पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में जो हो रहा है, वह सिर्फ हिंसा नहीं है—यह चेतावनी है। और उससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात है – सबकी चुप्पी।
विपक्षी दलों की, तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों की, मानवाधिकार के नाम पर चीखने वाले संगठनों की, और मुख्यधारा की मीडिया की… सबके सब जैसे मौन व्रत में चले गए हैं। क्यों? क्योंकि इस बार मरने वाला, पीड़ित, पलायन करने वाला और डर के साये में जीने वाला कोई और नहीं – हिंदू है।
क्या हो रहा है मुर्शिदाबाद में?
हिंदू घरों को निशाना बनाया जा रहा है। मंदिरों पर हमले हो रहे हैं। दुकानों में आग लगाई जा रही है। डर इतना गहरा है कि लोग अपने पुश्तैनी घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं। यह दृश्य कुछ वैसा ही है जैसा हमने कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ देखा था।
वहां भी शुरुआत ऐसे ही हुई थी – धमकियां, डराना, बहिष्कार, फिर हिंसा और आखिर में पलायन। और आज मुर्शिदाबाद में वही कहानी दोहराई जा रही है।
सब चुप क्यों हैं?
1. क्योंकि पीड़ित हिंदू हैं
अगर पीड़ित कोई और समुदाय होता, तो देश भर में मोमबत्तियां जलतीं, ट्विटर पर ट्रेंड चलता, और हर विपक्षी नेता “माइनॉरिटी पर हमले” का नारा लेकर सरकार के खिलाफ सड़क पर होता। लेकिन जब हिंदू पीड़ित होता है, तो एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता है।
2. वोट बैंक की राजनीति
मुर्शिदाबाद मुस्लिम बहुल इलाका है। किसी भी नेता को इस हिंसा के खिलाफ बोलने से डर लगता है – कहीं उनका वोट बैंक नाराज़ न हो जाए। हिंदुओं की जान से ज़्यादा उन्हें अपना राजनीतिक समीकरण प्यारा है।
3. ‘सेक्युलरिज़्म’ का असली चेहरा
यह वही ‘सेक्युलर इंडिया’ है जहां एक तरफा पीड़ा की कोई जगह नहीं। जहाँ हिंदू अगर पीड़ित हो, तो उसे ‘रिएक्शन’ कहा जाता है। पीड़ा को धार्मिक पहचान से तोला जाता है, और पीड़ित की जाति देखकर संवेदना दी जाती है।
क्या मुर्शिदाबाद बनेगा दूसरा कश्मीर?
यह सवाल आज हर उस इंसान को झकझोर रहा है जो सच्चाई को देखने की हिम्मत रखता है। कश्मीर में पहले डराया गया, फिर मारा गया और आखिर में हजारों साल पुरानी संस्कृति को वहाँ से जड़ से उखाड़ दिया गया। और अब मुर्शिदाबाद के हिंदू भी वही दर्द महसूस कर रहे हैं।
अपमान, डर, ,चुप्पी और पलायन – यही उनका नसीब बन गया है।
सवाल सिर्फ विपक्ष से नहीं, हम सब से है
हमें सोचना होगा – अगर हिंदू भी अपने ही देश में असुरक्षित हैं, अगर उनकी पीड़ा पर कोई आवाज़ नहीं उठती, तो फिर यह कैसा लोकतंत्र है?
वो हिंदू जो कभी छांव की तरह देशभर में फैले थे, आज अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हैं।
मुर्शिदाबाद की चुप्पी हमें याद दिलाती है कि चुप्पी भी एक पक्षपात है। और जब तक हिंदुओं की पीड़ा पर यह मौन बना रहेगा, तब तक सवाल उठते रहेंगे। क्योंकि यह सिर्फ एक जिला नहीं, एक चेतावनी है – कि अगर आज नहीं बोले, तो कल और भी देर हो सकती है।