बुधवार , वासद (आनंद) गुजरात. अणुव्रत यात्रा द्वारा गांव–गांव, नगर–नगर में नैतिक मूल्यों के जागरण का साराहनीय कार्य करते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ वडोदरा की ओर बढ़ते जा रहे है। आज आचार्यश्री मोगर नगर से विहार कर वासद पधारे । विहार पथ में स्थान–स्थान पर आच्छादित वृक्षावली राहगीरों को तेज धूप से कुछ राहत प्रदान कर रही थी। प्राकृतिक अनुकुलता – प्रतिकूलताओं में भी समत्व भाव रखने वाले गुरुवर महातपस्वी महाश्रमण जनकल्याण हेतु अविरल गति से गतिमान थे। लगभग 09 किमी विहार कर गुरुदेव का वासद के सरदार पटेल विनय मंदिर विद्यालय में पदार्पण हुआ । चतुर्दशी के अवसर पर आज हाजरी का भी वाचन हुआ । जिसमें आचार्यप्रवर ने मर्यादा पत्र का वाचन कर साधु – साध्वियों की मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा दी।
मंगल देशना में आचार्य श्री ने कहा– व्यक्ति को जीवन में मृषावाद से बचने का प्रयास करना चाहिए । मृषावाद अर्थात असत्य संभाषण । दशवें आलियं आगम में सारभूत तत्वों को केन्द्रित किया गया है व नवदीक्षित साधुओं को मार्ग दर्शन दिया गया है कि मृषा अर्थात झूठ न स्वयं बोलो, न किसी से बुलवावो और न ही झूठ बोलने वाले का अनुमोदन करो । गुस्सा, भय, हास्य व लोभ यह कुछ कारण है जिनके कारण व्यक्ति असत्य बोल सकता है । साधु न भय के कारण झूठ बोले, न हास्य में झूठ बोले और न ही गुस्सा या तनाव में आकर झूठ बोले । साधु तो अभय का जीवन जिए।
गुरुदेव ने आगे कहा कि व्यक्ति झूठी बात न बोले, न झूठी बात का विस्तार करे व न ही झूठ लिखे। सत्य सदा अनुकरणीय व मननीय होता है । झूठ बोलकर किसी को नुकसान पहुँचाने में सामने वाले का नुकसान हो या न हो, खुद का नुकसान तो हो ही जाता है । व्यक्ति ऐसा सत्य भी न बोले जो किसी दूसरे का अहित करे. झूठ से बचना जरूरी होता है, किंतु हर सत्य बोलना जरूरी नहीं । हर बात को कहने व बोलने में जागरूकता होनी चाहिए। सत्य की साधना के लिए छल कपट रहित ऋजुता व सरलता का होना भी जरूरी है।
तत्पश्चात आचार्यश्री की प्रेरणा से समुपस्थित विद्यार्थियों ने सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया । विद्यार्थियों द्वारा अणुव्रत गीत का भी संगान किया गया।