01 जुलाई से विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो चुकी है। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है. जगन्नाथ का अर्थ होता है जगत के नाथ. भगवान जगन्नाथ श्रीहरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप माने जाते हैं।
हर साल पुरी में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा निकलती है.
नीलांचल निवासाय नित्याय परमात्मने। बलभद्र सुभद्राभ्याम् जगन्नाथाय ते नमः।।
विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है. ये उत्सव पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है.
मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता है, जहां भगवान 7 दिनों तक विश्राम करते हैं.
इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है.यात्रा के पीछे यह मान्यता है कि भगवान अपने गर्भ गृह से निकलकर प्रजा का हाल जानने निकलते हैं।
यात्रा में भाग लेने वाले को मिलता है ये पुण्य
भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) उनके भाई बलराम (बलभद्र) और बहन सुभद्रा रथयात्रा के मुख्य आराध्य होते हैं. जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है तो उन्हें 100 दिव्य-यज्ञ करने का फल प्राप्त हो जाता हैं।
कहा जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यात्रा में शामिल होने के लिए देश भर से श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं. स्कंदपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन से सभी दुख, दर्द और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का महत्त्व
यह हिंदुओं के चार धामों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना करीब 800 साल पहले हुई थी। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा मूर्तियाँ हैं। इनके दर्शन से भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस रथ यात्रा के दर्शनमात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। देश-विदेश के शैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकृषण का केन्द्र मानी जाती है। इस यात्रा को पुरी कार फ़ेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। ये सब बातें इस यात्रा के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अपनी राशि के अनुसार, भगवान जगन्नाथ से जुड़े मंत्र का जप करके आप उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं। ये मंत्र इस प्रकार हैं –
मेष राशि इस मंत्र को सच्चे हृदय से जपें आपको भगवान जगन्नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त होगा – ॐ पधाय जगन्नाथाय नम:।
वृष राशि भगवान जगन्नाथ की पूजा में इस मंत्र का जाप करने से आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी- ॐ शिखिने जगन्नाथाय नम:
मिथुन राशि जगत के नाथ जी का यह मंत्र आपके संकटों को दूर करेगा। ॐ देवादिदेव जगन्नाथाय नम: इस मंत्र को जपते समय उनका स्मरण करें।
कर्क राशि इस मंत्र का सच्ची श्रद्धा से जाप करने से आपके कष्ट दूर होंगे ॐ अनंताय जगन्नाथाय नम:
सिंह राशि भगवान जगन्नाथ का यह मंत्र आपको तमाम क्षेत्रों में सफलता दिलाएगा ॐ विश्वरूपेण जगन्नाथाय नम: कन्या राशि
कन्या राशि यह मंत्र आपके जीवन में खुशियां लाएगा। ॐ विष्णवे जगन्नाथाय नम: मंत्र का जप विधि अनुसार करें।
तुला राशि इस मंत्र के जाप से आपके सुखों में वृद्धि होगी। ॐ नारायण जगन्नाथाय नम:
वृश्चिक राशि इस मंत्र के जाप से आपकी सारी विपदाएं दूर होंगी। ॐ चतुमूर्ति जगन्नाथाय नम:
धनु राशि यह मंत्र आपको हर क्षेत्र में कामयाबी दिलाएगा। ॐ रत्ननाभ: जगन्नाथाय नम: मंत्र का जाप सच्ची श्रद्धा और विश्वास से करें।
मकर राशि इस मंत्र के जाप से आप समस्त क्षेत्र में विजय प्राप्त करेंगे ॐ योगी जगन्नाथाय नम:
कुंभ राशि भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह मंत्र आपके लिए कारगर है ॐ विश्वमूर्तये जगन्नाथाय नम:
मीन राशि भगवान जगन्नाथ की अनुकंपा पाने के लिए यह मंत्र मीन राशि वालों के लिए बेहद उपयोगी है-ॐ श्रीपति जगन्नाथाय नम:
श्री जगन्नाथ मंदिर रहस्य:
हवा के विपरीत लहराता ध्वज: श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्चित ही आश्चर्यजनक बात है। यह भी आश्चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है। पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया।
चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।
हवा की दिशा : सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।
अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।
गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी : मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर : 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है।
समुद्र की ध्वनि : मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।
रूप बदलती मूर्ति : यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं।
यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।
विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा : आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलोमीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है।
अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।
ऐसा है मंदिर का स्वरूप
– जगन्नाथ मंदिर 4,00,000 वर्ग फुट में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला, और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्य स्मारक स्थलों में से एक है।
– मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र बना है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है।
– मंदिर के भीतर गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मुख्य भवन एक 20 फुट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है।
!! हरी ॐ तत्सत !!