लाखणी, बनासकांठा:भारत का आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य गुजरात गत वर्ष से मानों आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बन रहा है। प्रदेश को यह सौभाग्य प्रदान कर रहे हैं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी। मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 में डायमण्ड सिटी, व सिल्क सिटी के रूप में विख्यात सूरत शहर में चार महीने का चतुर्मास करने के उपरान्त भी गुजरात के राज्य के सुदूर क्षेत्रों को पावन बनाने के लिए गतिमान हुए तो अभी तक आचार्यश्री ने अरब सागर व पाकिस्तान बार्डर से जिले कच्छ की धरा को भी अपने चरणरज से पावन ही नहीं बनाया, अपितु लगभग ढाई महीने के कच्छ में विहार व प्रवास के दौरान आचार्यश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के अनेकों महनीय आयोजन भी सम्पन्न किए। आचार्यश्री यह यात्रा संघ प्रभावक और जन-जन में आध्यात्मिक जागरणा वाली सिद्ध हुई।
वर्तमान में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी बनासकांठा जिले में गतिमान हैं। आगामी 30 अप्रेल को अक्षय तृतीया का आयोजन डीसा में निर्धारित है। वाव-पथक में निवासित श्रद्धालुओं पर भी विशेष अनुग्रह बरसाते हुए आचार्यश्री डीसा की ओर गतिमान हैं। शुक्रवार को प्रातःकाल शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ खोरडा से मंगल प्रस्थान किया। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री लगभग साढे बारह किलोमीटर का विहार कर लाखनी में स्थित श्री सरस्वती विद्यालय व ऑर्ट्स कॉलेज परिसर में पधारे। विद्यालय, कॉलेज परिसर से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालुजनों को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जीवन जीता है। अगर वह जीवन में धर्माचरण, सदाचरण नहीं करता है और पापाचरण, दुराचरण, भ्रष्टाचरण करता है तो उसका मानव जीवन बेकार हो जाता है और आगे की गति भी दुर्गति प्रदान करने वाली हो सकती है और उस आदमी को इसका पश्चाताप भी करना पड़ सकता है। एक गला काटने वाला शत्रु भी उतना नुक्सान नहीं करता, जितना खुद की दुरात्मा बनी हुई आत्मा कर देती है। दुरात्मा जीव को भव-भव में कष्ट दिलाने वाली हो सकती है। इसलिए यह धातव्य है कि मानव जीवन में धर्म के मार्ग पर, सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करे और कुमार्ग से बचने का प्रयास करे।
अधर्म के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलने से जीवन भर कठिनाई ही झेलनी पड़ सकती है और इसका प्रभाव अगली गति पर भी पड़ सकता है। इसलिए मानव को जीवन में धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास होना चाहिए। आदमी की आत्मा की उसकी मित्र और आत्मा की उसकी शत्रु है। सद्प्रवृत्ति में लगी आत्मा मित्र और दुष्प्रवृत्ति में लगी आत्मा शत्रु होती है। धर्म उपासनात्मक और आचरणात्मक भी होता है। जैसे सामायिक, माला, जप, साधुओं के दर्शन आदि को उपासनात्मक धर्म होता है। जीवन में जितना जप, तप, साधना, धार्मिक परोपकार, सेवा का कार्य चलता है तो कर्मों का क्षय होता है और आत्मा शुद्धि की दिशा में आगे बढ़ सकती है। इसलिए अपनी आत्मा को मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए और उसे सत्पथ पर लगाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज श्री सरस्वती विद्यालय में आए हैं। यहां के बच्चों में अच्छे ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार भी दिए जाते रहें, धर्म की अच्छी साधना चले, मंगलकामना। लाखणी जय के लवणी मण्डल के ट्रस्टी व उपप्रमुख श्री कीर्तिलाल शाह, श्री सरस्वती विद्यालय के आचार्य श्री मावजीभाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।