सरदारशहर, चूरु: 27 अप्रैल की सुबह सरदारशहरवासियों के लिए एक नव उल्लास लेकर आई। मौका था अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के नगर प्रवेश का। लगभग 9 वर्षों के पश्चात अपनी जन्मधरा पर पधारे तो पूज्य आचार्यश्री के स्वागत में मानों पूरा सरदारशहर महाश्रमणमय बन गया था। जन्मभूमि के नाम से कई लोग गौरव पाते हैं, किन्तु तीन देश, बाईस राज्यों की अठारह हजार किलोमीटर की ऐतिहासिक पदयात्रा सुसम्पन्न कर जन्मधरा पर पधार रहे आचार्यश्री महाश्रमण के शुभागमन से जन्मधरा मानों स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही थी।
प्रातः मेगा हाइवे स्थित आचार्य महाप्रज्ञ समाधि स्थल (अध्यात्म का शांतिपीठ) पर अपने गुरु का ध्यान कर पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। जैसे-जैसे ज्योतिचरण सरदारशहर नगर प्रवेश की ओर बढ़ रहे थे श्रद्धालुओं का हर्षोल्लास और वृद्धिंगत हो रहा था। ढाई किलोमीटर से भी लम्बा विशाल जुलूस मानवता के मसीहा का उनकी जन्मधरा पर अभिनंदन को आतुर नजर आ रहा था। गणवेश में श्रावक-श्राविकाओं के साथ वाहनों पर सजी हुईं ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों की अनेक झाकियां पंक्तिबद्ध स्कूली बच्चे, विभिन्न समाजों के हजारों नर-नारी व मंगल वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि के साथ गूंजता जयघोष वातावरण को महाश्रमणमय बना रहा था। जैन व जैनेतर में भेद करना असंभव था। अनेक सामाजिक, धार्मिक व व्यावसायिक संगठनों के लोग भी स्थान-स्थान पर आचार्यश्री का हार्दिक अभिनंदन कर रहे थे। सड़कें श्रद्धालुओं की उपस्थिति से मानों पटी हुई नजर आ रही थीं। लोग घरों की छतों आदि से भी आचार्यश्री की एक झलक को आतुर नजर आ रहे थे। गांधी चौक, मुख्य बाजार, घंटाघर आदि स्थानों से होते हुए आचार्यश्री भव्य जुलूस के साथ तेरापंथ भवन पहुंचे। सन् 2010 में इसी भवन में आचार्यश्री ने अपना प्रथम चतुर्मास किया था। अब पुनः लगभग बारह वर्षों के बाद करीब 22 दिनों के लम्बे प्रवास हेतु आचार्यश्री ने तेरापंथ भवन में मंगल प्रवेश किया।
भवन से कुछ दूरी पर बने युगप्रधान समवसरण में उपस्थित जनमेदिनी को आचार्यश्री ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में मंगल की कामना की जाती है। आदमी दूसरों के लिए भी मंगलकामना करता है और स्वयं के जीवन में भी मंगल की कामना करता है। इसके लिए कुछ प्रयास और उपाय भी किया जाता है। शास्त्रकार ने बताया कि सर्वोत्कृष्ट मंगल धर्म होता है। पदार्थों को भी मंगल के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है, किन्तु उससे कहीं ऊंचा मंगल धर्म होता है। शास्त्र में धर्म के संदर्भ में तीन शब्द बताए गए हैं-अहिंसा, संयम और तप। अहिंसा धर्म है, संयम धर्म है और तपस्या भी धर्म है। साधु के लिए अहिंसा, संयम और तप तो पालनीय है कि सामान्य गृहस्थ भी अपने जीवन में जहां तक संभव हो हिंसा से बचने का प्रयास करे। भोजन में शाकाहार और शाकाहार में भी जमीकंद से बचने का प्रयास करे तो अहिंसा का पालन हो सकता है। जीवन में संयम की प्रधानता रहे। इसी प्रकार तपस्या भी जीवन में रहे तो आदमी का जीवन धर्म से भावित हो सकता है। कई लोग वर्षीतप, अनाहार आदि की तपस्या भी करते हैं। उसके अलावा उनोदरी करना, भोजन करने में संयम रखना भी तपस्या है। इस प्रकार जिसका मन धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। धर्म मात्र धर्मस्थान में ही नहीं, आदमी के कर्मस्थान, व्यवहार व आचरण में भी रहे तो जीवन का कल्याण हो सकता है।
आचार्यश्री ने सरदारशहर आगमन के संदर्भ में कहा कि आज हमारा सरदारशहर में आना हुआ है। परम पूज्य मघवागणी के अलावा परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की दीक्षा भूमि व उनकी महाप्रयाण भूमि आदि अनेक प्रसंगों से यह नगर जुड़ा हुआ है। यहां धार्मिक, आध्यात्मिक माहौल बना रहे, धर्म की चेतना लोगों में पुष्ट होती रहे।
आचार्यश्री के स्वागत में आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के स्वागताध्यक्ष श्री महेन्द्र नाहटा, अध्यक्ष श्री बाबूलाल बोथरा, तेरापंथ सभा-सरदारशहर के मंत्री श्री पारस बुच्चा, अणुव्रत समिति-सरदारशहर के अध्यक्ष श्री पृथ्वी सिंह, पूर्व विधायक श्री अशोक पींचा, श्री सुमतिचंद गोठी, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री राजीव दुगड़, नगरपालिका के अध्यक्ष श्री राजकरण चौधरी, उपाध्यक्ष श्री अब्दुल रसीद, महाप्रज्ञ एजुकेशन फाउण्डेशन के अध्यक्ष श्री मदनचंद दुगड़ ने अपने श्रद्धाभावों को अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल-सरदारशहर ने संयुक्त रूप से स्वागत गीत का संगान किया।
कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित आर्थिक पिछड़ा वर्ग आयोग के राज्यमंत्री श्री अनिल शर्मा ने कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी को नमन करता हूं। हमारे शहर के लिए आज अत्यंत हर्ष का विषय है कि आपका मंगल पदार्पण लम्बे अंतराल के बाद हुआ है। मैं अपने पिता श्री भंवरलालजी शर्मा व पूरे क्षेत्र की जनता की ओर से आपका बहुत-बहुत हार्दिक अभिनंदन व स्वागत करता हूं।