इस्लाम में जुम्मे का खास महत्व है। मुस्लिम समुदाय का मानना है जुम्मे के दिन नमाज़ पढ़ने वाले इंसान की पूरे हफ्ते की गलतियों को अल्लाह माफ कर देते हैं और उसे आने वाले दिनों में एक अच्छा जीवन जीने का संदेश देते हैं।मुस्लिम समुदाय में इस दिन नमाज़ पढ़ना जरूरी माना जाता है। शुक्रवार के दिन मस्जिद में या किसी भी जगह पर नमाज़ पढ़ लेते हैं। यह आप सब जानते ही हैं फिर भी सोचा बता दूँ। कल 10 जून शुक्रवार को दोपहर नमाज़ के बाद देश के कई शहरों में फिर जिस तरह हिंसक प्रदर्शन हुए और इस दौरान कई जगहों पर पथराव, तोड़फोड़ एवं आगजनी के साथ पुलिस पर हमला किया गया, वह किसी सोची-समझी साजिश का हिस्सा ही लगता है। खौफ पैदा करने वाली इस नग्न अराजकता का परिचय भाजपा के उन दो नेताओं की पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणियों पर रोष जताने के नाम पर किया गया, इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब नुपुर शर्मा ने बार-बार तस्लीम रहमानी को कहा भोलेनाथ पर अभद्र बाते ना करें पर हर बार की तरह बोलते जा रहे थे ……. इसी पिगी फाइट में फँस गयी…. उन्हें समझना चाहिए था कि आप हिन्दू हैं ना कि खून बहाने वाले धर्म से जहां ज़ेहन सिर्फ और सिर्फ खून मांगता है। इसलिए इन्हें न केवल निलंबित-निष्कासित कर दिया गया है, बल्कि इनके खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कर ली गई है। इस कार्रवाई को अपर्याप्त मानते हुए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध तो समझ आता है, लेकिन आखिर लोगों को आतंकित करने वाली खुली अराजकता का क्या मतलब? यह अराजकता किस कदर बेलगाम थी, इसे इससे समझा जा सकता है कि जहां रांची में हिंसा पर काबू पाने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा, वहीं कई अन्य शहरों में धारा 144 लागू करनी पड़ी। ध्यान रहे इसके पहले गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह में एक मस्जिद से भड़काऊ बयानबाजी के बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा था।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आक्रोश जताने के नाम पर केवल उत्पात ही नहीं मचाया गया, बल्कि निलंबित भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा का सिर तन से जुदा करने के नारे लगाए गए और उनके पुतले को फांसी भी दी गई। ऐसी हरकतें सभ्य समाज को शर्मसार करने और देश की छवि खराब करने वाली हैं। यह याद रहे कि ऐसा ही कुछ तब भी हुआ था, जब कमलेश तिवारी पर पैगंबर की शान में गुस्ताखी के आरोप लगे थे और वह भी तब जब उसे गिरफ्तार कर उस पर रासुका लगा दिया गया था। बाद में कुछ जिहादी तत्वों ने उसकी गर्दन रेत कर हत्या भी कर दी थी। मेरे देश में इस्लामिक कट्टरपंथियों और आतंकवादियों ने वर्ष 2001 में संसद भवन पर हमला किया था और जब इस हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी हुई थी तब भी हमारे देश में एक खास समुदाय के लोग इसी तरह सड़कों पर उतर आए थे…..तब ये लोग कह रहे थे कि अफजल गुरु निर्दोष है और उसे फंसाया गया है। वर्ष 2000 से अब तक हमारे देश में 67 हजार आतकंवादी हमले हो चुके हैं और इन हमलों में कभी इस्लाम के नाम मन्दिरों को निशाना बनाया गया, कभी बाजारों और रेलवे स्टेशन पर विस्फोट किए गए और जिहाद के नाम पर बेगुनाहों को मारा गया।
वर्ष 2008 में मुम्बई में जो 26/11 के हमले हुए थे, उनमें 166 लोग मारे गए थे। लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के लोगों ने आतंकवादियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया। बल्कि ये लोग उस समय भी तत्कालीन सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और हमारे देश के लोगों ने उस समय के गृह मंत्री शिवराज पाटिल का इस्तीफा करा दिया था। ये लोग इस्तीफे से ही खुश हो गए थे। इससे पता चलता है कि, हमने कभी इस्लामिक कट्टरपंथ को मुद्दा बनाया ही नहीं और ना ही इसका विरोध किया।
जब मुम्बई हमलों के दोषी आमिर अजमल कसाब को फांसी हुई थी तब भी बहुत हंगामा हुआ था…..उस समय हमारे देश के मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाए थे। इसी तरह आपको याद होगा वर्ष 2012 में अकबरुद्दीन ओवैसी ने एक नफरत से भरा हुआ भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में मुसलमान 25 करोड़ हैं, हिन्दू 100 करोड़ हैं।15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो हम बता देंगे, किसमें हिम्मत है और कौन ताक़तवर है? इस भाषण के ठीक एक महीने बाद अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी हो गई थी। यानी कानून ने तब अपना काम किया था। लेकिन उस समय भी हमारे देश के 100 करोड़ हिन्दू अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी के लिए सड़कों पर नहीं उतरे थे और इन्होंने इस तरह से असहनशील होकर पुलिस पर पत्थर नहीं बरसाए थे, जैसा कि आज एक खास धर्म के लोगों ने किया। हाल ही में जब देश के अलग-अलग राज्यों में रामनवमी और हनुमान जयंती के मौके पर दंगे हुए थे और इन दंगों में हिन्दू श्रद्धालुओं को निशाना बनाया गया था, तब भी हमारे देश के लोगों ने इस तरह से कभी विरोध प्रदर्शन नहीं किए। इससे पता चलता है कि हिन्दू समुदाय के ज्यादातर लोग आज भी कानून व्यवस्था को मानने वाले हैं, जबकि एक खास धर्म के लोग ऐसे मुद्दों पर असहनशील हो जाते हैं।
दिल्ली के जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल को हनुमान जयंती के दौरान जो हिंसा हुई थी, उस मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। पुलिस ने बताया है कि ये हिंसा सुनियोजित थी और इसकी तैयारी 10 अप्रैल को ही कर ली थी। इसके लिए एक खास धर्म के लोगों ने हनुमान जयंती से पहले अपने घरों की छतों पर पत्थर और कांच की खाली बोतलें इकट्ठा करके रख हुई थीं और जब हनुमान जयंती के मौके पर इस इलाके से शोभा यात्रा निकाली गई तो इन्हीं घरों की छतों से पत्थर और बोतलें फेंकी गई थीं। इस मामले में पुलिस द्वारा 2300 से ज्यादा मोबाइल Videos और CCTV फुटेज का अध्ययन किया गया है, जिनसे ये पता चलता है कि हनुमान जयंती पर दंगे भड़काने की साजिश कोई संयोग नहीं था बल्कि इसके पीछे धार्मिक कट्टरता थी।
ये सब कुछ साजिश के तहत किया गया था। लेकिन क्या ये सब जानने के बाद आज हमारे देश के हिन्दू इस तरह से सड़कों पर उतर विरोध प्रदर्शन करेंगे? वो ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि हिन्दू आज भी कानून व्यवस्था को मानने वाले हैं। पूरी दुनिया में इस्लाम धर्म के ठेकेदारों ने लोगों को मानसिक रूप से इस तरह सैनिटाइज कर दिया है कि अब इस्लाम धर्म पर टिप्पणी करने से भी हत्या कर दी जाए तो उसकी आलोचना नहीं होती। बल्कि इस तरह की हत्याओं को सही ठहराया जाता है और लोग भी कहते हैं कि, क्या तुम्हें पता नहीं है कि पैगम्बर मोहम्मद का अपमान करने पर इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग कितने आहत हो जाते हैं और वो तो हत्या भी कर सकते हैं।
यानी लोगों ने एक खास समुदाय की इस असहनशीलता को स्वीकार कर लिया है और इसकी वजह से ऐसे मुद्दों पर जब हिंसा होता है, हत्याएं होती हैं तो उन्हें जायज बताया जाता है, जबकि दूसरे धर्मों में ऐसा नहीं है। ‘खास धर्म’ इसलिए कहना पड़ रहा वरना पता चला मेरी भी गर्दन रेत दी। एक तो मैं हिन्दू वो भी कश्मीरी……. भोलेनाथ बचा लेना……
ज़रा सोचिये धार्मिक मामलों में अप्रिय टिप्पणियों से केवल समुदाय विशेष की ही भावनाएं आहत होती हैं? यह सवाल इसलिए, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण के बाद शिवलिंग को लेकर कैसे ओछी-भद्दी और अपमानजनक टिप्पणियां की गईं…….. हम शांत रहे …… हम तब भी शांत थे जब हमारी देवी-देवताओं की वाहियात तस्वीर बनायी वो भी एम एफ हुसैन ने कला के नाम पर………