हूं। समग्र विश्व में शांति लाने के लिए आचार्यश्री के सूत्रों को स्वीकार करना ही होगा। आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा-सौराष्ट्र के मंत्री श्री मदन नंगावत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
स्वामीनारायण संप्रदाय के स्वामी त्यागवल्लभजी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हमारे निवेदन को स्वीकार करते हुए हमारे राजकोट को पावन बना दिया। पवित्र महापुरुषों के दर्शन और सेवा का अवसर वर्षों की पुण्याई से ही प्राप्त होता है। आपका सुखद दर्शन हमें बहुत ही आह्लादित कर रही है। गोण्डल संप्रदाय के प्रमुख संत धीरजमुनि महाराज ने कहा कि इस नगरी में तेरापंथ के युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मैं समस्त गोण्डल संप्रदाय की ओर से हार्दिक स्वागत करता हूं। आपश्री जैन धर्म की बहुत प्रभावना कर रहे हैं। इतने विशिष्ट जनों की उपस्थिति ने वर्धमान महोत्सव और अधिक वर्धमानता प्रदान कर दी।