वाव-थराद:संत शिरोमणि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के मंगल प्रवास से वाव पथक धरा अध्यात्म के रंग में रंगी हुई है। निकटवर्ती क्षेत्रों के साथ साथ सुदूर प्रवासी श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में अपनी मातृभूमि पर आराध्य का सान्निध्य प्राप्त कर धन्यता की अनुभूति कर रहे है। वर्धमान समवसरण में गुरुदेव द्वारा आगम आधारित देना जन जन को सम्यक ज्ञान से आलोकित कर रही है। गुरुदेव के सान्निध्य में आज भी विविध उपक्रम समायोजित हुए। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्य श्री से पूर्व साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने सारगर्भित वक्तव्य दिया।
मंगल उद्बोधन में फरमाते हुए शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा – हमारे जीवन में कर्तव्य व अकर्तव्य का बोध होना हितकारी होता है। इस बोध के अभाव में व्यक्ति पतन व अनिष्टता की ओर चला जाता है। जिसे कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध नहीं वह व्यक्ति पशु के समान बन जाता है। हालांकि तत्व की दृष्टि से कुछ पशु भी पंचम गुणस्थान तक प्राप्त कर लेते हैं, जिसे सारे मनुष्य भी प्राप्त नहीं कर पाते। इस अपेक्षा से वे मनुष्यों से भी उच्च स्तर के हो जाते हैं। अतः व्यक्ति को सदा कर्तव्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए। माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वे बच्चों को अच्छे संस्कार दें व उन्हें धर्म की ओर प्रेरित करे। ज्ञान प्राप्ति के लिए बच्चों को स्कूल भेजा जाता है। ज्ञानशाला भेजकर उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में भी सहयोग देना चाहिए। बच्चों का भी माता पिता के प्रति कर्तव्य होता है कि वे विनयशील रहें व जरूरत पड़ने पर उनकी सेवा करें। अध्यापक व विद्यार्थी के बीच भी दोनों ओर से कुछ कर्तव्य होते हैं।
गुरुदेव ने दृष्टांत से प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि साधु का पहला कर्तव्य होता है कि साधुता का पालन करना उसके बाद ही ज्ञान व वक्तृत्व कला का स्थान है। गुरू का शिष्य के प्रति व शिष्य का गुरू के प्रति भी अपना अपना कर्तव्य होता है। जैसे कोई एक गाय से दूध लें और फिर चारा न दे, यह उसके साथ न्याय का व्यवहार नहीं होता। उसी प्रकार जहां आदान प्रदान होता है वहां कुछ कर्तव्य भी होते है। जहां निष्पक्षता का अभाव हो व स्वार्थ का भाव हो वहां हिंसा का होना भी संभव है। देश के नेता का यह कर्तव्य होता है कि वह जनता की सेवा करे व जनता का कर्तव्य है कि वह टेक्स की चोरी न करे, कानून का अनुसरण करे। जब नैतिकता के अभाव होता है तो फिर टेक्स की भी चोरी हो जाती है। मूल बात यह है कि जीवन में कर्तव्य व अकर्तव्य का बोध आवश्यक है जिसे जानकर व्यक्ति श्रेय का समाचरण करे।
इस अवसर पर कार्यक्रम में दिलीप भाई दोषी, राजपूत समाज से ईश्वर भाई चारडिया, पिंकेश भाई मेहता ने अपने विचार रखे। तुलसी सेवा दल के सदस्यों ने गीत का संगान किया। मावसरी-कुंभारखा परिख परिवार ने गीतिका की प्रस्तुति दी।
वाव पथक सूरत ज्ञानशाला ने अभिवन्दना में प्रस्तुति दी।