नई दिल्ली:हरियाणा में कांग्रेस की हार निश्चित रूप से विपक्षी दलों के गठबंधन के लिए एक अप्रत्याशित झटका थी। हालांकि इस नतीजे ने क्षेत्रीय दलों को सौदेबाजी में मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। इसके सबसे पहले असर महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में दिखेगा, जहां इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने के बाद उत्साहित कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलने में सहयोगियों को सफलता मिल सकती है।
मंगलवार को कांग्रेस जैसे ही हरियाणा में पिछड़ने लगी तो शिवसेना यूबीटी सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रतिक्रिया देने में कोई समय नहीं गंवाया। उन्होंने कहा, “सत्ता विरोधी लहर के बाद भी भाजपा कहीं न कहीं जीत रही है। इससे पता चलता है कि कांग्रेस को अपनी लड़ाई की योजनाओं पर फिर से विचार करना होगा। अपने भीतर झांकना होगा और इस बात को ध्यान में रखना होगा कि जब भी भाजपा से सीधी लड़ाई होती है तो कांग्रेस कमजोर पड़ती दिखती है। उसे पूरे गठबंधन पर फिर से काम करना होगा।”
महाराष्ट्र में चुनाव नजदीक हैं। यहां कांग्रेस उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन में है। अति आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस सीट शेयरिंग और उद्धव ठाकरे को सीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश करने की शिवसेना की मांग पर उतनी संवेदनशील नहीं दिख रही है। हरियाणा में हार और जम्मू में खराब प्रदर्शन को देखते हुए कांग्रेस अपने अहंकार को किनारे रखकर सहयोगियों को तरजीह दे सकती है।
हरियाणा में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है। वह अकेले चुनाव लड़ी थी। उनके लिए दिल्ली में होने वाले चुनावों के लिए समीकरण बनाना आसान हो सकता है। केजरीवाल ने मंगलवार को कांग्रेस नेतृत्व को याद दिलाया कि किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। हर चुनाव और हर सीट कठिन होती है। उन्होंने कहा, “आइए देखें कि हरियाणा में क्या परिणाम आते हैं। इसका सबसे बड़ा सबक यह है कि चुनावों में कभी भी अति आत्मविश्वासी नहीं होना चाहिए।”
महाराष्ट्र के साथ ही चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) प्रमुख हेमंत सोरेन की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है, लेकिन हरियाणा के नतीजों से सोरेन के लिए राज्य में अपने सहयोगी कांग्रेस के साथ गठबंधन समझौते पर काम करना निश्चित रूप से आसान हो जाएगा।