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Home ओपिनियन

कारगिल की चोटें आज भी पाकिस्तान की नसों में सिहरन पैदा करती हैं

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
May 3, 2025
in ओपिनियन
Reading Time: 1 min read
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कारगिल

1999 में कारगिल में भारत से मिली करारी शिकस्त की टीस आज भी पाकिस्तान को भीतर तक झुलसा रही है। बावजूद इसके, वह अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले के बाद जब भारत आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की तैयारी कर रहा है, पाकिस्तान फिर से बौखलाहट में युद्ध की धमकियाँ देने लगा है। मगर उसे यह समझ लेना चाहिए कि यदि उसने दोबारा ऐसी कोई हिमाकत की, तो उसका अंजाम पहले से कहीं ज़्यादा भयानक होगा।

दोस्ती की आड़ में पीठ में छुरा

कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ आखिरी बड़ा सैन्य संघर्ष था, जो मई से जुलाई 1999 तक चला। उस समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ शांति की कोशिशों में जुटे थे। लेकिन इसी दौरान पाकिस्तान की सेना ने विश्वासघात करते हुए कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा करने की साजिश रच डाली।

फरवरी 1999 में ही पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों ने बर्फबारी के कारण खाली किए गए भारतीय पोस्टों पर घुसपैठ शुरू कर दी। उनका उद्देश्य था श्रीनगर-लेह हाईवे को काटकर कश्मीर घाटी को देश से अलग-थलग करना और वहां अशांति फैलाना।

ऑपरेशन विजय: भारत का करारा जवाब

मई की शुरुआत में बटालिक इलाके के चरवाहों ने इन गतिविधियों की सूचना सेना को दी, जिससे पाकिस्तान की साजिश का पर्दाफाश हुआ। इसके बाद 10 मई को भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरुआत की। करीब 40,000 भारतीय सैनिकों ने द्रास, बटालिक और कारगिल सेक्टर में मोर्चा संभाल लिया।

26 मई को भारतीय वायुसेना भी इस अभियान में शामिल हो गई। मिग-21, मिग-27 और मिराज-2000 जैसे लड़ाकू विमानों ने दुश्मन की पोस्टों पर 16,000 फीट की ऊंचाई से हमला किया। 13 जून को टोलोलिंग चोटी और 4 जुलाई को टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा लहराया गया।

इस लड़ाई में बोफोर्स तोपों ने निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने बर्फ में छिपे दुश्मनों को निशाना बनाकर पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

हार की तिलमिलाहट और तानाशाही की राह

अमेरिका के दबाव और युद्ध में करारी हार को देखते हुए 11 जुलाई को नवाज शरीफ ने एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा की और अपनी सेना को पीछे हटने का आदेश दिया। हालांकि पाकिस्तानी सेना के कुछ हिस्सों ने आखिरी समय तक लड़ाई जारी रखी।

अंततः 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पूरे कारगिल क्षेत्र को घुसपैठियों से मुक्त करा लिया। यही दिन ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

पाकिस्तान को भारी पड़ा विश्वासघात

इस युद्ध में भारत ने अपने 527 वीर सपूतों को खोया, जबकि पाकिस्तान को लगभग 4000 सैनिकों की बलि देनी पड़ी। इस हार ने पाकिस्तान के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी। अक्टूबर 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट कर नवाज शरीफ की सरकार गिरा दी और स्वयं तानाशाह बन बैठा।

भले ही पाकिस्तान आज भी इस जंग की सच्चाई को छुपाता हो, मगर नवाज शरीफ जैसे नेता बाद में इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि कारगिल में हुई गलती ने न केवल पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार किया, बल्कि उसके हजारों सैनिकों की जान भी ले ली।

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