कामिका एकादशी व्रत रविवार 24 जुलाई को है। पवित्र श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली इस एकादशी में श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों एवं स्वरूपों का ध्यान करते हुए इनकी पूजा करनी चाहिए। एकादशी भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। युधिष्ठिर ने जब इस विषय में कृष्ण से पूछा तो उन्होंने नारद और ब्रह्माजी के संवाद के बारे में बताया कि इस एकादशी का व्रत करने से पृथ्वी व गोदान के बराबर फल मिलता है। साथ ही, समस्त देवताओं की पूजा भी हो जाती है। इस पूजा में तुलसी की मंजरियों से विष्णु पूजन जहां जन्मभर के पापों का नाश करता है, वहीं श्रीहरि के चरणों में चढ़ा देने से मोक्ष भी देता है- ‘या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी। रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी। प्रत्यासात्तिविधायनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता। न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम:।।’
एकादशी को तिल अथवा घी से दीपक जलाना चाहिए, जो दिन-रात जलना जरूरी है। व्रत करने वाले के पितर इस व्रत के प्रभाव से अमृतपान करते हैं।
जो लोग किसी कारण से एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं, उन्हें भी एकादशी के दिन खानपान एवं व्यवहार में पूर्ण संयम का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन चावल खाना भी वर्जित है।
कथा है कि माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया। उनका अंश पृथ्वी में समा गया। चावल व जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए। इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। महर्षि का अंश जिस दिन पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसीलिए इस दिन चावल नहीं खाना चाहिए। वैसे भी चावल में जल तत्त्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है, इससे मन विचलित व चंचल होता है। फिर श्रावण तो जल से भरा महीना है, इसलिए व्रत करने वाले और न करने वाले दोनों लोग, संभव हो तो चावल का त्याग करें।