झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने सत्ता वापसी के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जैसे बड़े नेताओं ने जोरदार प्रचार किया। करीब 200 रैलियां आयोजित की गईं, जिनमें से दो दर्जन रैलियों को अमित शाह और पीएम मोदी ने संबोधित किया। इसके बावजूद भाजपा और उसके गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। यह हार न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं बल्कि शीर्ष नेतृत्व के लिए भी हैरान करने वाली रही। आइए, विस्तार से जानते हैं कि भाजपा की रणनीति में कहां-कहां चूक हुई।
मुख्यमंत्री चेहरा न पेश करना
एनडीए ने झारखंड चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई स्पष्ट चेहरा नहीं पेश किया। झारखंड की राजनीति में आदिवासी समुदाय का बड़ा प्रभाव है, लेकिन भाजपा आदिवासी मुख्यमंत्री का चेहरा देने में विफल रही। राज्य भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि यह एक बड़ी रणनीतिक गलती थी।
इसके विपरीत, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की ओर से हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया गया। उनकी छवि न केवल एक मजबूत आदिवासी नेता की थी, बल्कि वे झारखंड की जनता के बीच विश्वसनीयता भी रखते हैं। मुख्यमंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन और उनकी योजनाएं जनता को सीधे तौर पर प्रभावित कर पाईं, जो भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हुई।
स्थानीय नेताओं की अनदेखी और बाहरी चेहरों को तरजीह देना
भाजपा ने चुनाव प्रचार में स्थानीय नेताओं को पीछे रखा और दूसरे दलों से आए नेताओं को प्रमुखता दी। टिकट वितरण में भी स्थानीय कार्यकर्ताओं के बजाय हाल ही में अन्य दलों से आए नेताओं को तरजीह दी गई।
यह कदम जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए हतोत्साहित करने वाला साबित हुआ। स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को ऐसा लगा कि पार्टी ने उनकी उपेक्षा की। इसके कारण भाजपा का आधार कमजोर हुआ, क्योंकि चुनावी जीत के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम होती है।
स्थानीय और जमीनी मुद्दों पर ध्यान न देना
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा का चुनाव प्रचार राष्ट्रीय मुद्दों और घुसपैठ जैसे विषयों पर केंद्रित रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भाषणों में अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा, अनुच्छेद 370, और पाकिस्तान जैसे विषयों का उल्लेख किया।
हालांकि, झारखंड के मतदाता ग्रामीण और स्थानीय मुद्दों से अधिक प्रभावित थे। बेरोजगारी, गरीबी, आदिवासियों की जमीन का सवाल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं को भाजपा के एजेंडे में जगह नहीं मिली। झारखंड जैसे राज्य में, जहां ग्रामीण मतदाताओं का दबदबा है, भाजपा का यह रवैया उनकी हार का एक बड़ा कारण बना।
झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) का प्रभाव
झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) ने भाजपा और आजसू के लिए मुश्किलें खड़ी कीं। चंदनकियारी सीट जैसी कई जगहों पर इस छोटे दल ने भाजपा और उसके सहयोगी दलों के वोटों में सेंध लगाई।
उदाहरण के तौर पर, चंदनकियारी विधानसभा सीट पर नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी को झामुमो के उमाकांत रजक से हार का सामना करना पड़ा। यह हार केवल भाजपा के उम्मीदवारों को ही नहीं, बल्कि गठबंधन के अन्य घटकों को भी प्रभावित करती रही। वोटों का यह विभाजन भाजपा के प्रदर्शन को कमजोर करता गया।
महिला मतदाताओं पर झामुमो की पकड़
झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 68 पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। यह एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है, जिसे झामुमो ने सही तरीके से समझा और अपने पक्ष में किया।
हेमंत सोरेन की सरकार ने “मैया सम्मान योजना” के तहत महिलाओं को आर्थिक मदद देने का वादा किया। मौजूदा सहायता राशि 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति माह करने का प्रस्ताव महिलाओं के लिए बेहद आकर्षक साबित हुआ।
झामुमो ने 18-50 वर्ष की उम्र की महिलाओं को केंद्र में रखते हुए चुनावी प्रचार किया, जिससे महिलाओं ने बड़े पैमाने पर झामुमो का समर्थन किया। भाजपा इस वर्ग को प्रभावित करने में पूरी तरह असफल रही।
वोटरों की भावनाओं को समझने में विफलता
झामुमो और कांग्रेस ने झारखंड के आदिवासी, मुस्लिम और ईसाई समुदायों को अपने पक्ष में किया। यह झामुमो का पारंपरिक वोट बैंक है, लेकिन इस बार इसने नए मतदाताओं को भी अपनी ओर खींचा।
भाजपा ने कई रैलियों और अभियानों के माध्यम से इन समुदायों को लुभाने का प्रयास किया, लेकिन पार्टी का झुकाव मुख्यतः शहरी और ऊपरी वर्ग के मतदाताओं की ओर अधिक दिखा। इसके चलते ग्रामीण और वंचित वर्ग के मतदाताओं का जुड़ाव झामुमो के साथ अधिक बना रहा।
निष्कर्ष: हार की मुख्य वजहें
भाजपा की हार के पीछे निम्नलिखित मुख्य कारण रहे:
- आदिवासी मुख्यमंत्री का चेहरा न देना, जिससे एक बड़ा वोट बैंक खिसक गया।
- स्थानीय नेतृत्व और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, जिससे पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ा।
- राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी।
- झामुमो की महिलाओं को प्रभावित करने की रणनीति और छोटे दलों द्वारा वोटों का विभाजन।
झारखंड चुनाव ने भाजपा के लिए स्पष्ट संदेश दिया कि हर राज्य के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे ही पर्याप्त नहीं होते। क्षेत्रीय भावनाओं, स्थानीय जरूरतों और सही नेतृत्व की पहचान ही जीत की कुंजी होती है।