राष्ट्रीय मुक्केबाज मानसी गांव की मैरिकॉम कही जाने लगी हैं। जंगल में जिस गांव में इंटरनेट का नेटवर्क जितनी आसानी से नहीं आता है, उससे ज्यादा गति से तेंदुओं की आवाजाही होती है, उसी जंगल में प्रैक्टिस कर राष्ट्रीय मुक्केबाज बन गई हैं मानसी शक्तावत। अब उसका अगला टारगेट ओलंपिक में जाकर देश के लिए मेडल जीतने का है। इस सपने को पूरा करने के लिए मानसी लगातार प्रैक्टिस में लगी है। मुक्केबाज बनने की उसकी कहानी भी मैरिकॉम से कम नहीं है।
उदयपुर से साठ किमी दूर चारों ओर अरावली पहाड़यों के बीच स्थित मुझेला गांव की एक सामान्य लड़की राष्ट्रीय मुक्केबाज बन जाएगी, किसी ने नहीं सोचा था। अब गांव के लोग उस पर गर्व कर रहे हैं। गांव में हर वक्त तेंदुए की आवाजाही का खौफ रहता है इसलिए लोग घरों से भी बाहर कम ही निकलते हैं। गांव के लोगों की आजीविका खेती है। बेटियों की शिक्षा को लेकर आज भी यहां उतनी जागरूकता नहीं है। ऐसे में मानसी ने सभी रूढ़ियों को तोड़ते हुए यह मुकाम हासिल किया। इससे गांव की और भी बेटियां प्रेरित होंगी। अब पूरा गांव मानसी की मिसाल देने लगा है।
पढ़िए मानसी के मुक्केबाज बनने की कहानी
मानसी बताती हैं कि उसके गांव में कभी कोई बच्ची खेलने के लिए नहीं गई थी। कुछ सालों पहले तक उसे भी खेलों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। वजह यह थी स्कूल जाने के लिए भी उन्हें 3 किमी तक पैदल चलना पड़ता था। स्कूल के शारीरिक शिक्षक देव रावत ने उन्हें खेलों के बारे में और इसमें अपना करियर बनाने की जानकारी दी। इस बीच उसने मुक्केबाज बनने की ठान ली। उसके पास गांव में कोई उपकरण उपलब्ध नहीं थे। अभ्यास कहां और कैसे किया जाए, इसकी भी जानकारी नहीं थी।
स्कूल की एकलौती छात्रा थीं मानसी
आखिर में मानसी ने जंगल में पिपली खूणी नामक एक जगह पर हाथों में कपड़ा बांधकर हवा में ही मुक्केबाजी करना शुरू किया। यह सिलसिला लंबे समय तक चला। कुछ समय बाद स्कूल प्रबंधन ने ही मानसी को ग्लव्स, पैडिंग ग्लव्स उपलब्ध करवाए। इससे मानसी का हौसला और बढ़ गया। राज्य स्तर पर ट्रायल दिया तो मानसी का चयन हो गया। परिवार वाले भेजने को तैयार नहीं हुए। शारीरिक शिक्षक ने समझाया तब मानसी के भाई पूरण सिंह उसके साथ जयपुर तक गए। मानसी राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया। मानसी यहां सरकारी स्कूल की एक मात्र छात्रा थीं।