भुज:गुजरात के भुज-कच्छ मंे तेरापंथ धर्मसंघ का प्रथम मर्यादा महोत्सव व तेरापंथ धर्मसंघ का 161वां मर्यादा महोत्सव का मंगल आयोजन करने के उपरान्त भुज के स्मृतिवन से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ स्मृतिवन से प्रस्थान कर श्री लालंचद थावर जैन महाजनवाडी में पधारे।
कच्छीपूज समवसरण में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, आचार्यश्री महाश्रमणजी मानव जीवन में आत्मा तो मुख्य तत्त्व है ही, इसके साथ शरीर का भी बड़ा योग होता है। आदमी जो भी प्रवृत्ति करता है, उसमें शरीर का बहुत बड़ा योग होता है। धर्म की प्रवृत्तियों में भी शरीर का ही सबसे बड़ा सहयोगी बनता है और धर्म की साधना का माध्यम भी शरीर ही बनता है। जब तक आदमी का शरीर सक्षम है, तब तक अच्छा अच्छा कार्य किया जा सकता है। शरीर की अक्षमता के तीन संदर्भ हैं-बुढ़ापा, ब्याधि और इन्द्रिय शक्तिहीनता। शास्त्रकार ने बताया कि तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करने लगे। बुढ़ापा अवस्था के रूप में है। सत्तर के बाद आदमी आगे बढ़ता है तो उम्र के हिसाब से वृद्धावस्था है। साठ वर्ष को पार करने वाला आदमी स्थवीर हो जाता है। साठ के बाद बुढ़ापे का शैशव प्रारम्भ हो जाता है। शरीर थकने लगता है। कभी समय होता है कि आदमी जैसा कहता है, वैसा पैर चलता है और बुढ़ापा में पैर जितना सक्षम होता है, जितना कहता है, उतना ही आदमी कर सकता है।
इसके लिए जीवन के कर्म भी बदल जाते हैं। जो साधु ज्यादा विहार नहीं पा रहा है तो बैठे-बैठे कोई काम कर सकता है। कोई सेवा, सहयोग करने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल लेने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अपने नब्बे वर्ष की अवस्था में अपने जीवन के अंतिम दिन में भी प्रवचन किया था। कहने का तात्पर्य है कि जब तक शरीर में कोई व्याधि हावी न हो तब तक धर्म करने का प्रयास करना चाहिए। जब तक आदमी की इन्द्रियां अपनी शक्ति से हीन न जाए, तब तक आदमी को धर्म का समाचरण कर लेने का प्रयास करना चाहिए। अनुशासन, मर्यादा, संयम और तप के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि राजकुमारजी ने गीत का संगान किया। कच्छ-मोरबी के सांसद व गुजरात भाजपा प्रदेश महामंत्री श्री विनोद चावड़ा ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर कच्छ की धरा को अपनी चरणरज से पावन बनाने के लिए पधारे हैं। यह हम सभी के लिए परम सौभाग्य की बात है। 161वां मर्यादा महोत्सव जो गुजरात का प्रथम मर्यादा महोत्सव है, उसे आपने किया, मैं गुजरात की जनता की ओर से आपका हार्दिक स्वागत करता हूं।
समणी नियोजिका समणी अमलप्रज्ञाजी, समणी कुसुमप्रज्ञाजी, समणी आर्जवप्रज्ञाजी, समणी समत्वप्रज्ञाजी, समणी हिमप्रज्ञाजी, समणी जिज्ञासाप्रज्ञाजी, समणी करुणाप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान करते हुए कहा कि मर्यादा महोत्सव के पश्चात का यह समय है। कई समणियों के ग्रुप्स विदेश यात्रा कर लौटे हैं। नवकार की माला नाश्ते से पहले-पहले करने का प्रयास करना चाहिए। समणियां जहां भी रहें, अच्छा कार्य करती रहें। तेरापंथी सभा-टोहाणा के पदाधिकारियों द्वारा सामायिक साधना नामक पुस्तक को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया।