हाल ही में एक नेता ने कहा था, “दिल्ली में कीचड़ इतना फैल गया है कि केवल कमल ही खिलेगा,” और वही हुआ। लेकिन सवाल यह उठता है कि कीचड़ किसने फैलाया? इसका सीधा जवाब है- अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी। जनता ने इसे सकारात्मक रूप से नहीं लिया, क्योंकि यह कीचड़ विचारों और नैरेटिव का था।
एक नैरेटिव था, “हमें काम करने नहीं दिया जाता, हम महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर सकते क्योंकि पुलिस केंद्र के पास है, और हमें फंड नहीं दिया जाता।” जनता के बीच यह संदेश गया कि आने वाले पांच सालों में यही राजनीति चलेगी। इसके मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश था, “मैं दिल्ली को खुद देखूंगा और इसके हालात बदलूंगा।”
केजरीवाल की जिम्मेदारी
दिल्ली के परिणामों के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन खुद केजरीवाल भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने भाजपा को फंसाने के लिए जो रणनीति बनाई थी, वह खुद उसी में फंस गए। संदेश स्पष्ट था: यदि दिल्ली में बदलाव चाहिए, तो मोदी के नाम पर वोट दें।
सहानुभूति की कोशिश नाकाम हुई
केजरीवाल ने खुद को लाचार दिखाकर सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की, लेकिन जनता ने इसे नकार दिया। भाजपा की जीत इसलिए बड़ी है क्योंकि असम, त्रिपुरा और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में बड़ी जीत के बावजूद दिल्ली भाजपा के लिए चुनौती बनी हुई थी। अब दिल्ली भी उन राज्यों में शामिल हो गई है जहां भाजपा ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए।
राष्ट्रव्यापी संदेश
दिल्ली के नतीजे का संदेश राष्ट्रव्यापी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनावी राजनीति में रेवड़ी का वितरण हो रहा है, लेकिन जनता ने यह साफ संदेश दिया है कि विश्वसनीयता अधिक महत्वपूर्ण है। विकास के लिए एक मजबूत प्रशासक की छवि जरूरी है, और केजरीवाल वह छवि खो चुके थे।
अमित शाह की रणनीति और जेपी नड्डा की टीम
प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को सामने रखकर, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रणनीति तैयार की और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम को पूरा समर्थन दिया। पहली रणनीति थी, यह सुनिश्चित करना कि जनता को यह विश्वास हो कि जो सहूलतें उन्हें मिल रही हैं, वे खत्म नहीं होंगी। दूसरी रणनीति थी, आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को उनके ही बयानों में घेरना, और तीसरी रणनीति थी विकास का विजन प्रस्तुत करना।
केजरीवाल के बयान उल्टे पड़े
मोडी की गारंटी के साथ इस रणनीति ने काम किया। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को एक ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल किया था, ताकि वह खुद को ईमानदार दिखा सकें। लेकिन जैसे-जैसे बहस बढ़ी, वे और उनकी पार्टी इसमें खुद ही फंस गईं।
यमुना में जहर का मुद्दा भी उल्टा पड़ा
यमुना में जहर मिलाने के मुद्दे पर भी वही हुआ। जो जाल केजरीवाल ने भाजपा को फंसाने के लिए बिछाया था, वह खुद उनके ऊपर भारी पड़ा। दिल्ली की जनता ने यह जताया कि उन्हें विकास चाहिए, और वह यह देखना चाहती है कि देश की राजधानी एनसीआर के नोएडा और गुरुग्राम से पीछे क्यों है।
कांग्रेस में खुशी और गम
कांग्रेस में थोड़ा खुश और थोड़ा ग़म है। खुशी इस बात की है कि आम आदमी पार्टी ने हार स्वीकार की है, बिना ईवीएम पर आरोप लगाए। ग़म इस बात का है कि कांग्रेस को इस चुनाव में उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिले। कांग्रेस इस हार को भविष्य में लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है।
अंतिम संदेश
इस चुनाव परिणाम का संदेश साफ है – जनता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विकास और विश्वसनीय नेतृत्व ही महत्वपूर्ण हैं, और वे किसी भी तरह के खोखले वादों या सहानुभूति के जाल में नहीं फंसने वाली हैं।