चोटिला, सुरेन्द्रनगर (गुजरात) : सौराष्ट्र की धरा को पावन बनाते हुए एवं जन-जन पर कल्याणकारी आशीष की वृष्टि करते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान हैं। शुक्रवार को प्रातः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मघरीखाडा से मंगल प्रस्थान किया। उत्तर भारत में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड का असर गुजरात के इस क्षेत्र में भी देखने को मिल रहा है। विहार के दौरान भी दर्शन करने वाले लोगों पर मधुर मुस्कान के साथ आशीर्वाद प्रदान करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री चोटिला में स्थित जलाराम मंदिर में पधारे। यहां से संबंधित लोगों व अन्य श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। एकदिवसीय प्रवास हेतु आचार्यश्री मंदिर परिसर में पधारे। ज्योतिचरण का स्पर्श पाकर चोटिला की भूमि भी मानों ज्योतित हो उठी।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के मन में लोभ नाम की वृत्ति भी अथवा कषाय भी दसमगुणस्थान तक विद्यमान रहता है। दसवें गुणस्थान का लोभ भले कमजोर रहे, लेकिन लोभ होता ही है। लोभ जब उभरता है तो आदमी विविध अपराधों में जा सकता है। लोभ के कारण आदमी हिंसा, हत्या में जा सकता है। लोभ के कारण आदमी मृषावाद का प्रयोग कर सकता है और भी अनेक कार्य आदमी लोभ से प्रेरित होकर कर सकता है। गृहस्थ जीवन के लिए परिग्रह भी आवश्यक होता है। अर्थ का अर्जन भी आदमी करता है और अर्थ के अर्जन के लिए आदमी कई बार अशुद्ध साधनों का भी सहारा ले सकता है। आदमी उसके लिए झूठ बोल सकता है, छल कर सकता है, अनैतिक साधनों से अर्थ का अर्जन करने में लग जाता है।
गृहस्थ जीवन में अर्थ का अर्जन एक बड़ा आयाम होता है तो धर्म भी एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। आर्षवाणी में कहा गया है कि गृहस्थ जीवन में नैतिकता रखने का प्रयास होना चाहिए। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत की बात बताई। छोटे-छोटे नियम गृहस्थ जीवन में आए तो आदमी का जीवन अच्छा रह सकता है। अणुव्रत आदमी के घर में रहे, बाजार में रहे, विद्यालयों में, चिकित्सालयों में रहे अर्थात् आदमी के जीवन में रहे। आदमी भले ही किसी धर्म को माने, यह अलग बात है। कोई आस्तिक है अथवा नास्तिक है, अणुव्रत में किसी से कोई आपत्ति नहीं है। अणुव्रत कहता है कि जीवन व्यवहार में नैतिकता, अहिंसा, संयम आदि तत्त्वों का समावेश होना चाहिए। उसमें लोभ एक ऐसी वृत्ति है जो आदमी को अनैतिकता की ओर धकेल सकता है। लोभ हिंसा की ओर ले जा सकती है, अपराध और असंयम की ओर अग्रसर कर सकता है। अनेक अपराधों के मूल में लोभ बैठा होता है, जिसके कारण आदमी अपराध करने के लिए उत्प्रेरित होता है। लोभी को यदि कोई सोने-चांदी का पर्वत भी दे दे तो उसका लोभ समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि इच्छाएं आकाश के समान अनंत होती है।
आदमी को अपने जीवन में अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान के द्वारा अपने जीवन में अहिंसा, संयम और नैतिकता का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को लोभ का त्याग कर संतोष को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना और भोग और उपभोग में संयम रखने से लोभ का नाश किया जा सकता है। इसलिए जीवन से लोभ को नियंत्रित रखने और संतोष को वर्धमान रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गांववासियों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
जलाराम मंदिर के ट्रस्टी व महामंत्री श्री दामजी भाई राठौड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। जैन समाज की ओर से श्री पारसभाई ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।