पूर्णम शॉ लौट आए। भारत ने राहत की साँस ली। मगर इससे पहले कि देश आभार में डूब पाता, एक नया मोर्चा खुल गया — शब्दों का, झूठ का, और मानसिक युद्ध का।
जहाँ एक ओर पाकिस्तान की ओर से एक सैनिक की वापसी को “शांति” और “नई सोच” की निशानी बताया गया, वहीं भारत के भीतर बैठे कुछ तथाकथित “विचारक” इस झूठे नैरेटिव को amplify करने में जुट गए।
यह सिर्फ़ विचारों की बहस नहीं है — यह भारत की चेतना पर हमला है।
शब्दों में ज़हर घोलने की यह रणनीति नई नहीं है
“देखिए पाकिस्तान बदल गया है।”
“इस बार उन्होंने जवान को ज़िंदा लौटाया है।”
“मानवता की उम्मीद अब भी बाकी है।”
ये वाक्य किसी टीवी डिबेट का हिस्सा नहीं — ये एक सुनियोजित मानसिक युद्ध का हिस्सा हैं। ऐसा नैरेटिव गढ़ा जा रहा है कि भारत को उदारता से देखना चाहिए, माफ करना चाहिए, और भूल जाना चाहिए।
लेकिन हम कैसे भूल जाएं?
- क्या हमने कारगिल के शहीदों को भुला दिया है?
- क्या हमने लांस नायक हेमराज की शहादत को मिटा दिया है?
- क्या हमें ये बताने की ज़रूरत है कि पाकिस्तान ने कितनी बार झंडे की आड़ में छुरा घोंपा?
जब देश के भीतर ही उठे ‘दया’ के स्वर
सबसे खतरनाक बात यह नहीं कि पाकिस्तान झूठ फैला रहा है।
सबसे खतरनाक बात यह है कि भारत के भीतर कुछ लोग उस झूठ को ‘सच’ की तरह पेश कर रहे हैं।
टीवी चैनलों पर बहसें शुरू हो गईं —
“इस बार तो कोई टॉर्चर नहीं हुआ।”
“पाकिस्तानी फौज ने तो नियमों का पालन किया।”
“अब वक्त है रिश्ते सुधारने का।”
क्या हम इतने भोले हैं कि दुश्मन की मुस्कान को शांति समझ लें?
यही तो उनका मकसद है — भारत की चेतना को भोलेपन की चादर ओढ़ाकर नींद में डाल देना।
भारत को सतर्क रहना होगा — यह शांति नहीं, रणनीति है
पाकिस्तान जानता है कि अब भारत बदल चुका है।
भारत अब मिन्नत नहीं करता, फैसला सुनाता है।
इसलिए उसने गोली नहीं चलाई — बल्कि कहानी गढ़ी।
उसने एक जवान को बिना शारीरिक ज़ख्म लौटाया — ताकि विश्व समुदाय के सामने एक नया चेहरा पेश कर सके, और भारत के भीतर शक पैदा कर सके।
और दुर्भाग्य से, भारत के भीतर बैठे कुछ आवाज़ें इस झूठ को बढ़ावा देने में जुट गईं — ‘मानवता की जीत’ के नाम पर।
यह समय बहस का नहीं, सजगता का है
आज ज़रूरत है हर भारतीय को इस नैरेटिव वॉर के प्रति जागरूक करने की।
यह लड़ाई सीमाओं पर नहीं, हमारे दिमागों में लड़ी जा रही है।
हमें यह समझना होगा:
- हर बार गोली नहीं चलाई जाती — कभी-कभी नैरेटिव से भी राष्ट्र की रीढ़ तोड़ी जाती है।
- अगर हम आज चुप रहे, तो कल बच्चों को समझाना मुश्किल होगा कि “सच्चाई” क्या थी।
जनता से सवाल: क्या आप फिर से छलाए जाने को तैयार हैं?
क्या हम फिर वही गलती दोहराएँ — पाकिस्तान के ‘शब्दों’ पर भरोसा करके, उसके ‘इरादों’ को नजरअंदाज़ करके?
क्या हम फिर कोई अभिनंदन, कोई पूर्णम शॉ खोने को तैयार हैं — सिर्फ़ इसलिए कि किसी ने टीवी पर कह दिया कि अब पाकिस्तान बदल गया है?
याद रखिए — यह बदलता पाकिस्तान नहीं, यह रणनीति बदलने वाला पाकिस्तान है। और जवाब बदलने वाला भारत भी तैयार है।
अंतिम चेतावनी: मासूम मत बनिए, भारत को आपसे सजगता चाहिए
यह लेख कोई युद्ध का समर्थन नहीं करता — यह चेतना का आग्रह है।
हमारी शांति की प्यास तब तक मूल्यवान है जब तक हम उसके पीछे छिपे षड्यंत्र को पहचान सकें।
पूर्णम शॉ की वापसी पर हर्ष हो सकता है — परंतु उत्सव नहीं।
क्योंकि यह वापसी उनकी दया नहीं, उनका डर है। और भारत को अब इस डर को स्थायी बनाना होगा — याद से, सजगता से, और दृढ़ता से।
जय माँ भारती