कोलकाता: बंगाल की राजनीति पिछले पांच दशक से अलग ही रही है। नक्सलबाड़ी आंदोलन और 1977 में सीपीआई (एम)-लेफ्ट फ्रंट के सत्ता संभालने के बाद बंगाल वामपंथियों का किला बन गया। 90 के दशक में यह अनुमान लगाना भी मुश्किल था कि दो दशक बाद वामपंथी दल पश्चिम बंगाल में अस्तित्व की लड़ाई लड़ते नजर आएंगे। कांग्रेस विपक्ष के तौर पर बैकफुट पर थी। कांग्रेस से अलग होकर ममता बनर्जी ने विपक्ष की कमान संभाली और 2011 में टीएमसी ने पश्चिम बंगाल की सत्ता पर कब्जा किया। इसके बाद इस पूर्वी राज्य की राजनीति भी बदल गई। ममता बनर्जी के तीसरे कार्यकाल तक बीजेपी ने वामपंथी दलों और कांग्रेस के स्पेस पर कब्जा कर लिया और मुख्य विपक्षी दल बनी। 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में बीजेपी बड़ी जीत की तैयारी कर रही है। पीएम नरेंद्र मोदी लगातार पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने 17 बार बंगाल की यात्रा की थी। पीएम नरेंद्र मोदी के कैंपेन का असर यह रहा कि 2014 तक पश्चिम बंगाल में दो सीटों पर रहने वाली बीजेपी के 18 सांसद 2019 में जीत गए। 2021 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 74 सीटों की लंबी छलांग लगाई। 2014 में पार्टी को 17 फीसदी वोट शेयर मिले थे, 2019 में बीजेपी को 40 फीसदी वोट मिले। विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने कुल 77 सीटें जीतीं थी। बीजेपी को उम्मीद है कि 2024 में पार्टी को पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा सीटें मिलेंगी।
मोदी राज में बीजेपी का वोट प्रतिशत 34 फीसदी बढ़ा
1989 के लोकसभा चुनाव में देश में कांग्रेस विरोध के लिए सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हुईं। वीपी सिंह के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी, जिसे बीजेपी और लेफ्ट ने बाहर से समर्थन दिया था। उस दौर में बीजेपी राम मंदिर आंदोलन के कारण उभर रही थी। हिंदी पट्टी और गुजरात में बीजेपी ने 85 सीटें जीती, मगर पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में खाता भी नहीं खुला। 1996 में भारतीय जनता पार्टी को 120 सीटें मिलीं, मगर बंगाल में पार्टी एक भी सीट हासिल करने में असफल रही। 1998 में भारतीय जनता पार्टी को पूरे देश में 182 सीटें हासिल हुईं और एक लोकसभा सीट के साथ बंगाल में पार्टी ने पहली बार एंट्री ली। दमदम सीट से तपन सिकदर बीजेपी के टिकट से लोकसभा पहुंचने वाले पहले सांसद बने। 1999 में बीजेपी ने दमदम और कृष्णानगर सीट पर कब्जा किया। मगर 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी दोनों सीटें हार गई और वोट प्रतिशत भी 11 फीसदी से खिसककर 8.1 फीसदी पर पहुंच गया। 2009 में बीजेपी का वोट प्रतिशत 1996 से भी कम हो गया। फिर 2014 में बीजेपी में मोदी युग शुरू हुआ और पार्टी ने दोबारा दो सीटों से पश्चिम बंगाल में सेकंड एंट्री ली। 2019 में चमत्कार करते हुए 18 लोकसभा सीट और 40.6 फीसदी वोट हासिल किए। पश्चिम बंगाल से वामपंथी दलों का सफाया हो गया और कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई। इस जीत ने बंगाल में टीएमसी की सत्ता को चुनौती मिली।
2016 में जीते थे सिर्फ 3 बीजेपी विधायक, अब यह आंकड़ा 77 है
विधानसभा चुनाव 2022 में भी बीजेपी ने 74 सीटों की लंबी छलांग लगाई। 1952 से 2011 तक भारतीय जनता पार्टी का पश्चिम बंगाल विधानसभा में कोई नुमाइंदा नहीं था। 2016 में तीन विधायक जीते। अमित शाह की रणनीति और नरेंद्र मोदी के कैंपेन का असर रहा कि पांच साल के भीतर बीजेपी बंगाल में मुख्य विपक्षी दल बन गई। विधानसभा चुनाव के रेकॉर्ड के मुताबिक, बीजेपी के वोट प्रतिशत में 28 प्रतिशत का इजाफा हुआ। 2016 में 10.16 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी को 2022 में 38.15 प्रतिशत वोट मिले। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने टीएमसी को कड़ी टक्कर दी। बंगाल में बीजेपी के पास नेतृत्व का कोई चेहरा नहीं था। 2014 के बाद से बंगाल में सभी चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़े गए। 2024 के लिए भी बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे और केंद्र सरकार के काम के आधार पर ही वोट मांग रही है।