पिछले एक दशक में औसतन हर चार दिन में एक पत्रकार की हत्या हुई है। 2016 के बाद से हर साल संघर्ष क्षेत्रों के बाहर अधिक पत्रकार मारे गए हैं, जो वर्तमान में सशस्त्र संघर्ष का सामना कर रहे देशों की तुलना में अधिक हैं। पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए ‘दण्ड से मुक्ति’ जारी है…. दस हत्याओं में से नौ को सजा नहीं मिली है। आंकड़े दिल दहलाते हैं।
मीडिया का उद्देश्य जनता की सेवा करना और एक लोकतांत्रिक समाज में राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना है लेकिन इस क्षेत्र को लंबे समय से नकारात्मक रोशनी में चित्रित किया गया है। रूस, अज़रबाइजान और कजाकिस्तान जैसे देशों में आलोचनात्मक आवाज़ों को अक्सर अदालत प्रणाली के सरकारी दुरुपयोग के माध्यम से खामोश कर दिया जाता है। कर चोरी, जबरन वसूली, धोखाधड़ी, नशीली दवाओं के आरोप और इसी तरह के उल्लंघन के आरोपों का उपयोग उन पत्रकारों को दबाने के लिए किया जाता है जो जनहित के विषयों, विशेष रूप से भ्रष्टाचार की जांच करते हैं। आतंकवाद के प्रचार के आरोपों का उपयोग मीडिया की स्वतंत्रता और भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को वस्तुतः समाप्त करने के लिए उपकरण के रूप में किया जाता है…. विशेष रूप से वे आवाज़ें जो हाशिए पर रहने वाले समुदायों का प्रतिनिधित्व करती हैं या उन्हें कवर करती हैं।
पत्रकारों के लिए मेक्सिको लंबे समय से दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक रहा है। निरंतर मीडियाकर्मियों की हत्याओं का सिलसिला देश में व्याप्त ‘दण्ड से मुक्ति’ की संस्कृति को उजागर करता है। मीडियाकर्मियों की हत्याओं की वृद्धि से लोग यह सोचने पर मजबूर हैं कि पत्रकारों, संपादकों और छायाचित्रकारों के खिलाफ हिंसा की ‘महामारी’ की व्याख्या कैसे करें।
स्वतंत्र मीडिया आउटलेट अब अफगानिस्तान के अंदर लगभग गायब हो गए हैं और निर्वासित मीडिया संगठनों के प्रिंट संस्करण मौजूद नहीं हैं… तालिबान के मानवाधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता का सम्मान करने के वादे के बावजूद कई पत्रकारों को देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। अफगानिस्तान के अंदर महिला पत्रकारों को विशेष रूप से निशाना बनाया गया है, और उन्हें सामूहिक रूप से पेशे से बाहर कर दिया गया है।
मीडिया और भाषण की स्वतंत्रता एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज के लिए अनिवार्य है, लेकिन पाकिस्तान में पत्रकारों के सामने आने वाले उच्च-स्तरीय खतरों ने निष्पक्ष रूप से रिपोर्ट करना बेहद चुनौतीपूर्ण बना दिया है। पाकिस्तानी पत्रकारों को लंबे समय से अपने काम में गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ा है, जिनमें उत्पीड़न, धमकी, हमला, मनमानी गिरफ्तारी और हिरासत, अपहरण और हत्याएं शामिल हैं। जैसे-जैसे ये खतरे बढ़े हैं, पाकिस्तानी अधिकारियों ने भी संपादकों और मीडिया मालिकों पर आलोचनात्मक आवाज़ों को बंद करने का दबाव डाला है।
मिस्र को सबसे अधिक पत्रकारों को जेल में डालने वाले देशों में से एक के रूप में स्थान दिया गया है – भले ही उनका वर्तमान संविधान कहता है कि प्रेस पूरी तरह से स्वतंत्र है। वास्तविकता यह है कि मिस्र की सरकार नियमित रूप से देश के नेतृत्व की आलोचना करने वाले मीडिया आउटलेट्स को बंद कर देती है।
कुछ समय पूर्व एक प्रमुख रिपोर्ट में चीन में पत्रकारों के साथ खराब व्यवहार और सूचना पर कड़ा नियंत्रण करने के बारे में विस्तार से बताया गया। साथ ही चीन में स्थापित एक ऐसे माहौल को उजागर किया गया जिसमें स्वतंत्र रूप से जानकारी तक पहुंचना अपराध बन गया है और जो लोग आधिकारिक आख्यान का पालन करने से इनकार करते हैं, उन पर राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया जाता है।
पत्रकारों की हत्याएं मीडिया सेंसरशिप का सबसे चरम व् घृणित रूप है…. पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, हमले व् यातनाएं मीडिया पेशेवरों के लिए भय का माहौल पैदा करते हैं, जिससे सभी नागरिकों के लिए सही सूचना और विचारों के ‘मुक्त संचलन’ में बाधा उत्पन्न होती है।
पत्रकारों के खिलाफ अपराधों पर लगाम सभी नागरिकों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना तक पहुंच की गारंटी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, जो सिर्फ और सिर्फ पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की जोरदार जांच से ही संभव है। दोषियों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई से एक शक्तिशाली संदेश जाएगा कि समाज पत्रकारों के खिलाफ और सभी के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा। इसके अतिरिक्त, ‘मीडिया शील्ड कानून’ को पारित करने और लागू करने का समय आ गया है। आज की डिजिटल दुनिया में, जहां कई पत्रकार केवल ऑनलाइन प्रकाशनों के लिए लिखते हैं और कई नागरिक पत्रकार भी महत्वपूर्ण कहानियों को खोजते हैं, ऐसे में इन कानूनों को न केवल पेशेवर प्रिंट पत्रकारों को कवर करने के लिए विस्तारित किया जाना चाहिए बल्कि पत्रकारिता से जुड़े सभी लोगों को कवर करना चाहिए।